शेयरधारक अभी कुछ और शेयरों को 737 रुपये की दर से बेच सकते हैं, जबकि बाकी शेयरों को अपनी सुरक्षा के मद्देनजर अपने पास बरकरार रख सकते हैं।
अभी हालिया तेजी से पहले रैनबैक्सी के शेयर पिछले दो सालों से अपने नाम के अनुरूप प्रदर्शन करने में नाकाम साबित रहे थे। अब दैची सैन्क्यो के 737 रुपये के ओपन ऑफर कीमत पर रैनबैक्सी के शेयरों की हालत और अच्छी हुई है।
अब इसकी कीमत-कमाई अनुपात वाणिज्यिक वर्ष 2008 के आकलन के 32 गुना के स्तर पर है, जबकि वाणिज्यिक वर्ष 2009 की बात करें तो कमाई यह गणित 25 गुना का है। ये दोनो आंकड़े दैची के साथ हुए डील से पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा हैं,क्योंकि इस डील के बाद मिले नकद 4000 करोड़ रुपयों से कंपनी को कर्जमुक्त होने और ब्याज दरों में कमी लाने में मदद मिलेगी।
हालांकि 737 रुपये की कीमत पर यह सौदा महंगा साबित होगा। इसके बावजूद की इस वक्त सेंसेक्स महज 15 गुना के वायदा कमाई पर कारोबार कर रहा है,भले ही डिफेंसिव शेयर कमजोर बाजार के पक्ष में है। शेयरधारकों को चाहिए कि वो अपने खाते के कुछ और शेयरों को बाजार में बिक्री के लिहाज से रखें। मतलब यह कि ऑपन ऑफर के मुताबिक जो शेयरधारक अपने शेयरों को टेंडर करते हैं,तो इस ऑफर में वो अपने तीन में से एक शेयर स्वीकृत होते देख सक ते हैं।
मालूम हो कि रेनबैक्सी के 65 फीसदी से ज्यादा के शेयरों पर कम पूंजी वाले और संस्थागत की हिस्सेदारी है। लेकिन बड़े खिलाड़ियों मसलन एलआईसी की बात करें, जिसकी हिस्सेदारी 15.8 फीसदी है तो शायद 5 फीसदी से ज्यादा शेयर ऑफर न कर सकें। लिहाजा इस वक्त बाजार में छोटे निवेशक ही अपने ज्यादा से ज्यादा शेयरों की बिक्री कर सकेंगे।
इस वक्त अगर किसी निवेशक के पास 560 रुपये की दर से तीन शेयर हैं और एक शेयर को 737 रुपये की दर से बेच सक ने की स्थिति में है तो फिर उसके बाकी के शेयरों की कीमत खुद ब खुद 470 रुपये पर आकर ठहर जाएगी। इस कीमत पर शेयरों के वैल्यूएशन काफी कम हो जाएंगे। वाणिज्यिक वर्ष 2008 के आकलित कमाई का 20 गुना, जबकि 2009 के लिए यह 16 गुना रह जाएगा।
हालांकि शेयरों की कीमतें अभी भी कम न हो, लेकिन इसके दाम तार्किक हैं। विश्व के सबसे बड़े जेनेरिक प्लेयर होने और एक बेहतर कस्टमर बेस होने के चलते कुल 7,837 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाली रैनबैक्सी कंपनी का भविष्य बिल्कुल बेहतर है।
वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी के टॉप लाइन ग्रोथ में 17 फीसदी जबकि वर्ष 2009 के लिए यह ग्रोथ 28 फीसदी इजाफा होने की उम्मीद है। जबकि दैची सैन्कायो भी एक जाना-माना नाम है,लिहाजा दोनों कंपनियां एक-दूसरे को फायदा पहुंचाने में सफल होनी चाहिए।
बैंक-गिरावट का दौर
बीएसई बैंक के सूचकांक में इस साल के शुरूआत से सेंसेक्स के 25 फीसदी के मुकाबले 39 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। इसके अलावा इस करेले पर नीम चढ़ाने का काम महंगाई कर रही है, जिसके चलते खुदरा ग्राहक और अन्य लोग कर्ज लेने से हिचकेंगे।
लिहाजा,रिजर्व बैंक के द्वारा रेपो रेट बढ़ाये जाने का साफ मतलब है कि कर्मशियल बैंकों को ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी होगी। मालूम हो कि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 25 फीसदी का इजाफा किया है। सबसे अहम बात है कि अगर तरलता कम होती है तो फिर बैंकों को चाहिए कि वह डिपॉजिट रेट में वृद्धि करें, खासकर दो से तीन साल की अवधि वाले रकम के मामलों में।
लिहाजा जब तक बैंक पैसे की महंगी लागत को बड़े लेनदारों की ओर स्थानांतरित नही करते,तब तक स्प्रेस्ड्स पर दवाब बना रहेगा। मार्च में क्रेडिट ग्रोथ भले ही तार्किक तौर पर मजबूत हुई हो मगर,इसके कुछ हिस्सों से उसी दौरान महंगे क्रूड को खरीदने में लगा दिया गया। इसके अलावा खुदरा,कृषिगत कर्ज से संबंधित डेलिक्वेंसी के चलते दरों में इजाफे का रूख बना हुआ है।
लिहाजा इस पूरे साल के दौरान स्प्रैस्ड्स दवाब में बने रहने के आसार हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के वैल्यूएशनों की बात करें तो इस वक्त जयादातर बैंकों के वैल्यूएशन काफी सस्ते हैं और वो वित्तीय वर्ष 2009(एक गुना) के आकलित बुक वैल्यू के 0.6 गुना पर कारोबार कर रहे हैं।
1310 रुपये की दर से स्टेट बैंक वायदा बुक वैल्यू से महज एक गुना ऊपर पर कारोबार कर रहे हैं जबकि आईसआईसीआई बैंक 742 रुपये पर 1.6 गुना पर और एचडीएफसी वित्तीय वर्ष 2009 के आकलित मूल्य से 3 गुना पर काम कर रहा है।