बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया में बदलाव पर सुझाव देने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की है।
सूत्रों ने कहा कि फिलहाल समिति मौजूदा बुक बिल्डिंग प्रक्रिया में कमियों का अध्ययन कर रही है। इस पर विचार हो रहा है कि अंतिम मूल्य निर्धारण में चुनिंदा संस्थागत निवेशकों का योगदान रहे और कंपनियों के लिए मूल्य दायरा व्यापक रखना अनिवार्य हो। उन्होंने कहा कि कथित फ्रेंच ऑक्शन मूल्य निर्धारण पद्घति की व्यवहार्यता पर भी विचार किया जा रहा है। इस पद्घति से आधार मूल्य तय किया जाता है और निवेशक इस कीमत से ऊपर बोली लगाते हैं। कुछ का मानना है कि यह पद्घति आज के माहौल में ज्यादा प्रभावी साबित हो सकती है, जहां कई कंपनियों के शेयर दोगुने भाव पर सूचीबद्घ हुए हैं। प्राथमिक बाजार परामर्श समिति (पीएमएसी) के उपसमूह वाली समित महीने भर के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंप सकती है।
मामले के जानकारों का कहना है कि सेबी की प्रमुख चिंता वर्तमान बुक बिल्डिंग प्रक्रिया की प्रभाविता को लेकर है। इसके तहत शेयरों की संख्या के लिए बोलियां और मूल्य सभी निवेशकों से जुटाए जाते हैं। औसत भारांश मूल्य ही निर्गम का अंतिम मूल्य होता है, जिसे कट-ऑफ मूल्य भी कहा जाता है। मूल्य दायरा निचले और ऊपरी मूल्य के बीच अंतर होता है, जो अधिकतम 20 फीसदी रह सकता है। सूत्रों का कहना है कि यह प्रक्रिया केवल सिद्धांत रूप में है और वास्तविक कीमत आईपीओ से काफी पहले तय हो जाती है। एक वरिष्ठ नियामकीय सूत्र ने कहा, ‘बहुत से मामलों में कीमत दायरे की ऊपरी और निचली सीमा में अंतर महज एक रुपये का होता है। इसके अलावा बुक बिल्डिंग की औपचारिक प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही एंकर निवेशकों को शेयरों का आवंटन हो जाता है। इससे बुक बिल्डिंग की प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं रह जाता है। आईपीओ के दौरान मुश्किल से ही कोई ‘कीमत निर्धारण’ होता है।’ एंकर निवेशक ऐसे संस्थान होते हैं, जिन्हें आईपीओ से पहले शेयरों का आवंटन किया जाता है। लगभग सभी मामलों में उन्हें शेयरों का आवंटन आईपीओ के कीमत दायरे के ऊपरी स्तर पर होता है। बहुत से लोगों का मानना है कि इससे आईपीओ के समय कीमत निकालने में अड़चन पैदा होती है।