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लाभांश व पुनर्खरीद के कराधान में एकरूपता चाहते हैं एफपीआई

Last Updated- December 11, 2022 | 9:36 PM IST

बाजार के प्रतिभागियों ने कहा है कि इस साल के आम बजट में लाभांश और पुनर्खरीद के कराधान में एकरूपता लाने की दरकार है। साल 2020 के बजट में लाभांश वितरण कर कंपनी के हाथ से हटा दिया गया था और कहा गया था कि कंपनी की तरफ से शेयरधारकोंं दी जाने वाली लाभांश आय पर 10 फीसदी स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) होगी, अगर लाभांश आय किसी एक वर्ष में 5,000 रुपये से ज्यादा हो। इस कदम से प्रभावी तौर पर लाभांश निवेशकों के हाथों में करयोग्य हो गया।
भारतीय कंपनियां हालांकि अभी शेयर पुनर्खरीद पर 20 फीसदी कर (सरचार्ज व उपकर अलग से) चुकाती है। साल 2013 में असूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से पुनर्खरीद पर कर लगाया गया था और शेयरधारकों के हाथों में इसे करमुक्त किया गया था। साल 2019 में ये प्रावधान सूचीबद्ध कंपनियोंं पर भी लागू हो गए। साथ ही इस संशोधन का कारण कर आर्बिट्रेज बताया गया, जहां सूचीबद्ध कंपनियां लाभांश के भुगतान के बजाय शेयर पुनर्खरीद चुनती हैं क्योंकि पूंजीगत लाभ कर की दर लाभांश वितरण कर से कम है।
ऐसी ज्यादातर पुनर्खरीद टेंडर के जरिए हुई, जो प्रवर्तकों को अपने शेयर बेचने की इजाजत देता है। विश्लेषकों ने कहा कि शेयरों की पुनर्खरीद से प्रवर्तकों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, वहीं कंपनियों को इसका ज्यादा लाभ नहीं मिला।
यह कराधान खास तौर से बड़े शेयरधारकों जैसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) पर असर डाल सकता है। ऐसे निवेशकोंं के लिए लाभांश पर अब 20 फीसदी कर और सरचार्ज व उपकर लगता है और यह कम हो सकता है अगर एफपीआई किसी संधि वाले क्षेत्र से हों। इसके अलावा अहम कर संधि वाले देशों से दोबारा बातचीत के बाद इक्विटी शेयरों पर अब पूंजीगत लाभ कर से छूट नहीं दी जाती।
चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश स्वामी ने कहा, किसी संधि वाले क्षेत्र के एफपीआई पर लाभांश व पूंजीगत लाभ पर कर 10 फीसदी या 15 फीसदी हो सकती है। इसलिए सूचीबद्ध कंपनियों के हाथ में पुनर्खरीद कर का तर्क अब लागू नहीं होता। साथ ही शेयरधारकों के हाथों में पुनर्खरीद की आय पर छूट से ऐसी स्थिति बनती है जहां वे पुनर्खरीद पर पूंजीगत नुकसान पर दावा करने में अक्षम होते हैं क्योंकि आय छूट के दायरे में आती है। ऐसे में कंपनियों पर पुनर्खरीद कर पर दोबारा विचार करने का यह सही मौका हो सकता है।
कर विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा स्थिति से दोहरे कराधान का मामला बन सकता है। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर राजेश गांधी ने कहा, पुनर्खरीद पर कर हटाने की दरकार है और इसकी जगह शेयरधारकोंं पर उसी तरह कर लगाया जाना चाहिए जैसा कि लाभांश वितरण कर के हटाए जाने पर लगाया गया था। पुनर्खरीद कर से उसी आय पर दोहरा कराधान हो जाता है, जिसकी वजह उसकी गणना का तरीका है। पुनर्खरीद कर पर क्रेडिट का दावा करने में विदेशी निवेशकों को चुनौतियोंं का सामना करना होता है क्योंंकि इसकी प्रकृति शेयरधारकों पर विदहोल्डिंग टैक्स जैसी नहीं है। अंतत: कर से यह फैसला नहीं होना चाहिए कि शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कंपनियां कौन सा तरीका अपनाए।
साल 2021 में घोषित पुनर्खरीद एक साल पहले के मुकाबले 64 फीसदी घटकर 14,341 करोड़ रुपये रह गई। पुनर्खरीद की वास्तविक रकम 13,658 करोड़ रुपये रही। दोनों ही रकम साल 2015 के बाद सबसे कम है।
जब कोई कंपनी अपने ही शेयर स्टॉक मार्केट से खरीदती है तो उसे पुनर्खरीद कहा जाता है और यह आम तौर पर बाजार कीमत से ज्यादा पर होता है। पुनर्खरीद से बाजार में शेयरों की संख्या कम हो जाती है, लिहाजा प्रति शेयर आय सकारात्मक हो जाती है।

First Published - January 28, 2022 | 11:16 PM IST

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