अभी 15,515 अंकों के मौजूदा स्तर पर बाजार मार्च की तुलना में निचले स्तर पर तो नहीं गया है लेकिन कई बड़ी कंपनियों के शेयरों में मार्च 2008 के स्तर से नीचे की गिरावट देखी गई है।
आज की गिरावट की जो खास बात रही कि बाजार वॉल्यूम पर गिरा और यह पिछले कुछ हफ्तों के दौरान देखे गए औसत से भी ज्यादा है। बाजार की गहराई अच्छी नहीं रही और बाजार महत्वपूर्ण तकनीकी स्तरों पर टूटा।
विशेषत: निफ्टी में जिसका कारोबार 4,600 अंक के स्तर से भी नीचे 4,586 अंकों पर हो रहा है। खासकर मिडकैप तेजी से टूटा और वह अपने पुराने स्तर से भी तीन फीसदी नीचे गिर गया।
बाजार से सिर्फ निवेशकों के हक जाहिर हो रहा है जो बाजार की मैक्रो इकोनोमिक हालत गिरने की ओर संकेत करता है। बढ़ती महंगाई और ब्याज दरों की वजह से कंपनियों की बढ़त और लाभ पर भी प्रभाव पड़ा है। मार्च 2008 की तिमाही में भारतीय कंपनियों केपरिणामों पर नजर डालने पर पता चलता है कि कंपनियों की राजस्व बढ़त मंद होती जा रही है। इस वजह से कंपनियों का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन भी दबाव में रहा।
इस तरह कंपनियों की आय में गिरावट हो सकती है जिससे बाजार केमहंगा रहने की संभावना है। अगर अभी केहालातों देखा जाए तो भारत का बाजार अन्य उभरते बाजारों से ज्यादा महंगा है। मेरिल लिंच की रिर्पोट के अनुसार भारत के बाजार का कारोबार कोरिया के बाजार से 12 गुना के स्तर पर और ताइवान के बाजार से 13.4 गुना के स्तर पर हो रहा है।
जनवरी से मई के बीच भारत का प्रदर्शन उभरते बाजारों में दूसरा सबसे खराब रहा। भारत के बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने चार अरब डॉलर से भी ज्यादा रुपये निकाले। जबकि संस्थागत निवेशकों ने इस साल ज्यादातर बिक्री की है। म्युचुअल फंड और इंश्योरेंस फर्म साल की शुरुवात में बड़े खरीददार थे,अब ऐसा नहीं कर रहे हैं।
म्युचुअल फंड फर्म ने मार्च और अप्रैल में सामान्यत: बिक्री ही की जबकि मई में उन्होंने न के बराबर पैसा खरीदा। यही कारण रहा कि म्युचुअल में पूंजी के प्रवाह में गिरावट देखी गई। माहवारी आधार पर इसमें 91 फीसदी की गिरावट देखी गई।
ओएनजीसी-लाभ पर कदम
घरेलू गैस और तेल के दामों में होने वाली बढ़ोतरी का फायदा सिर्फ ओएनजीसी को मिलेगा। अगर फीसदी सहायता की दृष्टि से देखा जाए तो तेल का खुदरा कारोबार करने वाली कंपनियों को कम राहत मिलेगी।
हालांकि इस साल ऑयल रिटेलर कंपनियों को इस साल 2.45 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। इसमें ओएनजीसी की भागेदारी 39,000 करोड़ है। हालांकि यह इतनी ज्यादा नहीं है जितनी की आशा की जा रही थी। ऑयल रिटेलर कंपनियों को हुए नुकसान की मुख्य वजह यह रही की कि ये कंपनियां लागत मूल्य से भी नीचे इन उत्पादों का विपणन करती है।
बुधवार को हुए कारोबार में कंपनी का स्टॉक का मूल्य 5.3 फीसदी बढ़क़र 887 रुपये पर रहा। जबकि बाजार में 450 अंको की गिरावट आई। यह भी संभव है कि वित्त्तीय वर्ष 2009 में ओएनजीसी की आय अनुमानित 120 रुपये केस्तर से भी ऊपर पहुंच जाए। तेल और गैस के दामों में बढ़ोतरी केबावजूद तेल का विपणन करने वाली कंपनियां 20,000 करोड़ रुपये घाटे में है जो पिछले साल के स्तर 16,000 करोड़ भी ज्यादा है।
हालांकि तेल और गैस की कीमतों में बदलाव के बाद इन कंपनियों को अब ज्यादा सुविधा होगी। अब कंपनियां ज्यादा बेहतर ग्रॉस रिफायनिंग मार्जिन अर्जित कर सकेंगी। कंपनियों को लगभग 8 से 10 डॉलर प्रति बैरल फायदा होने की संभावना है जबकि वित्त्तीय वर्ष 2007 में कंपनी को 9 डॉलर प्रति बैरल का फायदा हुआ था। इंडियन ऑयल कंपनी के स्टॉक में 3.6 फीसदी की गिरावट देखी गई और यह 418 रुपये पर आ गया।