भारत के बाजार नियामक सेबी ने विभिन्न कस्टोडियन बैंकों से ऑफशोर फंडों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लाभार्थी मालिकों के विवरण सौंपने को कहा है।
अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदाणी समूह पर शेयरों के साथ हेरफेर करने और अनुचित कर प्रणालियों के इस्तेमाल का आरोप लगाने के बाद सेबी ने यह कदम उठाया है। अदाणी समूह ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से अदाणी समूह की सात कंपनियों के शेयरों में भारी बिकवाली आई है। 24 जनवरी के बाद से इन कंपनियों का बाजार पूंजीकरण करीब 100 अरब डॉलर घट गया है। आंकड़े से पता चलता है कि विदेशी निवेशकों ने जनवरी में 288.2 अरब रुपये के भारतीय इक्विटी शेयर बेचे। अधिकारियों ने नाम गुप्त रखने के अनुरोध के साथ बताया कि सेबी ने पिछले सप्ताह कस्टोडियन बैंकों (खासकर विदेशी बैंक, जो एफपीआई के पूंजी प्रवाह का प्रबंधन करते हैं) से मार्च तक इन निवेशकों से संपर्क करने और सितंबर के अंत तक उनके विवरण हासिल करने को कहा था।
सेबी ने इस संबंध में प्रतिक्रिया जानने के लिए रॉयटर्स द्वारा भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया है। एक अधिकारी ने कहा, ‘नियामक ने खासकर ऐसे मामलों में लाभार्थी मालिकों के विवरण मांगे हैं, जिनमें वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी या फंड प्रबंधक ‘बेनीफिशियल ओनर’ के रूप में सूचीबद्ध हो।’ कस्टोडियन बैंकों द्वारा लाभार्थी मालिकों की जानकारी नहीं मुहैया कराए जाने के मामले में, नियामक स्वयं यह मान लेगा कि वे विदेशी फंड अनुचित हैं और उनसे मार्च 2024 तक भारतीय बाजार में अपना निवेश बेचने को कहेगा।
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एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘विदेशी पोर्टफोलियो लाइसेंस के लिए एक प्रमुख शर्त यह है कि निवेशकों को मांगे जाने पर लाभार्थी मालिक का विवरण साझा करने की जरूरत होगी।’ उन्होंने कहा कि मौजूदा मय में कई फंड वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी या फंड प्रबंधक को लाभार्थी मालिक के तौर पर पेश करते हैं जिससे नियामक को कोष के असली मालिक के बारे में स्पष्ट रूप से पता लगाने में मदद नहीं मिल पाती है। मौजूदा समय में 11,000 विदेशी फंड सेबी के साथ पंजीकृत हैं।