ज्यादा से ज्यादा प्राइवेट इक्विटी फंड अब तेजी से बढ़ रहे एनर्जी सेक्टर में पैसा लगा रहे हैं।
इस साल के पहले पांच महीनों में पीई फंडों ने इस सेक्टर में कुल 99 करोड़ डॉलर का निवेश किया है जबकि पिछले साल इस अवधि में पीई फंडों ने इस सेक्टर में कुल 4.5 करोड़ डॉलर का ही निवेश किया था।
प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल का काम करने वाली चेन्नई की रिसर्च सर्विस फर्म वेंचर इंटेलिजेंस के सीईओ अरुण नटराजन के मुताबिक एनर्जी सेक्टर, खासकर पावर सेक्टर में पीई फंडों की रुचि दिनों दिन बढ़ती जा रही है। उनके मुताबिक पिछले साल यानी 2007 के पहले पांच महीनों में 4.5 करोड़ डॉलर की केवल दो ही डील हुई थीं जबकि इस साल इस अवधि में 99 करोड़ डॉलर की कुल 11 डील हुईं।
जनवरी से मई 2008 के बीच जो बडी ड़ील हुई हैं उनमें फारलॉन कैपिटल, एल एन मित्तल इंडिया और इंटरनेट वेंचर्स इन्वेस्टमेंट का इंडियाबुल्स पावर सर्विसेस में फरवरी 2008 में किया गया 39.5 करोड़ डॉलर का निवेश शामिल है। इसके अलावा कोनासीमा गैस डील हुई जिसमें आईडीएफसी प्राइवेट इक्विटी और लीमान ब्रदर्स का मई 2008 में किया गया 12.5 करोड़ डॉलर का निवेश शामिल है।
अप्रैल 2008 में केएलजी पावर की पांच करोड़ की डील भी शामिल है जिसमें डीपीजी ग्रोथ ने पैसा लगाया था। बैरिंग प्राइवेट इक्विटी इंडिया के इन्वेस्टमेंट हेड कार्तिकेयन रंगनाथन के मुताबिक एनर्जी सेक्टर में रिन्यूएबल और पावर इक्विपमेंट इन पीई निवेशकों में बडा आकर्षण रहा है। यह फंड भारत में एक अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रहा है जिसमें से काफी बड़ा हिस्सा एनर्जी सेक्टर में होगा।
नटराजन के मुताबिक आगे भी मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर पाटने के लिए एनर्जी सेक्टर में निवेश की गुना बढ़ेगा और पीई फंडों की इस सेक्टर में बढ़ती रुचि इसी बात का संकेत है। भारत को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए करीब 70,000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की जरूरत होगी और बिजली और गैस के वितरण समेत इस सेक्टर में करीब 155 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी।
योजना आयोग को उम्मीद है कि सालाना आधार पर इस सेक्टर में निजी भागीदारी 25 फीसदी की दर से बढ़ेगी जिससे इस सेक्टर में अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट लगाने में मदद मिलेगी। केपीएमजी इंफ्रास्ट्रक्चर एडवायजरी ग्रुप ने हाल में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है भारत को बिजली बनाने की अपनी क्षमता (मौजूगा क्षमता 135 गीगावाट की) 2015 तक दोगुनी करनी होगी।
इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 के तहत बिजली क्षेत्र में व्यापक बदलाव भी किये जा रहे हैं जिससे कि इस क्षेत्र को प्रतियोगी बनाया जा सके और निजी भागीदारों की इसमें रुचि बढ़े। 2002 से कुछ प्रमुख डील्स को देखने से एक बात साफ होती है कि इनमें से 94 करोड़ डॉलर की 14 डील उत्तरी भारत के बाजारों में हुई हैं जबकि 74 करोड़ डॉलर की 26 डील दक्षिण में, करीब 76.5 करोड़ डॉलर की 12 डील पश्चिम में और केवल 4 करोड़ डॉलर की दो डील पूर्वी भारत में हुई हैं। दक्षिण में हुई ज्यादातर डील विंड और बायोडीजल सेगमेंट में हुई हैं।