परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) को अपनी नई फंड पेशकशों (एनएफओ) में ज्यादा निवेश करने के भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निर्देश से इस उद्योग को नई पेशकशों की राह पर धीमी गति से बढऩे के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।
मौजूदा समय में, एएमसी को किसी एनएफओ के दौरान उगाही जाने वाली राशि का एक प्रतिशत या 50 लाख रुपये (जो भी कम हो) का निवेश करना होता है। सेबी बोर्ड ने मंगलवार को कहा कि परिसंपत्ति प्रबंधकों को योजना के साथ जुड़े जोखिम के आधार पर न्यूनतम राशि का निवेश करना होगा।
नई रूपरेखा से संबंधित सर्कुलर जल्द ही जारी किए जाने की संभावना है। हालांकि उद्योग की कंपनियों का कहना है कि निवेश सीमा मौजूदा स्तर के मुकाबले कई गुना बढ़ सकती है।
इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि फंड हाउसों से सक्रिय रूप से प्रबंधित इक्विटी योजनाओं के लिए कुल परिसंपत्तियों का करीब 10-20 आधार अंक और डेट फंडों के लिए 5-10 आधार अंक निवेश करने को कहा जा सकता है।
सही मात्रा योजना की श्रेणी और उससे संबंधिज जोखिम पर निर्भर करेगी। उदाहरण के लिए, निवेश सीमा अल्ट्रा-शॉर्ट फेंडों या लिक्विड फंडों के लिए कम होगी, जबकि डेट श्रेणी के तहत शामिल क्रेडिट रिस्क फंडों के लिए ज्यादा होगी।
इसी तरह, इक्विटी श्रेणी में, पैसिव फंड कम निवेश सीमा के दायरे में होंगे, जबकि ऐक्टिव फंडों के लिए यह सीमा ज्यादा होगी।
इस उद्योग के एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘मौजूदा समय में, यदि किसी योजना का प्रदर्शन कमजोर रहता है तो फंड हाउसों को उनकी फीस लगातार मिलती है। यदि एएमसी बड़ी राशि का निवेश करती हैं तो उनका हित निवेशकों के अनुरूप होगा।’
उद्योग की कंपनियों का मानना है कि यह पहल आधुनिक प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों और प्रतिष्ठित फंड हाउसों के बीच ज्यादा असमानता ला सकती है।
उद्योग के जानकारों का यह भी कहना है कि नियामक पिछले कुछ महीनों में फंड हाउसों द्वारा पेश किए गए कई एनएफओ पर नजर लगाए हुए हैं। एएमसी ने पिछले 6 महीनों में करीब 60 एनएफओ पेश किए और इक्विटी बाजारों में तेजी के बीच करीब 27,000 करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई। इस उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस कदम से एमएफ कंपनियों के बीच ज्यादा गंभीरता दिखेगी।’