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जेट एयरवेज : घाटे का सफर

Last Updated- December 05, 2022 | 4:48 PM IST

फिलहाल ऐसा लगता है कि 7,058 करोड़ रुपये की कंपनी जेट एयरवेज की ताकत ही कमजोरी बन रही है।


 निजी क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी विमान सेवा प्रदाता कंपनी आक्रामक तौर पर विदेशी व्यवसाय को बढ़ाने में लगी है। वित्त वर्ष 2008 में कंपनी की कुल आय में विदेशी व्यवसाय की हिस्सेदारी लगभग 35 प्रतिशत की होनी चाहिए और अनुमान है कि  वित्त वर्ष 2010-11 में जब कंपनी की आय 11,000 करोड़ रुपये से अधिक होगी तो उसमें विदेशी व्यवसाय का योगदान 40 प्रतिशत से अधिक होगा।


हालांकि, बिगड़ते वैश्विक माहौल से अगले कुछ वर्षों में जेट एयरवेज को घाटे का सामना करना पड़ सकता है।वर्तमान वर्ष के लिए ऐसा अनुमान है कि 8,700 करोड़ रुपये की आय पर 500 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है। घाटे के कुछ हिस्से के लिए विदेशी विनिमय में हानि जिम्मेदार है।


 मार्च 2008 की तिमाही में इसमें सुधार हुआ है क्योंकि रुपये में गिरावट आई है।इसके अतिरिक्त तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक है और इसलिए विमान के ईंधन की कीमत, जिसमें दिसंबर 2007 से मार्च की तिमाही तक लगभग सात प्रतिशत की वृध्दि हुई है, मुनाफे पर दबाव बनाएगा।


जब तक वैश्विक माहौल में अनुकूल सुधार नहीं होता है तब तक अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर जेट को बोझ उठाना होगा। हालांकि, इसमें सुधार हो रहा था लेकिन एक बार फिर से इसमें गिरावट देखी जा रही है।चिंता की विशेष बात तो यह है कि कंपनी की बैलेंस शीट में ऋण का स्तर अधिक है।वर्तमान वर्ष के लिए जेट का ऋण-इक्विटी अनुपात छह गुना अनुमानित है और कंपनी को इक्विटी की खुराक की सख्त जरुरत है।


इसके अलावा कंपनी को अपनी विस्तार योजनाओं के लिए पैसों की जरुरत है लेकिन वह राइट्स इश्यू के जरिये इस काम में  अक्षम रही है।घरेलू बाजार में इस विमान सेवा प्रदाता कंपनी का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसके क्षमता-विस्तार में मंदी आई है। जनवरी और फरवरी 2008 में कंपनी का पैसेंजर लोड 75 प्रतिशत से अधिक रहा है जो पिछले वर्ष के स्तर से अधिक है।


हालांकि, अगर देश की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो घरेलू बाजार में भी उथल-पुथल आ सकती है। पूर्ण सेवा प्रदाता होने के कारण जेट की बाजार हिस्सेदारी घट सकती है और इसके लाभ में किराया कम किए जाने से कमी आ सकती है।मंगलवार को जेट के शेयर में पांच प्रतिशत की गिरावट आई और यह 508 रुपये पर बंद हुआ जबकि बाजार में सुधार हुआ था। ऐसा अनुमान है इसके स्टॉक प्रदर्शन अच्छा नहीं रहेगा।


इन्फ्रास्ट्रक्चर सूचकांक


छह मुख्य उद्योगों वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर सूचकांक में मंद गति से वृध्दि हुई है। जनवरी 2008 में सूचकांक की वृध्दि दर 4.2 प्रतिशत पर थी जबकि जनवरी 2007 में यह 8.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी।लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह आने वाली मंदी की शुरुआत है या फिर मांग में महत्त्वपूर्ण कमजोरी आई है।


विश्लेषकों का विश्वास है कि अभी भी आपूर्ति के मामले में समस्याएं हैं क्योंकि अप्रैल से जनवरी 2008 के बीच हुआ विकास केवल 5.5 प्रतिशत का है जबकि समान अवधि में पिछले वर्ष यह 8.9 प्रतिशत था।सूचकांक का मंथर गति से बढ़ना साफ संकेत देता है कि कहीं न कहीं आपूर्ति संबंधी अवरोध है जिससे औद्योगिक विकास प्रभावित हुआ हो सकता है।


ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले महीनों में भी दशा ऐसी ही रहेगी।विश्लेषकों का मानना है कि खाने बनाने के कोयले की आपूर्ति में कमी से स्टील के उत्पादन में कमी आई है।जनवरी 2008 में स्टील उत्पादन में 5.5 प्रतिशत की वृध्दि देखी गई जबकि जनवरी 2007 में यह 8.5 प्रतिशत था। स्टील  उत्पादकों को जैसे वाणिज्यिक वाहन और दोपहिये निर्माताओं की मांग ही महसूस नहीं हुई जिसमें पिछले छह आठ महीनों से मंदी चल रही है और जिसके परिणामस्वरुप इस क्षेत्र का विकास अवरुध्द हुआ है।
 
स्टील-उत्पादन में हुई कम वृध्दि का श्रेय इसी को जाता है।कोयले की आपूर्ति में बाधा से विद्युत उत्पादन में भी कमी आई है, इन्फ्रास्ट्रक्चर सूचकांक में इसकी भागीदारी महत्वपूर्ण है।  विद्युत उत्पादन जनवरी 2007 के  8.3 प्रतिशत की तुलना में मात्र 3.3 प्रतिशत बढ़ा है। यह चिंता की बात है क्योंकि बिजली के कम उत्पादन से औद्योगिक उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, क्रूड का उत्पादन कम हो जाएगा और अन्य उद्योग जिनमें चिंताजनक विकास हुआ है भी प्रभावित हो सकते हैं।

First Published - March 20, 2008 | 10:35 PM IST

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