बीएसई के लेनदेन शुल्क पर बाजार के कई प्रतिभागियों ने चिंता जताई है। उनका आरोप है कि यह बाजार नियामक सेबी के ट्रू टु लेबल सर्कुलर के अनुसार नहीं है। उनका तर्क है कि बीएसई विभिन्न सेगमेंटों में शेयरों के लिए अलग-अलग शुल्क ले रहा है जो सेबी के समान शुल्क के नियमों के खिलाफ है।
पिछली जुलाई में सेबी ने सभी शेयर ब्रोकरों के लिए मानक लेनदेन शुल्क अनिवार्य किए थे जिससे वॉल्यूम आधारित मूल्य निर्धारण स्लैब खत्म हो गए। लेकिन ब्रोकरों का दावा है कि बीएसई ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर अलग-अलग शुल्क लगाना जारी रखे हुए है और शेयरों को एक्सक्लूसिव और नॉन-एक्सक्लूसिव ग्रुप में वर्गीकृत करता है।
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एक ब्रोकर ने कहा, सेबी के सर्कुलर का मकसद सबको बराबरी के अवसर उपलब्ध कराना था। लेकिन बीएसई के वर्गीकरण-आधारित शुल्क इस भावना के विरुद्ध हैं। इसके लिए नियामक के हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएसई का शुल्क एनएसई की तुलना में अधिक है। लेकिन एनएसई अतिरिक्त निवेशक सुरक्षा निधि ट्रस्ट (आईपीएफटी) शुल्क लगाता है।
बाजार प्रतिभागियों के अनुसार बीएसई के ग्रुप ‘ए’ या ‘बी’ में ज्यादा वॉल्यूम वाले शेयरों पर 0.00375 फीसदी का कम शुल्क लगता है जबकि कम वॉल्यूम वाले समूहों पर 0.1 फीसदी तक का शुल्क लगता है। बीएसई ने सवालों के जवाब में कहा कि उसके शुल्क पारदर्शी हैं तथा सेबी के आदेश को पूरा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके सदस्यों पर लगाया गया शुल्क सीधे अंतिम ग्राहक तक पहुंचे तथा इसमें कोई छिपी हुई छूट या रियायत नहीं दी जाती।
बीएसई प्रवक्ता ने कहा, जो शेयर ‘एक्स’ और ‘एक्सटी’ समूहों का हिस्सा हैं, वे विशेष रूप से बीएसई पर सूचीबद्ध हैं और आम तौर पर उनमें तरलता कम होती है। निवेशकों के हितों की रक्षा करने और निवेशकों को ऐसी प्रतिभूतियों में अत्यधिक व्यापार करने से रोकने के मकसद से 2016 से इस श्रेणी के शेयरों पर अलग-अलग शुल्क लगाए जा रहे हैं। इन समूहों का हिस्सा होने का मतलब गैर-अनुपालन नहीं है। ये शेयर नियामकीय निगरानी के भी अधीन हैं। इस बारे में सेबी को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिल सका।