भारतीय शेयर बाजार में हाल में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, पिछले महीने सेंसेक्स में करीब 7.2 फीसदी की गिरावट आई है। इस महीने भी बाजार में खूब उतार-चढ़ाव है। कोविड के बाद बाजार में उतरने वाले नए निवेशकों को सावधानी बरतने और जल्दबाजी में फैसले लेने से बचने की जरूरत है।
एफआईआई की बिकवाली
भारतीय बाजार की गिरावट के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। मूल्यांकन काफी अधिक हो चुका है और पिछली तिमाही की कमाई उम्मीद से कमजोर रही। इजरायल-ईरान संघर्ष के बढ़ने की चिंताओं ने निवेशकों को बेचैन कर दिया है। अक्टूबर में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय बाजार में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बिकवाली की। कोविड के दौरान भी ऐसी बिकवाली नहीं दिखी थी।
उतार-चढ़ाव से घबराएं नहीं
ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो बाजार में उतार-चढ़ाव का यह दौर बहुत बड़ा नहीं है। फंड्सइंडिया डॉट कॉम के शोध प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, ‘पिछले 45 वर्षों में केवल चार ऐसे साल रहे जब बाजार में 10 फीसदी से कम गिरावट आई। एक साल में 10 से 20 फीसदी की गिरावट सामान्य बात है।’
उतार-चढ़ाव शेयर बाजार में निवेश का एक अभिन्न हिस्सा है। मनीएडुस्कूल के संस्थापक अर्णव पंड्या ने कहा, ‘निवेशकों को बाजार में उतार-चढ़ाव का अभ्यस्त होने की जरूरत है क्योंकि समय-समय पर ऐसे दौर आते रहेंगे। हाल के दिनों में उन्होंने बाजार को एकतरफा ऊपर जाते हुए देखा है जो वास्तव में विसंगति थी।’ उन्होंने खुदरा निवेशकों को सलाह दी कि वे न तो घबराएं और न ही शेयर बाजार से पीछे हटें, बल्कि तब तक निवेश करते रहें जब तक कि निवेश लक्ष्य हासिल न हो जाए।
पीएल कैपिटल-प्रभुदास लीलाधर के प्रमुख (निवेश सेवा) पंकज श्रेष्ठ ने कहा, ‘लंबी अवधि के लिहाज से गुणवत्तापूर्ण फंडों में निवेश करने वाले निवेशकों को इस गिरावट को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए।’ कुमार ने कहा कि जो लोग मौजूदा गिरावट से अधिक चिंतित हो रहे हैं, वे अपने इक्विटी निवेश को कम करने पर विचार कर सकते हैं।
परिसंपत्ति आवंटन
जोखिम उठाने की अपनी क्षमता और निवेश दायरे के अनुरूप परिसंपत्ति आवंटन को बनाए रखें। पंड्या ने कहा, ‘आम तौर पर निवेशक इक्विटी में ज्यादा आवंटन कर देते हैं। उन्हें अपने पोर्टफोलियो को नए सिरे से संतुलित करने के लिए इक्विटी से कुछ रकम निकालकर डेट में लगाना चाहिए।’
पोर्टफोलियो में स्थिरता लाने और ब्याज दरों में संभावित कटौती का फायदा उठाने के लिए पंड्या डेट म्युचुअल फंड को भी पोटफोलियो में शामिल करने की सलाह देते हैं। श्रेष्ठ ने कहा कि अमेरिका ने ब्याज दरों में कटौती पहले ही कर दी है और भारत में भी ऐसा होने की संभावना है। ऐसे में डेट फंड से अच्छे रिटर्न मिल सकते हैं।
निवेश का मार्केट कैप व्यवस्थित करें
अधिकतर निवेशक मिडकैप और स्मॉलकैप फंडों में अधिक आवंटन करते हैं। मगर मंदी के दौरान इन श्रेणियों में लार्जकैप के मुकाबले अधिक तेजी से गिरावट की आशंका होती है। कुमार ने सुझाव दिया कि मिडकैप और स्मॉलकैप फंडों में निवेश को इक्विटी पोर्टफोलियो के 25 फीसदी अथवा कुल मिलाकर 30 फीसदी (फ्लेक्सी कैप एवं मल्टीकैप फंडों में मिडकैप और स्मॉलकैप निवेश सहित) तक सीमित रखना चाहिए। पंड्या ने कहा, ‘अगर आपने मिडकैप और स्मॉलकैप में काफी अधिक निवेश किया है, तो उसका एक हिस्सा लार्जकैप में स्थानांतरित करें।’
श्रेष्ठ भी फिलहाल लार्जकैप फंडों में निवेश के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा, ‘लार्जकैप श्रेणी मिडकैप और स्मॉलकैप के मुकाबले काफी कम चढ़ी है। इसलिए हमारा मानना है कि निकट भविष्य में इसका प्रदर्शन बेहतर रहने की संभावना है।’
सेक्टर एवं थीमैटिक फंड
सेक्टर और थीमैटिक फंड में निवेश करने और बाहर निकलने के लिए बेहद सटीक समय पर ध्यान देने की जरूरत होती है। कुमार ने कहा, ‘अधिकतर निवेशक सेक्टर एवं थीमैटिक फंड में निवेश ऐसे समय में करते हैं जब वे पहले ही काफी ऊपर चढ़े होते हैं।’
सेक्टर फंड में लंबे समय तक गिरावट दिख सकती है। डायवर्सिफाइड फंड के विपरीत इन फंडों में अक्सर निवेश को अधिक समय तक बरकरार रखने की रणनीति विफल हो जाती है। श्रेष्ठ का मानना है कि ऐसे फंड नए निवेशकों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
पंड्या ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा, ‘अगर आप एक जानकार निवेशक नहीं हैं तो सेक्टर एवं थीमैटिक फंड में निवेश आपके इक्विटी पोर्टफोलियो के 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।’ अगर निवेश ज्यादा है तो उसे कम कर देने में ही बुद्धिमानी है।
श्रेष्ठ ने सुझाव दिया कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये निवेश करना बेहतर रहेगा क्योंकि इससे निवेशकों को बाजार में उतार-चढ़ाव का फायदा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि अगर गिरावट काफी अधिक दिखे तो आप टॉपअप भी कर सकते हैं।