वैश्विक मंदी और बाजारों में पूंजी की कमी के बावजूद वेंचर कैपिटलिस्ट(वीसी)भारतीय बाजारों में निवेश के लिए फंड जुटा पाने में सफल रहें हैं।
अधिकांश वेंचर कैपिटलिस्ट ने बताया कि उन्होंने सफलतापूर्वक अपने दूसरे या चौथे फंड जुटा लिए हैं या एक और जुटाने की प्रक्रि या में हैं। उदाहरण केलिए 65 करोड़ डॉलर वाली ग्लोबल वेंचर कैपिटल क्लियरस्टोन वेंचर एडवाइजर्स जल्द ही अपने चौथे फंड को बंद करने की योजना बना रही है।
मालूम हो कि 20 करोड़ से अधिक के मूल्य के फंड के एक बड़े हिस्से का भारत में निवेश होगा। कंपनी ने अपने तीसरे फंड से 21 करोड़ डॉलर रुपये जुटा लिए हैं जिसका कि 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा भारतीय बाजारों में निवेश के लिए तय किया गया था।
ठीक इसी तरह सीड फंड जो कि किसी प्रोजेक्ट के शुरुआती समय में निवेश करती है, इस समय अपने दूसरे फंड के लिए पैसा जुटाने की प्रक्रिया में है। यह फंड 5 से 6 करोड़ डॉलर के बीच का होगा जो कि इस साल केअंत तक बंद हो जाएगा। इस बाबत सीड फंड केसाझेदार प्रवीण गांधी बताते हैं कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन लोग फंड जुटा रहे हैं।
हमारी जैसी कंपनियां जो कि शुरूवाती दौर की कंपनियों में निवेश करती है, पर असर बहुत कम पड़ेगा क्योंकि हम तत्काल फायदे केबारे में नहीं सोच रहें हैं। हालांकि ऐसे बहुत सारे फंड हैं जो भारतीय बाजार पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहें हैं। इनमें वाल्डेन इंटरनेशनल और एसेल इंडिया वेंचर फंड आदि के नाम शामिल हैं।
वाल्डेन इंटरनेशनल जो कि 1.9 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति का प्रबंधन करती है, ने हाल में ही अगले साल के शुरूआत में 50 करोड़ डॉलर के फंड जुटाने की योजना बना रही है और जुटाए गए पैसों का उपयोग यह भारत और चीन में अपने निवेश में तेजी लाने में करेगी। अगले 12 से 18 महीनों में ग्लोबल वीसी फंड भारत में 15 करोड़ डॉलर तक का निवेश करेगी।
हालांकि बहुत सारे ऐसे वीसी हैं जिनका मानना है कि आनेवाले समय में उनपर प्रतिकूल असर पड़ेगा और फंड जुटाने में दिक्कतें आएंगी। इस बाबत एक वीसी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि अमेरिका में भारतीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा समर्थित फंड ज्यादा प्रभावित होंगे। उन्होंने आगे कहा कि मंदी का साकारात्मक पक्ष यह है कि वैल्युएशन में कमी आई है।
वेंचर इंटेलीजेंस के फाउंडर और सीईओ अरुण नटराजन का कहना है कि वीसी उस तरह से मुश्किलों का सामना नहीं कर रहें हैं जिस तरह से पहली बार फं ड जुटानेवाले कर रहे थे। वेंचर इंटेलीजेंस के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008 के पहले छह महीनों में लगभ्भग 60 समझौतों के तहत लगभग 38 करोड़ डॉलर जुटाए हैं।
बहुत सारे लोगों का यह भी मानना है कि भारतीय बाजार निवेश के लिए आवश्कता से अधिक अच्छा माना गया जिससे कि वैल्युएशन को लेकर लोगों का अंदाजा सही नहीं रहा। मैट्रिक्स इंडिया के को-फाउंडर अवनीश बजाज का कहना है कि भारत बाजार में आ रहें कुछ फंडों पर असर जरूर पड़ेगा।