अदाणी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग की शोध रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले और बाद में कथित शॉर्ट-सेलिंग के संबंध में घरेलू और विदेशी दोनों ही तरह की एक दर्जन से अधिक कंपनियां नियामक के निशाने पर आ गई थीं। इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने यह जानकार दी।
पिछले कुछ साल में अदाणी ग्रुप के शेयर मूल्यों में इजाफे की जांच करने वाला भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) इन कंपनियों के कारोबारी आंकड़ों और कारोबार के स्वरूप की भी जांच कर रहा है, जो कथित रूप से शॉट-सेलिंग में शामिल रहीं और खासा मुनाफा कमाया।
एक सूत्र ने कहा कि इन कंपनियों के कारोबारी स्वरूप के विश्लेषण में हिंडनबर्ग प्रकरण से पहले और बाद में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का मुनाफा नजर आया है।
उन्होंने कहा कि नियामक इन कंपनियों द्वारा जुटाई गई रकम के स्रोत और नियामकीय खुलासे तथा इस बात की जांच कर रहा है कि क्या प्रतिभूति कानूनों का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं। सेबी ने टिप्पणी के लिए भेजे गए बिजनेस स्टैंडर्ड के ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद से अदाणी समूह की सात सूचीबद्ध कंपनियों के मूल्य में लगभग 135 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है, हालांकि समूह ने किसी भी गलत कार्य से इनकार किया है। अदाणी ग्रुप के शेयर दिसंबर से ही दबाव में थे। कई लोगों ने सोचा कि वैश्विक बॉन्ड बाजार में कमजोरी की वजह से ऐसा है।
सूत्रों ने कहा ‘सेबी इस बात की जांच कर रहा है कि क्या जांच के दायरे में आने वाली कंपनियों को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की भनक थी।’ जब बॉन्ड बाजार दबाव में होता है, तो अधिक ऋण जोखिम वाली कंपनियों के शेयर प्रभावित होते हैं, खास तौर पर अगर वे वायदा और विकल्प खंड में हों।
नियामकीय भाषा में शॉर्ट-सेलिंग के तहत आम तौर पर निवेशक शेयर उधार लेते और बेचते हैं, इस उम्मीद से कि वे उन्हें उधारदाताओं को लौटाने से पहले कम कीमत पर वापस खरीदेंगे। वे शुरू में अधिक बिक्री मूल्य और बाद में कम खरीद मूल्य के बीच के अंतर पर लाभ कमाते हैं।
भारत में नेक्ड शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं है, जिसमें पहले उधार लिए बिना शेयर बेचना शामिल होता है। कुछ विकसित बाजारों में ऐसी स्थितियां संभव होती हैं।