उदयपुर मुख्यालय वाली फर्टिलिटी फर्म इंदिरा आईवीएफ ने बाजार नियामक सेबी के पास गोपनीय मार्ग से विवरणिका का मसौदा (डीआरएचपी) दोबारा जमा कराया है। इस कंपनी का स्वामित्व निवेश कंपनी ईक्यूटी के पास है। कंपनी ने सार्वजनिक घोषणा में कहा, डीआरएचपी जमा कराने का अनिवार्य रूप से यह मतलब नहीं है कि कंपनी आरंभिक सार्वजनिक निर्गम लाएगी।सूत्रों ने कहा, कंपनी 3,500 करोड़ रुपये के अपने आईपीओ को दोहराने पर विचार कर रही है।
कंपनी ने शुरू में फरवरी में एक विवरणिका का मसौदा जमा कराया था, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया क्योंकि संयोग से आईपीओ की योजना कंपनी के संस्थापक पर आधारित बॉलीवुड बायोपिक की रिलीज के समय सामने आई थी, जिससे सेबी ने चिंता जताई थी। यह प्रगति भारतीय सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) क्षेत्र में निवेशकों की बढ़ती रुचि के बीच हुआ है, जो बढ़ती जागरूकता, बाजार के आकार में विस्तार और अनुकूल डेमोग्राफिक से प्रेरित है।
1988 में अजय मुर्डिया की तरफ से गठित इंदिरा आईवीएफ भारत में सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) सेवाओं में अग्रणी है और सालाना लगभग 40,000 आईवीएफ चक्र पूरे करती है। यह वैश्विक स्तर पर शीर्ष 5 कंपनियों में भी शुमार है। इंदिरा आईवीएफ ने गोपनीय फाइलिंग का रास्ता अपनाने का निर्णय ऐसे समय में लिया है जब यह प्रक्रिया कई स्टार्टअप्स के बीच काफी लोकप्रिय है।
2022 में शुरू की गई गोपनीय फाइलिंग प्रक्रिया कंपनियों को संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक रूप से तब तक छिपाने में सक्षम बनाती है जब तक कि वे अपने आईपीओ के लिए तैयार न हो जाएं। यह तरीका इश्यू लाने वाले को अनावश्यक सार्वजनिक जांच और अवसरवादी मुकदमों से बचने में मदद करता है।
अप्रैल 2024 में फ़ूड डिलीवरी दिग्गज स्विगी ने भी अपने आईपीओ के लिए प्री-फाइलिंग का रास्ता चुना। अब तक केवल स्विगी और विशाल मेगा मार्ट ही गोपनीय फाइलिंग के बाद सफलतापूर्वक सार्वजनिक पेशकश की है। उदाहरण के लिए, मीशो ने इस महीने की शुरुआत में 4,250 करोड़ रुपये के आईपीओ के लिए गोपनीय तरीके से आवेदन किया है। टाटा प्ले इस जरिये का इस्तेमाल करने वाली पहली कंपनी थी, हालांकि बाद में उसने अपनी आईपीओ योजना रद्द कर दी।