भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने संबंधित पक्ष के लेनदेन (आरपीटी) मानकों में अस्पष्टता दूर करने और लेखा परीक्षा रिपोर्टों में पारदर्शिता बढ़ाने के मकसद से कई प्रस्तावों की पेशकश की है। ये कदम ऐसे समय उठाए गए हैं जब आरोप लगे हैं कि कई सूचीबद्ध कंपनियों ने सीमित अनुभव वाले लेखा परीक्षकों को नियुक्त किया है।
सेबी ने सूचीबद्ध कंपनियों की लेखा परीक्षा समितियों से आरपीटी अनुमोदन लेने वाली सहायक कंपनियों के लिए मौजूदा 10 प्रतिशत एकल कारोबार सीमा के साथ-साथ एक मौद्रिक सीमा शामिल करने का सुझाव दिया है। एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध बड़ी कंपनियों के लिए प्रस्तावित सीमा 1,000 करोड़ रुपये और लघु एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) के लिए 50 करोड़ रुपये है।
बिना वित्तीय रिकॉर्ड वाली सहायक कंपनियों के लिए सीमा स्टैंडअलोन नेटवर्थ के 10 प्रतिशत पर निर्धारित की जाएगी, जिसकी गणना अनुमोदन से तीन महीने पहले की जाएगी। यदि किसी सहायक कंपनी की नेटवर्थ नकारात्मक है, तो सेबी ने अपने परामर्श पत्र में संबंधित नेटवर्थ के 10 प्रतिशत के बजाय शेयर पूंजी और प्रतिभूति प्रीमियम का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
नियामक ने स्पष्ट किया है कि जिन सहायक इकाइयों के खाते सूचीबद्ध होल्डिंग कंपनी के साथ संयुक्त हैं, उन्हें आरपीटी मंजूरी की जरूरत से अलग रखा जाएगा। सेबी लेखा परीक्षा समितियों के लिए यह भी जरूरी कर सकता है कि वे वैधानिक लेखा परीक्षकों के हस्ताक्षर करने वाले साझेदारों की योग्यताओं और अनुभव की समीक्षा करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सूचीबद्ध कंपनी के आकार के अनुरूप हैं।
सेबी का कहना है, ‘हाल के समय में ऐसे आरोप सामने आए हैं कि कुछ बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों के वित्त का ऑडिट कम या अनुभवहीन वाले लोगों या कंपनियों ने किया है।’ हालांकि उद्योग के विशेषज्ञों ने सेबी के तर्क को तो स्वीकार किया है लेकिन उन्होंने अन्य पहलुओं पर चिंता जताई है।
कैटालिस्ट एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक केतन दलाल ने कहा, ‘हस्ताक्षर करने वावा साझेदार फर्म को छोड़ सकता है और टीम की कुल गुणवत्ता हमेशा दस्तखत करने वाले साझेदार की योग्यता को प्रदर्शित नहीं भी कर सकती है। कुछ कंपनियों जैसे बैंक या बीमाकर्ता, को क्षेत्र-विशिष्ट विशेषज्ञता की भी आवश्यकता होती है। लिहाजा, वर्षों वाला अनुभव कम महत्त्वपूर्ण हो जाता है।’
सेबी ने ऑडिटर की नियुक्ति से पहले जरूरी न्यूनतम खुलासों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी है। इसमें प्रमोटरों के साथ पिछला कोई संबंध, अन्य सूचीबद्ध फर्मों या समूह कंपनियों के नाम, जिनका वे ऑडिट करते हैं, उनके अनुभव के वर्ष और उनके खिलाफ कोई नियामक आदेश आदि शामिल हैं। कंपनियों को संयुक्त आधार पर सेक्रेटरियल ऑडिटर को भुगतान की गई कुल फीस का भी खुलासा करना होगा। सेबी ने सालाना रिपोर्ट में एनुअल सेक्रेटरियल कॉम्पलायंस रिपोर्ट का अनिवार्य तौर पर खुलासा करने का भी प्रस्ताव रखा है।