परिचालन से जुड़े मसलों और ग्राहकों की नाखुशी के कारण विभिन्न फंड वितरकों को लेनदेन शुल्क का भुगतान नहीं करने का विकल्प चुन रहे हैं। सबसे बड़ी फंड कंपनी एसबीआई म्युचुअल फंड हाल में भुगतान रोककर डीएसपी एमएफ, पीजीआईएम इंडिया एमएफ और क्वांटम एमएफ शामिल हो गई।
एसबीआई एमएफ के डिप्टी एमडी और ज्वाइंट सीईओ डी पी सिंह ने कहा कि परिचालन से जुड़ी चुनौतियों और ग्राहकों की नाखुशी को ध्यान में रखते हुए वितरकों को भुगतान बंद कर दिया गया है।
म्युचुअल फंडों के नियम के तहत फंड वितरकों को हर एकमुश्त निवेश या एसआईपी के पंजीकरण पर लेनदेन शुल्क के तौर पर 100 से 150 रुपये वसूलने का विकल्प मिलता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि निवेश की रकम 10,000 रुपये से ऊपर हो। फंड कंपनियां इस रकम का भुगतान निवेशकों की निवेश वाली रकम से काटकर करती हैं जिससे निवेशकों को आवंटित होने वाले यूनिट की संख्या घट जाती है।
म्युचुअल फंड के अधिकारियों के मुताबिक वितरकों का एक छोटा वर्ग ही लेनदेन शुल्क पाने का विकल्प चुनता है और यह विकल्प लेनदेन को टुकड़ों में बांटने और ग्राहकों की असंतुष्टि का कारण बनता है। सितंबर 2022 में बाजार नियामक सेबी ने म्युचुअल फंडों के संगठन-एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया- को उन वितरकों की पहचान करने और ब्लॉक करने को कहा था जो ज्यादा लेनदेन शुल्क के लिए लेनदेन को टुकड़ों में बांटने में शामिल रहे हैं।
बाजार नियामक ने कहा था कि उसे ऐसे कई मामले मिले हैं जहां म्युचुअल फंड वितरकों ने किसी म्युचुअल फंड में निवेशकों की रकम का एक से ज्यादा आवेदन के जरिये निवेश किया है जबकि उसे एक ही आवेदन में निपटाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए 30,000 रुपये का निवेश 10-10 हजार रुपये के तीन आवेदन के जरिये किया गया ताकि लेनदेन शुल्क के तौर पर 450 रुपये मिल जाएं। परिणामस्वरूप निवेश वाली शुद्ध रकम घटकर 29,550 रुपये रह जाएगी। सेबी के पत्र के बाद एम्फी ने एएमसी को ऐसे भुगतान बंद करने का विकल्प दिया है।