Share Buyback: हाल ही में दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस (Infosys) ने एक बार फिर शेयर बायबैक का ऐलान किया है। कंपनी करीब ₹18,000 करोड़ के शेयर वापस खरीदने जा रही है। इसमें 100 मिलियन शेयरों को औसतन ₹1,800 प्रति शेयर की दर से खरीदा जाएगा। यह उनके मार्केट प्राइस से लगभग 19% ज्यादा है। इंफोसिस के बाद TCS और Wipro भी बायबैक प्लान ला सकती हैं। इस कदम का मकसद सिर्फ निवेशकों से शेयर वापस खरीदना ही नहीं है, बल्कि शेयर की कीमत को स्थिर रखना और निवेशकों का भरोसा बढ़ाना भी है।
इस वाकये को गहराई के समझने के लिए जानते हैं कि कंपनियां बायबैक क्यों करती हैं, इस पर टैक्स का क्या असर पड़ता है, और इससे बाजार पर किस तरह का प्रभाव होता है।
PL Capital के रिसर्च एनालिस्ट प्रितेश ठक्कर कहते हैं, IT कंपनियों के लिए यह फैसला कि वे डिविडेंड दें या बायबैक करें, कई चीजों पर निर्भर करता है। डिविडेंड निवेशकों को रेगुलर और स्टेबल इनकम देता है। यह निवेशकों को लंबे समय तक वित्तीय स्थिरता का भरोसा देता है। IT कंपनियां अक्सर अपने शेयरों की कीमत गिरने या कम वैल्यूएशन पर होने पर बायबैक लॉन्च करती हैं। इससे वे यह दिखाती हैं कि उन्हें अपने शेयर की कीमत में विश्वास है। बायबैक शेयर की कीमत को सहारा देता है और निवेशकों का भरोसा बढ़ाता है।
इसके अलावा, IT कंपनियों के फैसले में उनके कैश फ्लो और ग्रोथ प्लान का भी असर होता है। अगर किसी कंपनी के पास फ्री कैश फ्लो ज्यादा है और उसे बड़े निवेश या नए प्रोजेक्ट में पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है, तो वह अतिरिक्त पैसे को डिविडेंड या बायबैक में खर्च कर सकती है। IT कंपनियों का फ्री कैश फ्लो आम तौर पर स्थिर रहता है और उनकी प्रॉफिटेबिलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए वे डिविडेंड जारी रख सकती हैं और मौका पड़ने पर बायबैक भी कर सकती हैं।
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टैक्स की वजह से भी बायबैक का रुझान बढ़ता है। 2020 से पहले, डिविडेंड पर DDT (Dividend Distribution Tax) लगता था। उस समय बायबैक करना निवेशकों के लिए ज्यादा फायदेमंद था। अब DDT खत्म हो चुका है और डिविडेंड टैक्स सीधे निवेशक पर आता है। फिर भी, बड़े निवेशक और हाई नेट-वर्थ शेयरहोल्डर्स बायबैक को पसंद करते हैं। इसका कारण यह है कि कैपिटल गेन टैक्स आमतौर पर डिविडेंड टैक्स से कम होता है। इसलिए बायबैक से उन्हें कम टैक्स देना पड़ता है और अधिक फायदा मिलता है।
IT कंपनियां अक्सर शेयर की कीमत कम होने या मार्केट में गिरावट आने पर बायबैक करती हैं। इसका मकसद यह होता है कि निवेशकों का भरोसा बना रहे और शेयर की कीमत नीचे न गिरे। बायबैक से शेयर की संख्या घटती है और हर शेयर का मूल्य बढ़ता है। यह निवेशकों के लिए अच्छा संकेत है और शेयर की कीमत में स्थिरता लाता है।
निवेशक डिविडेंड और बायबैक दोनों को अलग तरह से देखते हैं। डिविडेंड निवेशकों को रेगुलर इनकम देता है और यह कंपनी की लंबी अवधि की वित्तीय मजबूती का संकेत है। बायबैक यह दिखाता है कि कंपनी अपने शेयर को undervalue मानती है और शेयर की कीमत बढ़ सकती है। संस्थागत निवेशक जैसे म्यूचुअल फंड और FIIs बायबैक को सकारात्मक मानते हैं क्योंकि इससे EPS (Earnings Per Share) बढ़ता है और फ्री फ्लोट घटता है। रिटेल निवेशक डिविडेंड को पसंद करते हैं क्योंकि इससे उन्हें रेगुलर इनकम मिलती है।
पिछले 10 सालों में भारतीय IT कंपनियों का बायबैक और डिविडेंड नीति में बदलाव देखा गया है। 2010 से 2016 के बीच कंपनियां मुख्य रूप से डिविडेंड पर ध्यान देती थीं। इस दौरान वे धीरे-धीरे अपने शेयरधारकों को ज्यादा पैसा देने लगी थीं। 2017 से 2020 के बीच बायबैक में तेजी आई। इसका मुख्य कारण टैक्स में फायदे थे। Infosys, TCS और Wipro ने इस दौरान बड़े बायबैक किए। 2020 के बाद कंपनियां डिविडेंड और बायबैक दोनों पर संतुलन बना रही हैं। वे स्थिर डिविडेंड देती हैं और जरूरत पड़ने पर बायबैक करती हैं।
बायबैक से शेयर की कीमत पर शॉर्टटर्म बढ़त आती है और यह निवेशकों के लिए सुरक्षा की भावना देता है। जब शेयर बाजार में बायबैक की घोषणा होती है, तो निवेशकों को भरोसा होता है और शेयर की कीमत स्थिर रहती है। डिविडेंड का असर अलग होता है। जब डिविडेंड की तारीख आती है, तो शेयर का मूल्य ex-dividend डेट पर घट जाता है। लेकिन लंबे समय में डिविडेंड निवेशकों का भरोसा बढ़ाता है और उन्हें लगातार आय मिलती है।