अगर कोई व्यक्ति पिछले एक साल के दौरान फंड प्रबंधकों की क्रिया-कलापों पर नजर डालें तो उनका रुझान वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में बढ़ा है और तकनीक एवं हेल्थकेयर के क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी घटी है।
इसका कारण भी पूर्णत: स्पष्ट है। एक तरफ जहां आईटी (सूचना एवं प्रौद्योगिकी) कंपनियां रुपये की मजबूती और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की संभावित मंदी से अभी भी उबरने की कोशिश कर रहे हैं वहीं वित्तीय सेवाओं, खास तौर से बैंक, के बारे में अनुमान है कि 2009 में बैंकिंग उदारीकरण के बाद कुछ सकारात्मक परिणाम देंगे। यही वजह है कि फंड प्रबंधकों का झुकाव इस सेक्टर की तरफ अधिक है।
विशाखित इक्विटी फंड के वर्ग ने पिछले एक वर्ष के दौरान बैंकिंग सेक्टर में अपना निवेश दोगुना कर दिया है और अब इसे वर्ग का शीर्षस्थ निवेश वाला वर्ग बना दिया है। इसके बाद बारी आती है ऊर्जा और मूलभूत अभियांत्रिकी वर्ग की।
इस वर्ग का निवेश वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में अप्रैल 2007 में 8.85 प्रतिशत था और मार्च 2008 में 14.62 प्रतिशत से अधिक था।अप्रैल 24 2008 को समाप्त हुए एक वर्ष की अवधि में बैंकिंग फंडों में औसतन 37 प्रतिशत की बढ़त हुई, जो केवल उच्चतम ही नहीं है बल्कि दूसरा सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले- इक्विटी विशाखित वर्ग से महत्वपूर्ण तौर पर आगे भी है जिसने 20.25 प्रतिशत का प्रतिफल दिया।
यूटीआई बैंकिंग और रिलायंस बैंकिंग जैसे फंडों ने पिछले एक वर्ष के दौरान क्रमश: 24.15 और 43.62 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है।बैंकिंग के प्रति दिलचस्पी का अंदाजा इस वास्तविकता से भी लगाया जा सकता है कि पिछले पांच महीने में दो एक्सचेंज ट्रेडेड फंड लॉन्च किए जा चुके हैं, पीएसयू बैंक बीईईएस (अक्टूबर 2007 में लॉन्च) और कोटक बैंक पीएसयू ईटीएफ (नवंबर 2007 में लॉन्च) की शुरुआत देश में बैंकिंग सेक्टर में आ रही तेजी से लाभ उठाने के लिए किया गया था।
सर्वाधिक लोकप्रिय बैंकिंग शेयरों में आईसीआईसीआई बैंक जो भारत में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक है और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है। फरवरी महीने में आईसीआईसीआई बैंक फरवरी महीने में 54 इक्विटी विशाखित फंडों के शीर्ष पांच निवेशों में शामिल था।उसी प्रकार, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया फरवरी महीने में 29 इक्विटी विशाखित फंडों के शीर्षस्थ पांच निवेशों में शामिल था और कुल मिला कर म्युचुअल फंडों की 114 योजनाओं में शामिल था।
बैंकिंक सेक्टर के आकर्षक होने के क्या कारण है? प्रस्तावित बैंकिंग उदारीकरण निश्चित ही सबसे प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त, खास तौर से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के आकर्षक मूल्यांकन से भी फंड प्रबंधक बैंकिंग शेयरों की प्रति आकर्षित हुए हैं।एचडीएफसी- सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब के विलय के बाद कोई भी व्यक्ति यह मान सकता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने अपने आकार बढ़ाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक या सरकार, जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मालिक है, द्वारा इस मुद्दे पर गंभीर निर्णय लिया जाना अभी तक बाकी है।सरकार द्वारा एक बार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय और अधिग्रहणों की शुरुआत, जिसके बारे में पहले संकेत दिए गए हैं, से हिस्सेदारों (शेयरधारकों) को लाभ होगा। लेकिन जैसा वे कहते हैं कि सफलता का मार्ग हमेशा ही निर्माणाधीन होता है, बैंकिंग के रास्ते में भी कई गङ्ढे और गति-अवरोधक है, कम से कम अल्पावधि के मााले में निश्चित रुप से।
यूनियन बजट 2008-09 में वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा 60,000 करोड रुपये जैसी बड़ी राशि का कृषि ऋण माफ कर बैंकिंग के रास्ते में ऐसा ही एक गङ्ढा तैयार किया गया था।यद्यपि, इससे कितनी क्षति हुई, इसकी क्षति पूर्ति कौन करेगा और किस प्रकार इन मुद्दों पर काम होना बाकी है। बैंकिंग बिरादरी ने इस निर्णय की मुखालफत नहीं की है।
इस कारण से बजट की घोषणा के बाद बीएसई के बैंक सूचकांक बैंकेक्स में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई। दूसरी अप्रत्याशित लहर आईसीआईसीआई बैंक की तरफ से आई कि विदेशी परिचालन का मार्क-टु-मार्केट घाटा 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है।
इसके शेयरों का कारोबार अभी 900 रुपये पर किया जा रहा है।इन चीजों से बैंकिंग क्षेत्र की बढ़त में अल्पकालीन कमी आ सकती है। फंड प्रबंधक और निवेशक निवेश की दृष्टि से बैंक को लक्ष्य कर रहे हैं।