Stock Market: भारतीय शेयर बाजारों में फिलहाल ठोस भरोसे की कमी है। पॉजिटिव माहौल को हाल के महीनों में कमजोर होते मैक्रोइकनॉमिक डेटा, कंपनियों के कमजोर नतीजे और बदलते वैश्विक हालात ने प्रभावित किया है। बर्नस्टीन (Bernstein) के एनालिस्ट्स ने इनवेस्टर्स कॉन्फ्रेंस के बाद एक नोट में यह कहा है।
हालांकि, बर्नस्टीन ने निफ्टी का टारगेट 2025 के अंत तक 26,500 स्तर पर बरकरार रखा है। यह मौजूदा स्तरों से केवल 5% की संभावित बढ़त दिखाता है। लेकिन उनका मानना है कि मौजूदा आईपीओ की भारी भीड़ बाजार की तेजी को सीमित कर सकती है। वहीं, भारतीय संदर्भ में ब्रोकरेज हाउस ने फाइनेंशियल्स, टेलीकॉम और कंजम्पशन चेन के कुछ हिस्सों को अपनी प्रमुख पसंद बताया है।
कैलेंडर ईयर 2025 में अब तक 74 कंपनियों ने प्राइमरी मार्केट से कुल 85,241.08 करोड़ रुपये जुटाए हैं। यह आंकड़ा पिछले कुछ दिनों में खुले तीन बड़े IPO को छोड़कर है। डेटा के अनुसार, यह पिछले पांच वर्षों में प्राइमरी मार्केट से जुटाई गई तीसरी सबसे बड़ी रकम है।
हाल के दिनों में WeWork India, Tata Capital और LG Electronics India ने अपने पब्लिक इश्यू लॉन्च किए हैं। ये तीनों कंपनियां मिलकर 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जुटाने की योजना बना रही हैं। ऑफर डॉक्युमेंट्स के अनुसार, Tata Capital लगभग 15,511.87 करोड़ रुपये, LG Electronics India 11,607 करोड़ रुपये और WeWork India करीब 3,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी में हैं।
गैरे ने अपनी इनवेस्टर मीटिंग्स के बाद लिखा कि एक प्रमुख निष्कर्ष यह रहा कि भारत को लेकर विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की दिलचस्पी काफी कम है। साल 2025 में अब तक भारत से करीब 18 अरब डॉलर का निवेश बाहर जा चुका है। इस माहौल में भारतीय शेयर बाजार एशिया के अन्य बाजारों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन कर रहे हैं। अब तक इस कैलेंडर ईयर में निफ्टी में सिर्फ 5% की बढ़त देखने को मिली है।
डेटा के अनुसार, इस दौरान दक्षिण कोरिया का कॉपी इंडेक्स 48%, ताइवान का TAIEX 17.3% और चीन का शंघाई कंपोजिट इंडेक्स 16% ऊपर रहे। यह भारतीय बाजारों से कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन है।
गैरे का मानना है कि विदेशी निवेशकों (FIIs) की वापसी के लिए कुछ बुनियादी चीजें जरुरी हैं। भारत को लंबी अवधि के ग्रोथ ड्राइवर्स की स्पष्ट और ठोस पोजिशनिंग चाहिए। यह फिलहाल थोड़ी धुंधली दिख रही है। अगर भारत और अमेरिका के बीच कोई बड़ी ट्रेड डील होती है, तो यह भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है और रुपये में गिरावट का जोखिम भी कम हो सकता है। साथ ही या तो वैल्यूएशन में सुधार होना चाहिए या फिर कंपनियों की कमाई में स्थिर और भरोसेमंद ग्रोथ दिखनी चाहिए।
गैरे ने कहा कि भारत की अगली ग्रोथ स्टेज के तीन स्तंभ मैन्युफैक्चरिंग, सर्विस सेक्टर और डिजिटलीकरण…तीनों ही इस समय कुछ न कुछ चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनमें कुछ कारण भू-राजनीतिक हैं, जबकि कुछ भारत में इनोवेशन और राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कंपनियों को बनाने की नीति के अभाव से जुड़े हैं।
अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता नहीं हो पाता, तो बर्नस्टीन का मानना है कि ‘चाइना प्लस वन’ की स्ट्रेटेजी कमजोर पड़ सकती है। इससे भारत एक प्रतिस्पर्धी बनने के बजाय चीनी उत्पादों और निवेश के लिए सिर्फ एक बाजार बनकर रह जाएगा।
गैरे ने यह भी लिखा कि सर्विस सेक्टर्स को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के तेजी से अपनाए जाने के कारण अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। जबकि डिजिटलीकरण (digitization) आज भी ज़रूरी है, लेकिन इस पर अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियों का वर्चस्व है और भारत खुद के डिजिटल इकोसिस्टम पर नियंत्रण पाने में संघर्ष कर रहा है। वहीं, यह भी बड़ा सवाल है कि क्या भारत पर्याप्त अच्छी नौकरियां और वास्तविक वेतन वृद्धि पैदा कर पाएगा, जिससे लोगों का भरोसा बना रहे।
नोट के अनुसार, ‘इंडिया बुल्स’ अभी भी उम्मीद लगाए हुए हैं कि अमेरिका के साथ टैरिफ मामले का जल्द समाधान निकलेगा। इससे वर्तमान 50 प्रतिशत टैरिफ को घटाकर 25 प्रतिशत किया जा सकेगा, जो निवेशकों के लिए ज्यादा स्वीकार्य होगा।
सकारात्मक पहलू यह है कि मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े सेक्टर निवेश को आकर्षित करना जारी रखेंगे। इसके अलावा, चीन और भारत के बीच बेहतर संबंध तकनीक और पूंजी तक पहुंच को आसान बना सकते हैं, जो लंबी अवधि में रणनीतिक जोखिमों के बावजूद, छोटे और मध्यम अवधि में नौकरी पैदा करने के लिहाज से फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
नोट में आगे कहा गया, ‘सिस्टम की लिक्विडिटी में सुधार, एक अवधि के निष्क्रियता के बाद नीतिगत बदलाव और संभावित ब्याज दर कटौती की गुंजाइश आर्थिक जोखिमों को कम करने में मदद करती है। हमारा बुनियादी अनुमान भारत के लिए 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की स्थिर प्रवृत्ति बनी रहने का है।’