पूंजी बाजार नियामक – भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास IPO के दस्तावेज जमा कराने की संख्या इस वित्त वर्ष (2022-23) में घटकर आधे से भी कम रह गई है क्योंकि द्वितीयक बाजार में कमी आने के बाद नए शेयरों की बिक्री का दृष्टिकोण बिगड़ गया है। वित्त वर्ष 23 में अब तक 66 कंपनियों ने अपना मसौदा (DRHP) दाखिल किया, जबकि पिछले वित्त वर्ष (2021-22) में यह संख्या 144 थी।
उद्योग के भागीदारों ने कहा कि मूल्यांकन में गिरावट के बीच वित्त वर्ष 22 के बाद आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) बाजार की हालत खराब हो गई है तथा बैंकिंग क्षेत्र के झटके के बावजूद अमेरिकी फेडरल रिजर्व के संबंध में संदेहपूर्ण परिदृश्य में दर बढ़ोतरी के आसार हैं।
DRHP शुरुआती प्रॉस्पेक्टस होता है, जिसे IPO से पहले जमा कराया जाता है। इसमें महत्वपूर्ण विवरण शामिल रहता है, जैसे पेश किए जाने वाले शेयरों की संख्या, वित्तीय परिणाम और जोखिम कारक आदि। DRHP जमा करना किसी कंपनी द्वारा अपना IPO लाने का इरादा बताता है। लेकिन अपना DRHP पेश करने वाली सभी कंपनियां बाजार में नहीं जा सकती हैं।
प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी, वैश्विक मंदी की आशंका और जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे कारकों ने इस साल निवेशकों आशंकित कर रखा है। हाल के दिनों में अदाणी समूह पर अमेरिका की शॉर्ट-सेलिंग हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट और अमेरिका में तीन प्रमुख ऋणदाताओं की विफलता ने बाजार में तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है, जिससे दृष्टिकोण और बिगड़ गया।
इसके विपरीत वित्त वर्ष 22 में बाजारों में मुख्य रूप से बढ़त का रुझान था, जो सौदे करने के लिए बेहतर आधार प्रदान कर रहा था। वित्त वर्ष 23 में अब तक सेंसेक्स तीन फीसदी गिर चुका है। वित्त वर्ष 22 सूचकांक करीब 19 प्रतिशत चढ़ा था। हालांकि इस वित्त वर्ष के दौरान बाजार में गिरावट तेज नहीं रही है, लेकिन तेज गिरावट के बार-बार झटके लगे हैं। द्वितीयक बाजार में इस तरह की अस्थिरता प्राथमिक बाजार पर भारी पड़ती है।
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इस वित्त वर्ष के 12 महीने में से चार में कोई IPO नहीं आया। वित्त वर्ष 23 में अब तक IPO 68,580 करोड़ रुपये जुटाने में ही कामयाब रहे, जो पिछले वित्त वर्ष में जुटाए गए 2.64 लाख करोड़ रुपये की तुलना में लगभग 70 प्रतिशत कम है।
प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा कि किसी कंपनी को अपना IPO लाने में तीन से चार साल लग जाते हैं। हमने 12 महीनों में ज्यादा गतिविधि नहीं देखी है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की आक्रामक बिकवाली भी निवेशकों को परेशान कर रही है। FPI ने वित्त वर्ष 23 में अब तक 30,693 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। वित्त वर्ष 22 में वे 1.42 लाख करोड़ के शुद्ध विक्रेता थे। हालांकि इस बिक्री का एक बड़ा हिस्सा वर्ष के उत्तरार्ध में किया गया था।