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DII का दबदबा बढ़ा, बाजार स्वामित्व में FPI से और आगे निकले घरेलू निवेशक

घरेलू निवेशकों का स्वामित्व 17.8 फीसदी की नई ऊंचाई पर पहुंचा, जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का घटकर 17.04 फीसदी रह गया

Last Updated- August 03, 2025 | 9:58 PM IST
Investors

बाजार स्वामित्व के मामले में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) से आगे निकलने के बाद घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने अपना दबदबा अब और मजबूत कर लिया है। प्राइम डेटाबेस के एक विश्लेषण के अनुसार डीआईआई स्वामित्व जून 2025 तक 17.82 प्रतिशत के नए ऊंचे स्तर पर पहुंच गया जो मार्च 2025 के अंत में 17.62 प्रतिशत था। दूसरी ओर, तिमाही के दौरान 38,674 करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश के बावजूद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की हिस्सेदारी 13 साल के निचले स्तर 17.04 प्रतिशत पर आ गई। मार्च 2025 तिमाही के दौरान पहली बार घरेलू निवेशकों का स्वामित्व एफपीआई से ज्यादा हो गया था।

जून तिमाही के दौरान डीआईआई ने घरेलू शेयरों में 1.68 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया, जिसकी मुख्य वजह व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) के जरिये म्युचुअल फंडों को मजबूत खुदरा निवेश मिलना था। अकेले म्युचुअल फंडों ने 1.17 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की जिससे एनएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों में फंडों की हिस्सेदारी रिकॉर्ड 10.56 प्रतिशत तक पहुंच गई।

प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, ‘वह दिन दूर नहीं जब अकेले म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी विदेशी फंडों से ज्यादा हो जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘भारतीय बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक सबसे बड़े गैर-प्रवर्तक शेयरधारक श्रेणी रहे हैं जिनके निवेश निर्णयों का बाजार की समग्र दिशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है।’

डीआईआई, रिटेल निवेशकों और अमीर निवेशकों की संयुक्त मौजूदगी अब पूरे बाजार में 27.4 फीसदी है, जिससे कभी वर्चस्व के लिए चर्चित एफआईआई का दबदबा घट रहा है। देश की सबसे बड़ी संस्थागत निवेशक भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने 3.68 फीसदी स्वामित्व के साथ अपनी हैसियत बरकरार रखी है। पिछली तिमाही में कुछ नरमी के बावजूद बीमा दिग्गज को अपनी ​स्थिति मजबूत बनाए रखने में मदद मिली।

विश्लेषकों का कहना है कि नवीनतम शेयरधारिता पैटर्न भारतीय पूंजी बाजार के उभरते परिदृश्य को और भी ज्यादा स्पष्ट तरीके से बताता है। इसमें घरेलू निवेशक बाजार की दिशा के प्रमुख चालक बन रहे हैं, विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम कर रहे हैं और आत्मनिर्भरता के व्यापक आर्थिक लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठा रहे हैं।

बाजार की गतिशीलता में एक और बदलाव निजी प्रवर्तकों का सूचीबद्ध कंपनियों पर अपनी पकड़ कम करना है। भारतीय बाजारों में निजी प्रवर्तकों के स्वामित्व का हिस्सा आठ साल के निचले स्तर पर पहुंच गया। अब 30 जून, 2025 तक यह घटकर 40.58 प्रतिशत रह गया जो पिछली तिमाही में 40.81 प्रतिशत था।

पिछले तीन वर्षों के दौरान निजी प्रमोटरों की भागीदारी 455 आधार अंक तक घटी है, क्योंकि बाजार में संस्थान लगातार बढ़ रहे हैं। ‘प्रवर्तक’ के रूप में सरकार की हिस्सेदारी मामूली वृद्धि के साथ 9.39 प्रतिशत हो गई। ह​ल्दिया ने कहा, ‘निजी प्रवर्तकों द्वारा बिकवाली तेजी के बाजार में पैसा निकालने, कर्ज घटाने, अन्य जगह निवेश करने जैसे कारणों की वजह से हो सकती है।’

First Published - August 3, 2025 | 9:58 PM IST

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