इन दिनों खुदरा निवेशकों के बीच म्युचुअल फंड के एवज में ऋण लेने का चलन बढ़ रहा है। वे अब निवेश को लंबे समय तक बरकरार रखने के महत्त्व को समझ रहे हैं। यही कारण है कि कई लोग नकदी संकट के दौरान म्युचुअल फंड को भुनाने के बजाय उसके एवज में ऋण लेना पसंद कर रहे हैं।
बढ़ती लोकप्रियता
पहले ऐसे ऋण का फायदा उठाना कठिन था और उसकी प्रक्रिया काफी बोझिल थी जिसमें 5 से 6 दिन लग जाते थे। मिरै ऐसेट फाइनैंशियल सर्विसेज के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) कृष्ण कन्हैया ने कहा, ‘मगर ऐसे ऋण अब डिजिटल तरीके से उपलब्ध हैं। आप अपने घर या दफ्तर में रहते हुए कुछ ही समय में ऐसे ऋण हासिल कर सकते हैं।’
कन्हैया ने कहा कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के तहत निवेशकों का योगदान बढ़ने से लंबी अवधि के म्युचुअल फंडों की एक ऐसी परिसंपत्ति तैयार हुई है जिसे ऋण के लिए गिरवी रखा जा सकता है।
बाजार में गिरावट के कारण पहले बड़े पैमाने पर बिकवाली शुरू हो जाती थी। धनलैप के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी सीआर चंद्रशेखर ने कहा, ‘बड़ी तादाद में लोग अब बाजार में गिरावट के दौरान अपनी म्युचुअल फंड योजनाओं को बेचना नहीं चाहते हैं। उन्होंने म्युचुअल फंडों को बेचने के बजाय उसके एवज में ऋण लेना शुरू कर दिया है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी परिसंपत्ति लगातार बढ़ती रहेगी।
इक्विटी म्युचुअल फंड में आम तौर पर लंबी अवधि में 12 से 15 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) की क्षमता होती है।’ ऋण हासिल करने में सख्ती और बिना रेहन वाले पर्सनल लोन हासिल करना कठिन होने के कारण उधारकर्ता रेहन वाले विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। बैंकबाजार के सीईओ आदिल शेट्टी ने कहा, ‘पर्सनल लोन और विशेष रूप से छोटे ऋण हासिल करना कठिन होता जा रहा है। किसी संपत्ति के एवज में लिए गए ऋण की लागत पर्सनल लोन के मुकाबले कम होती है और उसे आसानी से मंजूरी भी मिल जाती है।’
पर्सनल लोन से सस्ता
कन्हैया ने कहा कि इस प्रकार के ऋण पर ब्याज दरें 10 से 14 फीसदी के दायरे में होती हैं। उन्होंने कहा, ‘हम ग्राहक प्रोफाइल अथवा ऋण के आकार पर ध्यान दिए बिना सालाना 10.5 फीसदी ब्याज वसूलते हैं।’
चंद्रशेखर ने कहा कि धनलैप 10.5-11 फीसदी ब्याज वसूलती है। उन्होंने कहा, ‘यह इक्विटी फंड पर लंबी अवधि में मिलने वाले 12-15 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक रिटर्न से कम है।’
कुछ ऋणदाता ऐसे ऋण को ओवरड्राफ्ट सुविधा के रूप में उपलब्ध कराते हैं। कन्हैया ने कहा, ‘उधारकर्ताओं के लिए एक सीमा निर्धारित की जाती है। वे अपनी जरूरतों के अनुसार निकासी और अपने नकदी प्रवाह के हिसाब से अदायगी कर सकते हैं। इसके लिए कोई निश्चित मासिक किस्त नहीं होती है। उपयोग की गई रकम पर हर महीने ब्याज लिया जाता है। मगर मूलधन को हर महीने चुकाने की जरूरत नहीं होती। उधारकर्ता अपनी सुविधानुसार के अनुसार उसकी अदायगी कर सकता है।’
समय से पहले अदायगी पर शून्य शुल्क इसका एक अन्य लाभ है। कन्हैया ने कहा, ‘अगर आप खाता बंद करते हैं तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता है। ऋण के एवज में म्युचुअल फंड यूनिट को रेहन रखने के अधिकार को 24 घंटे के भीतर हटा दिया जाता है।’
मार्जिन कॉल से सावधान रहें
बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण रेहन के तौर पर रखी गई प्रतिभूतियों का मूल्य कम हो सकता है। इससे मार्जिन कॉल की स्थिति पैदा होती है। चंद्रशेखर ने कहा, ‘सबसे खराब परिस्थितियों में मार्जिन कॉल को पूरा करने के लिए परिसंपत्तियों का एक हिस्सा बेचा जा सकता है।’ शेट्टी ने आगाह किया कि अगर उधारकर्ता डिफॉल्ट करता है तो उसे अपनी परिसंपत्तियों को खोना पड़ सकता है।
इक्विटी फंड से रिटर्न निश्चित नहीं होता है। चंद्रशेखर ने कहा, ‘कुछ साल में ऋण पर ब्याज दर आपके म्युचुअल फंड यूनिट से मिलने वाले रिटर्न से अधिक हो सकती है।’
किसके लिए फायदेमंद
लंबी अवधि के निवेशकों को इस प्रकार के ऋण से फायदा होता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार ने कहा, ‘अगर आपका निवेश लक्ष्य 10-15 साल है और आपको तात्कालिक आपात स्थितियों या नकदी की समस्या से जूझना पड़ रहा है तो आप यह ऋण ले सकते हैं।’
मासिक किस्त आधारित संस्करणों में मूलधन और ब्याज का मासिक भुगतान करना होता है। चंद्रशेखर ने कहा, ‘जो लोग मासिक किस्त का भुगतान नहीं कर सकते उनके लिए अपने म्युचुअल फंड बेचना बेहतर विकल्प होगा।’
कुमार ने सुझाव दिया कि बाजार में गिरावट की स्थिति में मार्जिन कॉल को पूरा करने के लिए अतिरिक्त म्युचुअल फंड यूनिट या नकदी अपने पास रखें। उन्होंने चेताया कि बिना सोचे-समझे खरीदारी के लिए इस ऋण का इस्तेमाल नहीं करना चाहए। उन्होंने उधारी से बचने के लिए आपातकालीन कोष तैयार करने का भी सुझाव दिया।