पिछले एक साल में बैंकों, म्युचुअल फंडों, बीमा कंपनियों और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने प्रमुख टेक्सटाइल कंपनियों में अपना निवेश काफी कम कर लिया है।
इनमें आलोक इंडस्ट्रीज और वेल्सपन टेक्सटाइल जैसी कंपनियां भी शामिल हैं। गौरतलब है कि रुपए के मजबूत होने और लागत खर्च में इजाफा होने के चलते टेक्सटाइल सेक्टर उम्मीद के मुताबिक बेहतर नहीं कर पा रहा है।
लिहाजा, संस्थागत निवेशकों ने अपनी हिस्सेदारी कम करनी शुरु कर दी है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री का ज्यादातर कारोबार निर्यात पर निर्भर है,क्योंकि इसकी 50 फीसदी से ज्यादा की कमाई निर्यात आधारित कारोबार से होती है,जो रुपए के मजबूत होने से काफी प्रभावित हुआ है।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंक ड़ों के मुताबिक निर्यात में अप्रैल-दिसंबर 2007-08 के दौरान 8.60 फीसदी बढ़कर 13 अरब डॉलर का हो गया, लेकिन रुपए केलिहाज से देखा जाए तो इसमें कुल 3.54 फीसदी यानी 52,559 करोड़ की गिरावट दर्ज की गई है।
वर्ष 2007-08 के दौरान रुपया 12 प्रतिशत मजबूत हुआ, यह टेक्सटाइल कंपनियों के लिए बहुत बुरी बात थी उनके आय में कमी आई।इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कई भारत स्थित टेक्सटाइल कंपनियां और दूसरी कंपनियां भारत के पड़ोसी देश चीन और बाग्लादेश में अपना कारोबार स्थापित करने लगी।
टेक्सटाइल सेक्टर में काम कर रहे लगभग हजारों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा। टेक्सटाइल सेक्टर के जानकारों का कहना है कि भारतीय कंपनियों का चीनी कंपनियों से खुली प्रतियोगिता में पीछे रह जाने की मुख्य वजह रुपए में आई मजबूती है।