पूंजी बाजार नियामक सेबी के निदेशक मंडल ने छोटी एवं मझोली कंपनियों (एसएमई) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने से संबंधित प्रक्रिया को सशक्त करने के लिए बुधवार को एक सख्त नियामकीय रूपरेखा को मंजूरी दी।
इसके अलावा, सेबी ने बिक्री पेशकश (ओएफएस) को सीमित करने का फैसला किया है और प्रवर्तकों के लिए चरणबद्ध ‘लॉक-इन’ पेश किया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निदेशक मंडल की यहां हुई बैठक में यह फैसला किया गया। सेबी ने एक बयान में इस बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी दी।
बयान के मुताबिक, सेबी के निदेशक मंडल ने डिबेंचर ट्रस्टी, ईएसजी रेटिंग प्रदाताओं, इनविट्स, रीट्स और एसएम रीट्स के लिए कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए सुधारों को भी मंजूरी दी। इसके अलावा अनुमोदित सुधारों का उद्देश्य एसएमई को एक अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड प्रदान करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करते हुए जनता से धन जुटाने का अवसर प्रदान करना है। इस संबंध में, बोर्ड ने सेबी (आईसीडीआर) विनियम, 2018 और सेबी (एलओडीआर) विनियम, 2015 में संशोधन को मंजूरी दे दी। यह कदम एसएमई के निर्गम बढ़ने के बाद उठाया गया है, जिसने महत्वपूर्ण निवेशक भागीदारी को बढ़ावा दिया है।
लाभप्रदता मानदंड के संबंध में, एसएमई इकाइयों की तरफ से लाए जाने वाले आईपीओ के संबंध में सेबी ने कहा कि निर्गम लाने की योजना बनाने वाली छोटी एवं मझोली कंपनियों को अपना मसौदा दस्तावेज (डीआरएचपी) दाखिल करते समय पिछले तीन में से दो वित्त वर्षों में कम से कम एक करोड़ रुपये का परिचालन लाभ (ब्याज, मूल्यह्रास और कर से पहले की कमाई यानी एबिटा) दिखाना होगा। एसएमई आईपीओ में शेयरधारकों द्वारा बिक्री के लिए बिक्री पेशकश (ओएफएस) की सीमा कुल निर्गम आकार के 20 प्रतिशत तक सीमित कर दी गई है। इसके अलावा, विक्रय करने वाले शेयरधारक अपनी मौजूदा हिस्सेदारी का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा नहीं बेच सकेंगे। इसके अलावा, न्यूनतम प्रवर्तक अंशदान (एमपीसी) से अधिक प्रवर्तकों की शेयरधारिता चरणबद्ध ‘लॉक-इन’ अवधि के अधीन होगी।
अतिरिक्त हिस्सेदारी का आधा हिस्सा एक वर्ष के बाद जारी किया जाएगा, जबकि शेष 50 प्रतिशत दो वर्षों के बाद जारी किया जाएगा। एसएमई आईपीओ में गैर-संस्थागत निवेशकों (एनआईआई) के लिए आवंटन पद्धति को मुख्य बोर्ड आईपीओ में अपनाई गई पद्धति के अनुरूप बनाया जाएगा, ताकि एकरूपता सुनिश्चित की जा सके। एसएमई आईपीओ में सामान्य कॉरपोरेट उद्देश्य (जीसीपी) के लिए आवंटित राशि को कुल निर्गम आकार का 15 प्रतिशत या 10 करोड़ रुपये, जो भी कम हो, तक सीमित कर दिया गया है।
एसएमई निर्गमों को आईपीओ से मिली राशि का उपयोग प्रवर्तकों, प्रवर्तक समूहों या संबंधित पक्षों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लिए गए कर्ज चुकाने में करने की अनुमति नहीं होगी। एसएमई आईपीओ के लिए डीआरएचपी को 21 दिनों के लिए सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
जारीकर्ताओं को समाचार पत्रों में घोषणाएं प्रकाशित करने और डीआरएचपी तक आसान पहुंच के लिए एक क्यूआर कोड शामिल करने की आवश्यकता होगी। एसएमई कंपनियों को मुख्य बोर्ड में स्थानांतरित हुए बिना ही आगे के निर्गमों के माध्यम से धन जुटाने की अनुमति होगी, बशर्ते वे मुख्य बोर्ड-सूचीबद्ध संस्थाओं पर लागू सेबी (एलओडीआर) नियमों का अनुपालन करें। एसएमई-सूचीबद्ध संस्थाओं को मुख्य बोर्ड पर सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू संबंधित पार्टी लेनदेन (आरपीटी) मानदंडों का अनुपालन करना होगा। भारत के इक्विटी बाजारों के मजबूत प्रदर्शन से प्रेरित होकर, पिछले दो वर्षों में एसएमई द्वारा सार्वजनिक निर्गमों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
वित्त वर्ष 2023-24 में एसएमई आईपीओ की संख्या और जुटाई गई धनराशि रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। इस दौारान 196 आईपीओ ने 6,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए। वित्त वर्ष 2024-25 में, 15 अक्टूबर तक, 159 एसएमई आईपीओ ने 5,700 करोड़ रुपये से अधिक जुटा लिए थे। सेबी के निदेशक मंडल में स्वीकृत सुधारों का उद्देश्य एसएमई को एक अच्छा ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ प्रदान करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करते हुए जनता से धन जुटाने का अवसर प्रदान करना है।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया ने एक दिन पहले ही कहा था कि एसएमई की आईपीओ सूचीबद्धता के दौरान अधिक उत्साह, कीमतों में हेराफेरी या धोखाधड़ी वाले कारोबारी तौर-तरीकों को रोकने की जरूरत है। भाटिया ने कहा था कि कुछ चिंताजनक पहलू सामने आने के बाद सेबी ने बीते दो वर्षों में एसएमई बोर्ड पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है। इनमें ऐसी कंपनियां शामिल हैं जो तथ्यों को गलत ढंग से पेश करती हैं, जिससे खुदरा निवेशकों के लिए ‘वास्तविक मूल्य और व्यवहार्यता’ का आकलन कर पाना मुश्किल हो जाता है।