भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) दक्षिण एशियाई क्षेत्र की 20-50 शीर्ष कंपनियों को छांट कर उनका अध्ययन करेगी कि वर्तमान नियमों के अनुसार वे आईडीआर (इंडियन डिपोजिटरी रिसीट) के योग्य हैं या नहीं।
नियामक अपने इस प्रयास से समझना चाहता है कि कई नियमों को नरम करने के बावजूद विदेशी कंपनियां इंडियन डिपोजिटरी रिसीट के मार्ग को क्यों नहीं अपना रही हैं।कई बार संशोधित किए जाने के बावजूद यह मार्ग (आईडीआर) किसी देश के एक भी निर्गम जारीकर्ता को आकर्षित नहीं कर पाया है।
सूत्रों के अनुसार, इसलिए यह सुझाया गया कि क्यों न नियामक दक्षिण एशियाई क्षेत्र से 20-50 संभावित कंपनियों को छांट कर इन कंपनियों पर पात्रता के नियम लागू करे ताकि यह समझा जा सके कि संशोधन किए जाने के बावजूद कहीं ये नियम जारीकर्ताओं के लिए ज्यादा सख्त तो नहीं हैं।
आईडीआर अमेरिकी डिपोजिटरी रिसीट (एडीआर) और ग्लोबल डिपोजिटरी रिसीट (जीडीआर) के भारतीय रूप हैं जिसके तहत विदेशी कंपनियों को इक्विटी पेशकश के जरिये और भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबध्द होकर भारतीय बाजार से कोष जुटाने की अनुमति दी जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय बाजार में पर्याप्त तरलता है फिर आईडीआर के प्रचलित न होने का कोई विशेष कारण नहीं दिख पड़ता है। ऐसा हो सकता है कि विदेशी जारीकर्ताओं के लिए भारतीय बाजार अन्य एशियाई बाजारों की तुलना में अभी भी कम आकर्षक हो।
एक इन्वेस्टमेंट बैंकर ने कहा, ‘ऐसे मामलों में जारीकर्ता साधारणत: झुंडों का अनुसरण करते हैं। इसलिए अब बात होती है कि पहले कौन इस रास्ते को अपनाता है।’पिछले वर्ष आईडीआर नियमों में किए गए बड़े संशोधन में नेटवर्थ और बाजार पूंजीकरण को आईडीआर जारीकर्ताओं के पात्रता का मानक बनाने का निर्णय लिया गया जबकि पहले नेटवर्थ और विक्रय राशि पर आधारित मानदंड हुआ करता था।
दिसंबर 2007 में इन नियमों में फिर से संशोधन किया गया और सेबी ने आईडीआर के लिण् न्यूनतम आवेदन मूल्य पहले के दो लाख रुपये से घटा कर 20,000 रुपये कर दिया। दिशानिर्देश में कहा गया है, ‘निर्गम का कम से कम 50 प्रतिशत अभिदान संस्थागत निवेशकों या पात्र संस्थागत खरीदारों (क्यूआईबी) द्वारा होना चाहिए।’
प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया कहते हैं, ‘आईडीआर के विदेशी निर्गम जारीकर्ताओं के बीच प्रचलित न होने का एक कारण इस उत्पाद की मार्केटिंग में कमी भी है। आप लंदन स्टॉक एकस्चेंज, न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, एआईएम या फिर हांग कांग स्टॉक एक्सचेंज को देखिए। विभिन्न देशों में इन्वेस्टमेंट बैंकरों के साथ मिल कर वे नियमित रूप से रोड शो आयोजित करवाते हैं। लेकिन भारत में आईडीआर की मार्केटिंग ठीक से नहीं हुई है।’
यद्यपि बाजार इस खबर को लेकर उत्सुक है कि कुछ कंपनियां इस मार्ग को अपना रही हैं, लेकिन अभी तक कुछ स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है।नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सहायक उपाध्यक्ष के हरि कहते हैं, ‘विभिन्न कंपनियां इस संदर्भ में पूछताछ करती रहती हैं लेकिन अगले चरण में कुछ भी नहीं है और जब कभी हम विदेश यात्रा पर जाते हैं तो व्यावसायिक समुदाय को इस उत्पाद के बारे में जरूर बताते हैं।’ हालांकि, अगर एक विदेशी बैंक की बात पर भरोसा करें तो इस वर्ष के अंत तक एक आईडीआर देखने को मिल सकता है।
क्या है आईडीआर
आईडीआर अमेरिकी डिपोजिटरी रिसीट (एडीआर) और ग्लोबल डिपोजिटरी रिसीट (जीडीआर) का भारतीय रूप है जिसके तहत विदेशी कंपनियों को इक्विटी पेशकश के जरिये और भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबध्द होकर भारतीय बाजार से कोष जुटाने की अनुमति दी जाती है।