अगर बैंक के शुध्द डूबे हुए कर्ज (एनपीएलएस) में 3 फीसदी की बढोतरी की बात छोड़ दें तो एचडीएफसी बैंक का प्रदर्शन दिसंबर में समाप्त हुई तिमाही में सराहनीय रहा है।
बैंक के डेलीक्वेंसी में कमी होना बाजार को गवारा नहीं हुआ और बैंक के शेयरों में 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। दीगर बात यह है कि वर्ष 008 में सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब के एचडीएफसी बैंक में विलय के बाद बैंक को दिसंबर की तिमाही में इसका काफी फायदा हुआ है।
बैंक के शुध्द मुनाफे में हुई आधी से ज्यादा बढ़ोतरी में इस विलय का काफी योगदान रहा है। हालांकि एक बात जो सामने आई है वह यह कि अर्थव्यवस्था की मंद हालत के कारण बैंक की खुदरा और लघु परिसंपत्तियों में कमी जरूर देखने को मिली है।
एचडीएफसी बैंक ने प्रोविजनिंग में 53 फीसदी इजाफा कर ऋणों में हुई क्षति को 200 आधार अंकों के साथ 68 फीसदी के स्तर पर कर दिया है जो एक बैंक के लिहाज से सुरक्षित माना जा रहा है।
सच्चाई यह है कि दिसंबर की तिमाही के मुश्किलों से भरे रहने के बावजूद बैंक अपने नेट इंटरेस्ट मार्जिन में 10 आधार अंकों की बढाेतरी कर पाने में सफल रहा और बैंक का नेट इंटरेस्ट मार्जिन 4.3 फीसदी दर्ज किया गया।
जहां तक चालू और बचत खाते की बात है तो बैंक को इसमें 4 फीसदी का नुकसान उठाना पडा और यह पिछली तिमाही के 44 फीसदी की अपेक्षा 40 फीसदी के स्तर पर आ टिका। ग्राहकों द्वारा अपनी रकम को फिक्स्ड डिपॉजिट में डालने के कारण बैंक के सीएएसए में कमी आई।
हालांकि ऋणों पर आकर्षक ब्याज दरों के कारण बैंक फंडों पर आनेवाली लागत की भरपाई करने में सफल रही जिसके परिणामस्वरूप बैंक के नेट इंटरेस्ट मार्जिन में 38 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
इसके अलावा दिसंबर की तिमाही में बैंक बड़े पैमाने पर कमीशन और शुल्क अर्जित कर पाने में सफल रहा और इसमें साल-दर-साल के आधार पर 40 फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई।
इसके अलावा बैंक को फंडों के पुनर्मूल्यांकन और अपने निवेश की बिक्री से प्री-प्रोविजनिंग मुनाफे में 37 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह 1,458 करोड़ रुपये आंका गया।
बैंक के कारोबार की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि बैंक की फीस इनकम और लोन बुक का एक दूसरे से उतना सरोकार नहीं है जिससे यह फायदा होता है कि अगर लोन बुक में इजाफा नहीं भी होता है तो भी कंपनी की फीस इनकम में कोई कमी नहीं आती है।
फिलहाल 977 रुपये के स्तर पर बैंक का कारोबार वित्त वर्ष 2008-09 की बुक वैल्यू के अनुमानित 2.7 गुना के स्तर पर हो रहा है।
एल्युमीनियम: पिघलता कारोबार
एल्युमीनियम कारोबार की स्थिति तो पहले से ही कमजोर है और इसकी बची-खुची चमक भी अब उतरती जा रही है।
छह साल में पहली बार अमेरिका की सबसे बड़ी एल्युमीनियम निर्माता कंपनी एल्कोआ को दिसंबर 2008 की तिमाही में 1.19 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पडा है। कंपनी का राजस्व इसी अवधि के दौरान 26.9 अरब डॉलर दर्ज किया गया।
उल्लेखनीय है कि कंपनी ने वर्ष 2008 में ही उत्पादन में कटौती करने की घोषणा कर डाली थी और आज की तारीख तक कुल उत्पादन में 18 फीसदी की कटौती की गई है।
इस बारे में कंपनी प्रबंधन का कहना है कि वर्ष 2009 में विश्व में एल्युमीनियम की मांग में 2 फीसदी की कमी आ सकती है। गौरतलब है कि वर्ष 2008 में मांग में 3 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।
एल्युमीनियम कारोबार की वर्तमान स्थिति है वो हिंडाल्को की सहायक कंपनी नोवेलिस के लिए भी बेहतर नहीं माना जा सकता है क्योंकि कंपनी एल्युमीनियम की ज्यादातर आपूर्ति अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में वाहन क्षेत्र और निर्माण क्षेत्र को करती है।
सितंबर 2008 की तिमाही में नोवेलिस को 103 मिलियन डॉलर का घाटा लेगा था और उस समय एल्युमीनियम की कीमत 2,800 डॉलर प्रति टन थी।
तबसे लेकर अब तक कीमतों में 47 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है और फिलहाल कीमत पांच वर्षों के सबसे न्यूनतम स्तर पर है।
विश्लेषकों का मानना है कि वित्त वर्ष 2009-10 में हिंडाल्को के कंसोलिडेट राजस्व में करीब 13 फीसदी की गिरावट आ सकती है जबकि शुध्द मुनाफे में 50 फीसदी तक की कमी आने की संभावना बताई जा रही है।
मौजूदा वित्त वर्ष में राजस्व के 67,000 करोड रुपये रहने काअनुमान लगाया गया है जबकि शुध्द मुनाफे के 850 करोड रुपये के स्तर पर रहने का अनुमान है।
इसी तरह 4,988 करोड रुपये की कंपनी नाल्को जो विदेशी बाजारों में कारोबार केजरिए अपने कुल राजस्व का 40 फीसदी हिस्सा अर्जित करती है, वह भी कीमतों में आई कमी के कारण अपनी लागत में कमी पर जोर दे रही है।
विश्लेषकों ने कंपनी के राजस्व में वित्त वर्ष्र 2008-09 में 10 फीसदी घाटे और शुध्द मुनाफे में 25 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया है।