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बिखर गए मुनाफे के सपने

Last Updated- December 05, 2022 | 5:26 PM IST

पिछले वर्ष नवंबर महीने में सॉफ्टवेयर कंपनी हेक्सावेयर टेक्नोलॉजी के एक कर्मचारी द्वारा अनधिकृत डेरिवेटिव सौदे को कवर करने के लिए कंपनी ने 200-250 लाख डॉलर (तब 78.8-98.25 करोड़ रुपये) का प्रावधान किया था।


कंपनी ने कहा कि इस लेन-देन से संबंधित सूचनाएं उस कर्मचारी ने जान बूझ कर वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों और बोर्ड से छुपाई थी।इस लेन-देन की वजह से हुए वास्तविक 103 करोड़ रुपये के घाटे की वजह से दिसंबर 2007 में समाप्त हुई तिमाही में कंपनी ने 81 करोड़ रुपये का शुध्द घाटा दर्ज किया।हेक्सावेयर कंपनियों की बढती सूची में पहली है जिसने फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव में निवेश के कारण घाटे की घोषणा की या फिर विदेशी उत्पादों की खरीदारी के संदर्भ में गुमराह करने के लिए अपने बैंकरों के खिलाफ अदालत गई।


एक और उदाहरण हम राजश्री शुगर्स का लेते हैं जिसने पिछले चार वर्षों में ऐक्सिस बैंक के साथ मिल कर डेरिवेटिव के 10 लेन देन किए थे। इनमें से नौ सौदे रुपये में लिए गए ऋण के मूल्य को कम करने के लिए किया गया था। केवल एक लेन देन ऐसा था जो पूर्णत: अमेरिकी डॉलर और स्विस फ्रैंक के संभावित उतार-चढ़ाव के आधार पर किया गया था।


राजश्री, जिसका ऐक्सिस बैंक के साथ कानूनी विवाद चल रहा है, ने अपनी याचिका में कहा कि बैंक ने उसे इस तरह के आकर्षक विदेशी करार के लिए प्रलोभित किया था, हालांकि ऐक्सिस बैंक के सूत्रों ने इस आरोप से इनकार किया है। यह करार 22 जून 2007 को किया गया था जब एक डॉलर=1.2355 सीएचएफ था। तब से अमेरिकी डॉलर में स्विस फ्रैंक के मुकाबले लगभग 0.985 की कमजोरी आई है।


तीसरी तिमाही में राजश्री ने 67.30 करोड़ रुपये की कुल आय पर 10.45 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया। संभावना इस बात की है कि कंपनी को 160 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ जाएं और कंपनी ने अपनी याचिका में कहा है कि अकेले इस करार से ‘कंपनी का तहस नहस हो सकता है और उसकी कुल संपत्ति ऋणात्मक हो सकती है।’


लेखा कंपनियां और फॉरेक्स परामर्शदाताओं ने कहा कि हेक्सावेयर और राजश्री शुगर्स इस बात के पुख्ता उदाहरण हैं कि किस प्रकार कुछ छोटी और मझोले आकार की कंपनियां या उनके बैंकर भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के भावों के खिलाफ गए थे।अर्न्स्ट ऐंड यंग द्वारा कराए गए 34 कंपनियों से साफ होता है कि 44 प्रतिशत कंपनियों ने विदेशी डेरिवेटिव उत्पादों और 35 प्रतिशत ने अवसरवादी हेजिंग का इस्तेमाल किया था, जबकि केवल 32 प्रतिशत प्रतिशत कंपनियों के बोर्ड जोखिम प्रबंधन से जुड़े हुए थे।


भारतीय कंपनियों को अपने जोखिमों की हेजिंग के लिए केवल फॉरवर्ड करेंसी पोजिशन लेने की अनुमति है और उन्हें ऐसे सौदे करने की अनुमति नहीं है जहां विकल्पों (ऑप्शंस) की बिक्री से प्रीमियम का अंतर्प्रवाह होता हो।आरबीआई द्वारा नियुक्त की गई एक कमेटी ने भी कहा कि कंपनियों को मूल्य कम करने वाले डेरिवेटिव लेने देन में उनसे जुड़ी जोखिमों को छिपाते हुए शामिल नहीं होना चाहिए।


लेकिन अधिकांश कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में मुख्य रूप से ऐसा ही कारोबार किया। ऐसी कंपनियों के लिए डेरिवेटिव बाजार की नैया पर सवार होकर आसानी से पैसे बनाना तब ज्यादा सरल था जब वे मजबूत होते रुपये को लेकर परेशान थे जिससे उनकी प्रॉफिट मार्जिन प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही थी।


ऐसे 95 प्रतिशत सौदों से कंपनियां पैसे बनाने में लगी थीं और इस प्रक्रिया में इस प्रक्रिया में वे उस प्रतिशत को 5 प्रतिशत का भूल गई थीं जिनमें जोखिम था।अधिकांश बैंक कंपनियों को ऐसे उत्पाद बेचने के लिए आरबीआई के नियमों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। एक लेखाकर ने बताया, ‘यह देखना दिलचस्प होगा कि नियामक और कंपनी मामले के विभाग ऐसे मामलों के लिए क्या कदम उठाते हैं।’

First Published - April 1, 2008 | 12:12 AM IST

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