पिछले कुछ सप्ताहों में अच्छी तेजी के बाद बाजार की रफ्तार थमती दिख रही है। जूलियस बेयर इंडिया के प्रबंध निदेशक (MD) एवं वरिष्ठ सलाहकार उन्मेश कुलकर्णी ने मुंबई में पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि बाजार धारणा पर हालात चुनाव को देखते हुए भी नवंबर-दिसंबर के आसपास ज्यादा स्पष्ट होंगे। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या बाजारों को अभी भी वैश्विक मंदी की आशंका सता रही है?
अमेरिका में मंदी की आशंका अब बढ़कर करीब 50 प्रतिशत हो गई है, जो जनवरी-फरवरी तक 10-20 प्रतिशत थी। हालांकि यह देखना बाकी है कि उधारी परिदृश्य कैसा रहेगा। इससे जुड़ी अनिश्चितता से वैश्विक बाजार धारणा प्रभावित होगी, और निवेशक इसके परिणाम से खुद को आसानी से दूर नहीं कर पाएंगे। बाजार वृद्धि से जुड़े कुछ जोखिमों से अवगत है और इनका असर दिख चुका है।
भारत में बाजार धारणा में अचानक बदलाव क्यों आया है?
भारत वैश्विक घटनाक्रम के बीच निवेशकों के लिए पसंदीदा बाजार के तौर पर उभरा है और यहां विकास संभावनाएं ज्यादातर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और बगैर किसी बड़े नकारात्मक बदलाव के ब्याज दर चक्र का प्रबंधन हो रहा है, जबकि दुनिया के अन्य कुछ हिस्सों में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है।
विचार करने के लिहाज से अन्य महत्वपूर्ण कारक है अमेरिकी डॉलर की मजबूती। हमने कई वर्षों से डॉलर के लिए तेजी का बाजार देखा है। इससे न सिर्फ भारत प्रभावित हुआ है बल्कि पिछले दशक के दौरान कई अन्य उभरते बाजारों पर भी प्रभाव पड़ा है। मुख्य उभरते बाजारों में पूंजी प्रवाह इसलिए प्रभावित हुआ था, क्योंकि डॉलर मजबूत बना रहा।
हालांकि, अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात और अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए यह माना जा सकता है कि डॉलर की मजबूती कमजोर पड़ सकता है। इससे उभरते बाजारों में पूंजी प्रवाह के लिए उत्साह बढ़ सकता है। जब तक चीन वैश्विक निवेशकों का भरोसा नहीं हासिल कर लेता, तब तक भारत को फायदा मिलने की संभावना है।
ऐसे कौन से जोखिम हैं, जिनका बाजार पर अभी तक असर नहीं दिखा है?
एक मुख्य जोखिम है वैश्विक मंदी अनुमान से ज्यादा खराब रहने की आशंका। घरेलू तौर पर, अल नीनो और उसके प्रभाव से जुड़ा जोखिम अल्पावधि चिंता है। भूराजनीतिक जोखिम और तेल कीमतों पर उसका प्रभाव वैश्विक बाजारों, खासकर भारत के लिए अन्य चिंता है।
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यदि मौजूदा सरकार 2024 में आम चुनाव के बाद फिर से सत्ता में नहीं लौटी तो हालात कैसे रहेंगे?
चुनाव का बाजारों पर तब तक दीर्घावधि प्रभाव सीमित होता है, जब तक कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में कोई बड़ा बदलाव न किया जाए। चुनाव अल्पावधि में धारणा में बदलाव का काम करते हैं और बाजार में उतार-चढ़ाव को बढ़ावा देते हैं, चाहे यह निराशा की वजह से गिरावट हो या सकारात्मक चुनाव परिणाम के मामले में तेजी हो। हालांकि इस संबंध में प्रभाव का अंदाजा लगाना अभी जल्दबाजी है, क्योंकि चुनाव में करीब एक वर्ष है।
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बाजार धारणा पर ज्यादा स्पष्टता, संभावित तौर पर नवंबर-दिसंबर के आसपास दिखेगी और हालात चुनाव पर निर्भर करेंगे। उस समय के दौरान बाजार में कुछ उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। फिर भी, इन अल्पावधि प्रतिक्रियाओं से संपूर्ण रुझान निर्धारित नहीं हो सकता है।
बैंकिंग अब एक व्यस्त ट्रेडिंग थीम बन गया है। अगला उभरता थीम क्या है?
इन्फ्रास्ट्रक्चर आधारित पहलों (खासकर पूंजीगत खर्च और निर्माण पर आधारित) से जुड़े क्षेत्रों का प्रदर्शन अच्छा रहने का अनुमान है। इनमें सीमेंट और इंजीनियरिंग, खरीद, और निर्माण मुख्य रूप से शामिल हैं। निर्माण और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र भी लंबे समय बाद तेजी दर्ज कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में दो साल पहले फिर से तेजी आनी शुरू हुई है और बढ़ते पूंजीगत खर्च के साथ इनमें ऑर्डर बुक में वृद्धि दर्ज की गई। विचार करने के लिहाज से शहरीकरण भी अन्य मुख्य थीम है।