विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) बाजार में जमकर बिकवाली कर रहे हैं। इस महीने अभी तक एफपीआई इक्विटी बाजार से 10 अरब डॉलर से ज्यादा की निकासी कर चुके हैं। शेयरों के ऊंचे मूल्यांकन की चिंता में विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसे निकालकर सस्ते माने जा रहे चीन के बाजारों में निवेश कर रहे हैं।
यदि एफपीआई की निकासी नहीं रुकी और बाजार में निवेश नहीं बढ़ा तो यह पहली बार होगा जब विदेशी निवेशक किसी एक माह के दौरान भारतीय शेयर बाजार से 10 अरब डॉलर से ज्यादा की निकासी करेंगे।
एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार एफपीआई बीते शुक्रवार तक 82,845 करोड़ रुपये (9.8 अरब डॉलर) के शेयर बेच चुके हैं। सोमवार को उन्होंने 2,262 करोड़ रुपये (27 करोड़ डॉलर) की बिकवाली की, जिससे एफपीआई इस महीने अभी तक 10.07 अरब डॉलर की बिकवाली कर चुके हैं।
इससे पहले कोविड-19 महामारी के दौरान मार्च 2020 में एफपीआई ने सबसे ज्यादा 7.9 अरब डॉलर की बिकवाली की थी। अचानक भारी बिकवाली और आर्थिक अनिश्चितता के कारण उस समय सेंसेक्स और निफ्टी करीब 23 फीसदी टूट गए थे। मगर इस बार भारी बिकवाली के बावजूद निफ्टी 50 सूचकांक 4 फीसदी और सेंसेक्स 3.7 फीसदी नीचे आया है।
घरेलू संस्थागत निवेशकों का मजबूत प्रवाह विदेशी बिकवाली की काफी हद तक भरपाई कर रहा है। अक्टूबर में घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 77,000 करोड़ रुपये की शुद्ध लिवाली की और इस साल अभी तक वे 4.1 लाख करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीद चुके हैं।
अवेंडस कैपिटल अल्टरनेट स्ट्रैटजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘कोई उम्मीद नहीं कर रहा था कि चीन में कुछ सकारात्मक हो रहा है। वहां के बाजार का प्रदर्शन भी कमजोर था। विदेशी निवेशक भारत को पसंद करते हैं मगर ऊंचा मूल्यांकन उन्हें नहीं भाता। चीन की सरकार द्वारा प्रोत्साहनों की घोषणा से वहां के बाजारों में तेजी आई है। पश्चिम एशिया में तनाव और तेल के दाम भारत के बाजार को प्रभावित कर रहे हैं। अमेरिका के आर्थिक आंकड़ों से इसकी चिंता बढ़ गई है कि ब्याज दरें तेजी से नहीं घटेंगी।’
मैक्वायरी ने पिछले हफ्ते एक नोट में कहा था, ‘भारत के शेयरों को तीन प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में नरमी, प्रति शेयर उच्च आय की उम्मीद (17 फीसदी) और ऐतिहासिक रूप से उच्चतम गुणक (23 गुना)।’ कई बड़ी कंपनियों के नतीजे अनुमान के अनुरूप नहीं रहने से भी निवेशकों की चिंता बढ़ी है।
इसके अलावा इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से भी निवेशकों में घबराहट है क्योंकि दोनों के बीच विवाद बढ़ने से तेल के दाम और वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है। निवेशकों को डर है कि ईरान होर्मुज स्ट्रेट को अवरुद्ध कर सकता है, जिसके जरिये दुनिया भर में एक-तिहाई कच्चे तेल की आपूर्ति होती है। ब्रेंट क्रूड इस महीने 3.6 फीसदी बढ़कर 74 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है।
पिछले सप्ताह अमेरिका से आए मजबूत आर्थिक आंकड़ों को देखते हुए निवेशकों ने फेडरल रिजर्व द्वारा नवंबर में संभावित दर कटौती पर दांव लगाना बंद कर दिया।
आगे चीन, पश्चिम एशिया में तनाव और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे एफपीआई प्रवाह को प्रभावित करेंगे।
हॉलैंड ने कहा, ‘अगर अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जात होती है तो उन्होंने चीन और यूरोप से आने वाले उत्पादों पर भारी शुल्क लगाने की बात कही है। इससे अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और वृद्धि दर पर असर पड़ सकता है। दूसरी ओर इससे चीन भी प्रभावित होगा जिसका फायदा भारत को मिल सकता है। मगर बाजार को इससे ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में ज्यादातर बाजारों में गिरावट आएगी।’
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि 10 अरब डॉलर की बिकवाली बड़ी है मगर मौजूदा पृष्ठभूमि को देखते हुए इसे कम कहा जा सकता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज में रिटेल शोध प्रमुख सिद्धार्थ खेमका ने कहा, ‘बिकवाली के आंकड़ा बड़ा है। लेकिन भारत का बाजार पूंजीकरण भी बढ़ा है और नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसके साथ ही घरेलू निवेशकों की ओर से लगातार निवेश बना हुआ है जो एफपीआई की बिकवाली की काफी हद तक भरपाई कर रहा है।’