देश के दो प्रमुख शेयर बाजारों-एनएसई और बीएसई पर हुई खरीद-फरोख्त की संख्या वित्त वर्ष 2025 में 10 अरब के पार पहुंच गई। वित्त वर्ष 2025 के दौरान एनएसई पर नकद बाजार में खरीद-फरोख्त के 9.7 अरब सौदे हुए। एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज बीएसई पर अतिरिक्त 1 अरब ट्रेड को अंजाम दिया गया। विश्लेषण में दोनों एक्सचेंजों के आंकड़ों पर विचार किया गया क्योंकि उनके पास वर्षों से भारत में जारी शेयर कारोबार गतिविधियों का हिस्सा है।
1990 के दशक से चलें तो दोनों के ही आंकड़े अभी सबसे अधिक हैं। दोनों एक्सचेंजों में वर्ष 1999-2000 में 0.1 अरब यानी 10 करोड़ सौदे हुए थे। वित्त वर्ष 2025 के दौरान उतार-चढ़ाव के बावजूद इस संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। एनएसई पर सौदों की संख्या में साल-दर-साल 42.1 प्रतिशत और बीएसई पर 25 फीसदी का इजाफा हुआ है।
बीएसई ब्रोकर्स फोरम के पूर्व उपाध्यक्ष और चूड़ीवाला सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक आलोक चूड़ीवाला ने कहा कि प्रौद्योगिकी के कारण उपलब्धता में वृद्धि, मशीन-ट्रेडिंग में बढ़ोतरी और इक्विटी बाजारों के प्रति निवेशकों के बढ़ते आकर्षण ने संभवतः सौदों की गतिविधियों में योगदान दिया है। उन्होंने कहा, ‘बाजारों में जुनून जैसी दिलचस्पी है।’ हाल के उतार-चढ़ाव ने ट्रेडिंग के लिए अवसर भी पैदा किए हैं।
वैश्विक बाजारों में भूराजनीतिक तनाव के साथ साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के व्यापार शुल्कों से भी उठापटक बढ़ी है। चूड़ीवाला के अनुसार अन्य निवेश विकल्पों के अभाव ने निवेशकों को अतिरिक्त रिटर्न के लिए ट्रेडिंग के प्रति आकर्षित किया है। चूड़ीवाला ने बताया कि पहले ट्रेडिंग के लिए ब्रोकर के दफ्तरों में फोन करके ऑर्डर देना पड़ता था, लेकिन अब बस का इंतजार करते हुए भी मोबाइल फोन एप्लीकेशन के जरिये यह काम किया जा सकता है।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा का मानना है कि वित्त वर्ष 2025 के दौरान बाजार में हाल के उतार-चढ़ाव ने निवेशक दृष्टिकोण को प्रभावित किया है।
उन्होंने कहा, ‘बहुत से लोग निवेश करने के बजाय शॉर्ट-टर्म टेडिंग कर रहे हैं जिससे ट्रेडों की संख्या अधिक है।’ उन्होंने कहा कि बढ़ते निवेशक आधार की भी इसमें भूमिका है। निवेशक खातों की संख्या वित्त वर्ष 2025 में 4.1 करोड़ तक बढ़ी है। कोविड के बाद से ही इस आंकड़े में 15.6 करोड़ का इजाफा हुआ है।
बाजार विश्लेषकों के अनुसार बढ़ती एल्गोरिदम गतिविधियां भी एक प्रमुख कारण है। मार्च में प्रकाशित एनएसई अध्ययन में कहा गया है कि एनएसई कैश मार्केट में अधिकांश शेयरों का कारोबार अब एल्गोरिदम के माध्यम से होता है। एल्गोरिदम की मदद से प्रति सेकंड सैकड़ों हजारों ऑर्डर दिए जा सकते हैं।
इस फॉर्मेट में डेरिवेटिव के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन बाजार नियामक सेबी द्वारा सटोरिया गतिविधियां घटाने और छोटे निवेशकों की सुरक्षा के लिए नियम सख्त बनाने के बाद डेरिवेटिव कारोबार में कमी आई है। नियामक ने डेरिवेटिव के लिए न्यूनतम अनुबंध आकार के हिसाब से बढ़ाकर 15 लाख या 20 लाख रुपये तक कर दिया है।
सेबी ने इस सेगमेंट में निवेश करने से पहले मार्जिन के रूप में आवश्यक न्यूनतम राशि को भी सख्त कर दिया है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि इस कदम के बाद डेरिवेटिव गतिविधियों की वैल्यू 40 प्रतिशत से अधिक घट गई। यह बाजार में अस्थिरता बढ़ने के बीच हुआ। बीएसई का सेंसेक्स सितंबर 2024 के 85,978.25 के सर्वाधिक ऊंचे स्तर से लगभग 17 प्रतिशत गिरकर अप्रैल 2025 में 71,425.01 पर आ गया था।