विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए लॉबी समूह एशिया सिक्योरिटीज इंडस्ट्री ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन (आसिफमा) ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से कहा है कि डिपोजिटरी रिसीट्स (डीआर) में विदेशी निवेश की निगरानी से संबंधित कानून को तीन अन्य महीने तक टाला जाए। आसिफमा ने इसका कारण कानूनी समस्याओं और मौजूदा स्वरूप में सर्कुलर पर अमल में चुनौतियां पैदा होना बताया है।
1 अप्रैल से प्रभावी होने वाले नए नियमों को एक महीने तक टाल दिया गया था। इन मानकों में संबद्घ डिपोजिटरी कारोबारियों या कस्टोडियन को ऑफशोर डेरिवेटिव योजनाओं (ओडीआई) और एफपीआई के अधीन डीआर के संग्रह, निगरानी और हर महीने जानकारी देने की जरूरत है। उद्योग संगठन ने कहा है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में निवेशक सर्कुलर के बारे में कानूनी सलाह हासिल करने की प्रक्रिया में है। इसके लिए सेबी के साथ बातचीत की गई है और मौजूद स्वरूप में सर्कुलर के क्रियान्वयन से संबंधित कई चुनौतियों का जिक्र किया गया है।
आसिफमा ने सेबी को बताया है कि वह इस बारे में सलाह हासिल करने के लिए बाहरी अधिवक्ता के साथ बातचीत कर रहा है क्या डीआर और भारत से बाहर ओडीआई में होल्डिंग से संबंधित डेटा कानूनी और नियामकीय आधार पर हासिल किया जा सकता है, और साथ ही जरूरी जानकारी हासिल करते वक्त कानूनी और नियामकीय पहलुओं पर भी विचार करना होगा।
सेबी को भेजे ताजा पत्र में कहा गया है, ‘सभी कानूनी इकाइयों से डेटा एकत्रित करने का व्यापक कार्य नए तरीके में चुनौतीपूर्ण है और इस पर कार्य शुरुआती चरणों में है और यह कानूनी परामर्श तथा सेबी के साथ बातचीत पर आधारित है।’
एक पिछले पत्र में आसिफमा ने कहा था कि ओडीआई और डीआर की रिपोर्टिंग के लिए समान ढांचा किसी अन्य क्षेत्राधिकार में लागू नहीं था और यह संगठन सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ऐसे डीआर होल्डिंग डेटा से अवगत नहीं था, जिसे संस्थागत संदर्भ आंकड़ा प्रणाली से जोड़ा जा सके।
उसने डेटा सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को भी उठाया है। पत्र में कहा गया है, ‘निवेशक से हासिी की जाने वाली जानकारी बेहद संवेदनशील होती है और ईमेल के जरिये ऐसी जानकारी साझा करने के लिए डेटा सुरक्षा नियामकीय चुनौती सामने आएंगी। साइबर सुरक्षा चुनौतियां (खासकर जब डेटा को बाजार कारोबारियों के बीच स्थानांतरित किया जाता है) बढ़ी हैं और इसके लिए व्यापक रूप से एन्क्रिप्शन की जरूरत है।’ इसके अलावा, कस्टोडियंस ने भी नोडल एफपीआई के जरिये कस्टोडियन के लिए जानकारी का खुलासा करते वक्त गोपनीयता की चिंताओं का भी जिक्र किया है, खासकर तब जब निवेशक समूह के एफपीआई हिस्से और कस्टोडियन के बीच कोई खाता संबंधित संबंध न हो।
इस समस्या को दूर करने के लिए, कस्टोडियन चाहते हैं कि डिपोजिटरी नोडल एफपीआई या एफपीआई के कार्य को सुगम बनाने के लिए एक केंद्रीकृत वेब पोर्टल विकसित करे।
कस्टोडियन का मानना है कि मौजूदा समय में डिपोजिटरी खाते पंजीकृत एफपीआई के नाम पर खुलते हैं और उन खातों में प्रतिभूतियों को सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे एफपीआई के लिए, कस्टोडियन ओडीआई या डीआर द्वारा पेश भारतीय प्रतिभूति का रिकॉर्ड बनाए नहीं रखते हैं।
