Portfolio Rebalancing: वित्त वर्ष के अंत में अपने निवेश पोर्टफोलियो (investment portfolio) की रिव्यू और रीबैलेंसिंग करना एक सही समय होता है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आपका पोर्टफोलियो आपके वित्तीय लक्ष्यों (financial goals) और जोखिम लेने की क्षमता (risk appetite) के अनुरूप बना रहे।
इस साल इक्विटी फंड्स ने सीमित रिटर्न दिए। लार्ज और स्मॉल कैप फंड्स में सिंगल-डिजिट की बढ़त देखने को मिली, जबकि मिड-कैप फंड्स ने औसतन करीब 11% का रिटर्न दिया (टेबल देखें)। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के चीफ फाइनेंशियल प्लानर विशाल धवन कहते हैं, “मिड और स्मॉल कैप फंड्स में ज्यादा जोखिम लेने के बावजूद निवेशकों को इस साल अपेक्षाकृत ज्यादा रिटर्न नहीं मिला।” उन्होंने यह भी कहा कि ग्लोबल इक्विटी ने भारतीय इक्विटी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया।
स्क्रिपबॉक्स के फाउंडर और सीईओ अतुल सिंघल के मुताबिक, “सेक्टर-आधारित फंड्स में फार्मा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बैंकिंग सेक्टर्स ने मजबूती दिखाई, जबकि आईटी और कंजम्प्शन-आधारित फंड्स पिछड़ गए।”
डेट फंड्स ने इस साल आकर्षक रिटर्न दिए जो लिक्विड फंड्स में 7.18% से लेकर गिल्ट फंड्स में 8.98% तक रहे। यह प्रदर्शन वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ब्याज दरों के नरम रुख के चलते संभव हुआ। वाइज फिनसर्व के सीईओ और चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर अजय कुमार यादव कहते हैं, “बॉन्ड यील्ड और कीमतों के बीच उल्टा संबंध इस साल बॉन्ड निवेशकों के पक्ष में गया।”
गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETFs) ने औसतन 29% का शानदार रिटर्न दिया। सिंघल कहते हैं, “वैश्विक अनिश्चितताओं और कमजोर रुपये के चलते गोल्ड फंड्स ने इस साल बेहतरीन प्रदर्शन किया और सबसे अलग नजर आए।”
यादव के मुताबिक, इस साल ने यह साफ कर दिया कि बैलेंस्ड पोर्टफोलियो के लिए इक्विटी, डेट और गोल्ड जैसे एसेट्स में डायवर्सिफिकेशन बनाए रखना कितना जरूरी है।
मिड और स्मॉल कैप फंड्स के प्रदर्शन भले ही इस साल कमजोर रहे हों, लेकिन इनकी वैल्यूएशन अब भी ऊंची बनी हुई है। धवन कहते हैं, “इन सेगमेंट्स की वैल्यूएशन अब भी अपने लॉन्ग-टर्म औसत से ज्यादा हो सकती है। इसलिए निवेशकों को इन सब-एसेट क्लास में आक्रामक रुख अपनाने से बचना चाहिए।”
यादव का कहना है कि जिन निवेशकों ने मिड और स्मॉल कैप में ज्यादा निवेश कर रखा है, उन्हें अब इसमें अपनी हिस्सेदारी घटानी चाहिए। वहीं लार्ज कैप फंड्स को लेकर उम्मीदें बेहतर हैं। सिंघल कहते हैं, “लार्ज कैप फंड्स की वैल्यूएशन तुलनात्मक रूप से आकर्षक हैं और इनमें स्थिरता भी है।” डेज़र्व के को-फाउंडर वैभव पोरवाल मजबूत बुनियादी स्थिति वाली कंपनियों में निवेश को प्राथमिकता देने की सलाह देते हैं।
जिन निवेशकों का अमेरिकी फंड में एक्सपोजर उनकी इक्विटी पोर्टफोलियो का 20% से ज्यादा है, वे मुनाफा बुक करने पर विचार कर सकते हैं। यादव कहते हैं, “अमेरिकी लार्ज कैप की वैल्यूएशन फिलहाल ऊंची है और करेक्शन के प्रति संवेदनशील है। ऐसे में वहां से निकाली गई रकम को भारतीय लार्ज कैप फंड्स में दोबारा लगाना एक समझदारी भरा कदम होगा, क्योंकि यह सेगमेंट तुलनात्मक रूप से उचित मूल्य पर है।”
डेट निवेश की बात करें तो हाई ड्यूरेशन या क्रेडिट-रिस्क कैटेगरी में जरूरत से ज्यादा निवेश से बचें। पोर्टफोलियो के बड़े हिस्से में निवेश अवधि को फंड की औसत मैच्योरिटी के अनुरूप रखें। अगर अर्थव्यवस्था धीमी होती है, तो कम गुणवत्ता वाले डेट इंस्ट्रूमेंट्स कमजोर प्रदर्शन कर सकते हैं। यादव की सलाह है कि निवेशकों को क्वालिटी डेट इंस्ट्रूमेंट्स पर ही ध्यान देना चाहिए। गोल्ड एलोकेशन 10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सोने में निवेश पोर्टफोलियो का हिस्सा 10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
सबसे जरूरी बात यह है कि हाल के महीनों में तेज रिटर्न देने वाले एसेट या सब-एसेट क्लासेस के पीछे भागने से बचें। वित्त वर्ष 2024-25 के संदर्भ में, इसमें अमेरिकी फंड्स, सोना, चांदी और लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड्स शामिल हैं।
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बाजार में उतार-चढ़ाव के चलते समय के साथ निवेशकों के पोर्टफोलियो की स्ट्रैटेजिक एसेट एलोकेशन बिगड़ सकती है। रीबैलेंसिंग की मदद से पोर्टफोलियो को दोबारा उसकी मूल संरचना में लाया जा सकता है। सिंघल बताते हैं कि यह प्रक्रिया उन एसेट्स में ज्यादा निवेश को कम करती है, जिनकी वैल्यूएशन बहुत ऊंची हो गई है जिससे पोर्टफोलियो का जोखिम घटता है।
1 फाइनेंस में इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट यश सेदानी कहते हैं, “रीबैलेंसिंग यह सुनिश्चित करता है कि आपका पोर्टफोलियो आपके वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप बना रहे, खासकर तब जब मैक्रोइकनॉमिक स्थितियां बदल रही हों।”
रीबैलेंसिंग निवेशकों को गलत मूल्यांकन वाले एसेट्स का फायदा उठाने का भी मौका देती है। धवन कहते हैं, “रीबैलेंसिंग निवेशकों को यह मौका देती है कि वे महंगे हो चुके एसेट्स से बाहर निकलें और अपना पैसा ज्यादा सस्ते सेगमेंट्स में लगाएं।”
यह प्रक्रिया अनुशासन लाती है और निवेश से जुड़ी मनोवैज्ञानिक कमजोरियों को भी संतुलित करती है। धवन कहते हैं, “निवेशक अक्सर उन एसेट क्लासेज को होल्ड किए रहते हैं जो अच्छा प्रदर्शन कर रही होती हैं, और जो कमजोर चल रही हों उनमें निवेश करने से कतराते हैं।”
जिन निवेशकों के वित्तीय लक्ष्य पूरे होने वाले हैं, उन्हें धीरे-धीरे अपने निवेश को सुरक्षित एसेट क्लासेज में शिफ्ट करना चाहिए।
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आदर्श रूप से, रीबैलेंसिंग ताजा पूंजी (fresh capital) के जरिए की जानी चाहिए ताकि टैक्स और एग्जिट लोड को कम से कम किया जा सके। धवन कहते हैं, “हालांकि, अगर किसी निवेशक ने किसी एक एसेट क्लास में जरूरत से ज्यादा निवेश कर रखा है, तो केवल नई पूंजी से रीबैलेंसिंग करना काफी नहीं होगा। ऐसे में उस एसेट क्लास को आंशिक रूप से बेचना जरूरी हो सकता है।”
अगर अतिरिक्त निवेश के जरिए एक साल के भीतर टार्गेट एलोकेशन को फिर से हासिल किया जा सकता है, तो नई पूंजी को कमजोर प्रदर्शन करने वाले एसेट्स में लगाया जाना चाहिए। अगर ऐसा संभव न हो, तो बेहतर प्रदर्शन कर रहे एसेट्स में से आंशिक मुनाफा बुक करना पड़ सकता है।
पोरवाल कहते हैं, “निवेश को ध्यान से रिव्यू करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे आपके लक्ष्य, जोखिम और रिटर्न की उम्मीदों के अनुरूप हों।”
(डिस्क्लेमर: लेखक मुंबई स्थित स्वतंत्र वित्तीय लेखक हैं)