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निवेश करने के लिए मंदी ही सबसे सही समय

Last Updated- December 07, 2022 | 11:42 AM IST

चीन और भारत में निवेश को गति प्रदान करने के लिए अमेरिका स्थित वेंचर कैपिटल वाल्डन इंटरनेशनल अगले साल की शुरुआत में ग्लोबल फंड के लिए कुल 2,150 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रहा है जबकि अगले 12 से 18 महीनों के दौरान भारत में कुल 640 करोड़ रुपये के निवेश करने की योजना है। 


इस फंड के चेयरमैन लिप बु तान और नवनियुक्त निदेशक राजेश सुबमण्यम ने मौजूदा वक्त में निवेश रणनीतियों पर शिवानी शिंदे और रीना जकारिया से बातचीत की। पेश है उनकी बातचीत का ब्यौरा:-

क्या आप यह महसूस करते हैं कि भारत में आपका आगमन थोड़ी देर से हुआ है?

लिप बु:- मुझे नहीं लगता कि हमने बहुत कुछ खो दिया है। हां हम थोड़े धीमे जरुर थे लेकिन ऐसा इसलिए था कि हमारे पास कोई भारतीय साझीदार नही था। लेकिन अब हमारे साथ राजेश सुब्रह्मनयम हैं। लिहाजा आज के ऐलान करने के साथ हम एक बार फिर कहते हैं कि हम भारत पर एक बार फिर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

ऐसा करने के पीछे कारण यह है कि यहां के स्थानीय ग्राहकों का बाजार खासा विकास कर रहा है। सिलिकॉन वैली के उद्यमियों का वापस भारत की ओर लौटने के रुख और बाजार के मिजाज से हमें लगता है कि सस्ती कीमतों वाले डिजाइन की जरुरत है, जो भारत में संभव है।

विशेषकर, अब अमेरिका से ग्राहक एशिया की ओर रुख कर रहे हैं। इसी का तकाजा है कि हमने यहां पैसे का निवेश करने की सोची है और मुझे पूरी उम्मीद है कि अगले दस सालों के बाद मुझे रिटर्न मिलने शुरू हो जाएंगे। मेरा हमेशा से यह सोचना रहा है कि निवेश करने का सबसे बेहतर वक्त मंदी का होता है। यह समय रिक्रूटमेंट और कंपनी के निर्माण दोनो लिहाज से सही होता है। अगले दस से बीस सालों की बात करें तो भारत में बहुत अच्छी कंपनियों का आगमन होना है।

आप भारत में कुल कितना निवेश करने वाले हैं और इस निवेश के एक्जिट ऑप्शंस क्या होंगे?

राजेश:-
हम कुल 1.5 करोड़ डॉलर का निवेश करेंगे। जहां तक सवाल कदम रखने का है तो हम ठीक उस वक्त कदम रखें जब कंपनियां कारोबार की योजनाएं बना रही हो और जहां इसके पास कुछ रेवेन्यू हो। अपने पोर्टफोलियो  कंपनियों में हम कम से कम नौ सालों तक निवेश रखेंगे। बात जहां तक निकासी की है तो यह काम हम ट्रेड सेल या फिर आईपीओ के जरिए कर सकते हैं।

लिप-बु:- मांइड ट्री का उदाहरण लें जिसमें हमारी कुल 17 फीसदी की हिस्सेदारी है और इसमें हमने आठ साल पहले निवेश किया था। लिहाजा जब तक हमारी निवेशित कंपनियां पैसा कमा रही हैं तब तक हम उनके साथ बने रहते हैं। हालांकि ऐसे भी कई उदाहरण हैं जिनमें हम पब्लिक हो चुकी कंपनियों के साथ भी बने रहे।

आपकी उस वक्त क्या प्रतिक्रिया थी जब मांइड ट्री ने 400 करोड़ रुपये में एजटेक्सॉफ्ट कंपनी का अधिग्रहण किया था?

लिप-बु:-अधिग्रहण होने से पहले मैं अशोक सूटा को टेस्टिंग सेगमेंट पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित कर रहा था। क्योंकि यह एक तेज गति से विकास करने वाला बाजार है और कंपनी के पास एक अच्छा अवसर है। ई4ई ने जबकि ऐजटेक्सॉफ्ट में निवेश किया हुआ था और ई4ई में हमनें भी एक छोटा निवेश कर रखा है। उस दौरान ई4ई पूंजी जुटाना चाहता था जबकि अधिग्रहण का काम प्रबंधन के द्वारा किया जा रहा था। जबकि मैं बातचीत का हिस्सा नही था।

भारत में किस प्रकार की चुनौतियां का सामना आपने किया है,खासकर जब प्रोमोटरों ने ज्यादा वैल्यूएशनों की मांग की थी?

लिप-बु:- इस बारे में कुछ संरचनाएं हैं जिन पर काम किया जा सकता है। इसके अलावा जोखिम साझेदारी यानी रिस्क-शेयरिंग से संबंधित सौदे भी किए जा सकते हैं। साथ ही हम उस फार्मूले पर भी सहमत हो सकते हैं जिसके तहत यदि सारे मुनाफे अगर कंपनी ही करे तो फिर इस स्थिति में मेरी मिल्कियत की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।

First Published - July 16, 2008 | 10:29 PM IST

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