IT Funds: H-1B वीजा पर नई फीस को लेकर मची हलचल के बीच आईटी फंड्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हर नए H-1B वीजा आवेदन पर एकमुश्त 1 लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस लगा दी है। इस साल अब तक आईटी फंड्स में 11.4% की गिरावट देखने को मिली है। फिलहाल 32 स्कीमें कुल मिलकर 47,569 करोड़ रुपये मैनेज कर रही हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि निवेशकों को इस खबर पर जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
H-1B वीजा की लागत में तेज बढ़ोतरी से अमेरिकी बाजार पर ज्यादा निर्भर भारतीय आईटी कंपनियों के ऑपरेटिंग खर्च बढ़ जाएंगे। वालट्रस्ट के डायरेक्टर और को-फाउंडर राहुल भूतोरिया ने कहा, “बड़ी आईटी कंपनियों की करीब 60–65% आमदनी नॉर्थ अमेरिका से आती है और कई प्रोजेक्ट वीजा होल्डर्स पर निर्भर रहते हैं।”
H-1B वीजा पर ज्यादा निर्भर कंपनियों के मार्जिन पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। हालांकि यह फीस केवल नए आवेदनों पर लागू होगी, न कि रिन्यूअल या मौजूदा वीजा होल्डर्स पर। कोटक म्युचुअल फंड की हेड ऑफ इक्विटी और फंड मैनेजर शिबानी कुरियन कहती हैं, “भारतीय आईटी कंपनियों के मार्जिन और कमाई पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। अगर इसका कोई असर दिखा भी तो वह वित्त वर्ष 2026-2027 से दिखाई देगा।”
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मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसका कुल मिलाकर असर सीमित रहेगा। आनंद राठी वेल्थ के जॉइंट सीईओ फिरोज अजीज कहते हैं, “वित्त वर्ष 2026-2027 में लार्ज-कैप आईटी कंपनियों की प्रति शेयर आय (EPS) में 0.3-1% की गिरावट आने की आशंका है, जबकि मिड-कैप कंपनियों पर 1.5-4.4% का औसत प्रभाव पड़ सकता है।
बड़ी कंपनियां पहले से ही ऑन-साइट और ऑफशोर वर्किंग मॉडल का संतुलन बनाए रखती हैं। भूतोरिया ने कहा, “मिड-साइज और छोटी कंपनियां, जो H-1B टैलेंट पर ज्यादा निर्भर हैं, उनके लिए लागत बढ़ सकती है। इससे उनके मार्जिन और प्रोजेक्ट की डिलीवरी टाइमलाइन पर असर पड़ सकता है।”
आईटी सर्विस कंपनियों की ओर से H-1B वीजा आवेदन लगातार घट रहे हैं और अब इन वीजा होल्डर्स का हिस्सा कुल वर्कफोर्स में काफी कम हो गया है।
एलजीटी वेल्थ इंडिया के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर चक्री लोकप्रिया के अनुसार, “आज उनकी ग्लोबल वर्कफोर्स में केवल 2–4% कर्मचारी ही H-1B वीजा पर हैं, जबकि अमेरिका में उनकी 67–72% स्टाफिंग लोकल हायरिंग के जरिए हो रही है।”
अजीज ने बताया कि लार्ज-कैप आईटी कंपनियों ने नॉर्थ अमेरिकी वर्कफोर्स में H-1B पर निर्भरता घटाकर 20–40% तक ला दी है।
असित सी. मेहता इन्वेस्टमेंट इंटरमीडिएट्स के हेड ऑफ इंस्टीट्यूशनल रिसर्च सिद्धार्थ भामरे कहते हैं, “काम भारत से कराया जा सकता है, वहीं अमेरिका में लोकल हायरिंग करने से निर्भरता घटाई जा सकती है।” उनके मुताबिक अतिरिक्त लागत का कुछ हिस्सा क्लाइंट्स के साथ भी साझा किया जा सकता है।
अन्य रणनीतियों में कम लागत वाली दूसरे देशों में विस्तार शामिल है। शेयर.मार्केट के मार्केट एनालिस्ट ओम घवलकर कहते हैं, “भारतीय आईटी कंपनियां भारत से ऑफशोर डिलीवरी बढ़ा सकती हैं और लागत घटाने तथा वीजा पर निर्भरता कम करने के लिए ऑटोमेशन में निवेश कर सकती हैं।”
भारतीय आईटी कंपनियां अपने क्लाइंट बेस को यूरोप, एशिया पैसिफिक और मिडिल ईस्ट में भी डाइवर्सिफाई करने की कोशिश करेंगी।
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आईटी सेक्टर के सामने सबसे बड़ी चुनौती मैक्रो और ट्रेड अनिश्चितताओं के चलते विवेकाधीन तकनीकी खर्च में कमी है। नॉर्थ अमेरिका और यूरोप जैसे क्षेत्रों में क्लाइंट्स की ओर से विवेकाधीन तकनीकी खर्च में कमी आई है। खासकर उन सेक्टर्स में जो टैरिफ से प्रभावित हैं, जैसे रिटेल, ऑटोमोबाइल और ER&D (इंजीनियरिंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट)।
कुरियन कहती हैं, “भारतीय आईटी सर्विस कंपनियों के लिए निकट भविष्य में रेवेन्यू ग्रोथ की रफ्तार मजबूत डील बुकिंग के बावजूद धीमी रही है। असली चुनौती डील्स के रेवेन्यू में धीमी कन्वर्जन की है।”
सेक्टर को जेनेरेटिव AI के तेजी से अपनाने के चलते भी कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है। भामरे ने कहा, “सबसे बड़ी समस्या टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ने और लार्ज-कैप कंपनियों की टॉप लाइन में कम या जीरो ग्रोथ है।”
मुख्य बाजारों में रेगुलेटरी प्रेशर और कॉम्प्लायंस की जटिलताएं बढ़ रही हैं। घवलकर के अनुसार, “क्लाउड की बढ़ती लागत, टैलेंट की कमी और कर्मचारियों को बनाए रखने की चुनौतियां, खासकर साइबर सिक्योरिटी और AI स्किल्स वाले क्षेत्रों में, अभी भी गंभीर चिंता का विषय हैं।”
पुराने सिस्टम (Legacy systems) इनोवेशन को धीमा कर रहे हैं। साथ ही, भारत में मजदूरी बढ़ने और पुराने सेवाओं में कीमत की कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण कंपनियों के मुनाफे (मार्जिन) और कम हो रहे हैं।
चुनौतियों के बावजूद, आईटी सेक्टर ने बड़ी असफलताओं को टाला है। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के वाइस प्रेसिडेंट और इंस्टीट्यूशनल रिसर्च एनालिस्ट अभिषेक पाठक के अनुसार, “क्लाइंट्स द्वारा बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट को टालने या रैंप-डाउन की ज्यादातर घटनाओं को काफी हद तक टाला गया है। सौदों की गति स्थिर बनी हुई है, खासकर कॉस्ट ऑप्टिमाइजेशन और वेंडर कंसॉलिडेशन में। BFSI वर्टिकल अभी भी मजबूत है।”
जैसे ही मैक्रो इकोनॉमी में स्थिरता लौटेगी, विवेकाधीन तकनीकी खर्च में फिर से तेजी आने की उम्मीद है। मीडियम टू लॉन्ग टर्म आउटलुक पॉजिटिव बना हुआ है। कुरियन के अनुसार, “एंटरप्राइज लेवल पर AI को अपनाना भारतीय आईटी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण ग्रोथ अवसर पेश करता है। कंपनियां अपने वर्कफोर्स को री-स्किल कर रही हैं ताकि AI आधारित अवसरों का फायदा उठाया जा सके।”
हाल ही में फेड द्वारा ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती से एंटरप्राइज की मांग में सुधार हुआ है। पाठक के अनुसार, “आगे दो और रेट कट की संभावना से मैक्रो आउटलुक अनुकूल बनता है।”
इस सेक्टर का वैल्यूएशन अब लंबी अवधि के औसत के अनुरूप है।
कंपनियों से उम्मीद है कि वे अपनी डिलीवरी क्षमता विकसित करेंगी। सेबी-रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर और सहजमनी.कॉम के फाउंडर अभिषेक कुमार के अनुसार, “H-1B फीस में बढ़ोतरी खुद ऑफशोर डिलीवरी मॉडल को बढ़ावा दे सकती है, जिससे समय के साथ प्रतिस्पर्धात्मकता बेहतर होगी।”
जैसे ही मैक्रो इकॉनमी में स्थिरता लौटेगी, विवेकाधीन तकनीकी खर्च फिर से बढ़ने की उम्मीद है। कुरियन के अनुसार, “AI के लागू होने से डेटा और क्लाउड माइग्रेशन, डेटा स्टैक्स और एनालिटिक्स में मीडियम-टर्म में नए अवसर पैदा होंगे।”
लोकप्रिया के मुताबिक, ग्लोबल टेक खर्च स्थिर होने और AI इंटीग्रेशन बढ़ने के चलते 2026 तक प्रॉफिट ग्रोथ में सुधार देखने को मिल सकता है।
कुमार निवेशकों को सलाह देते हैं कि वे निवेश बनाए रखें और शॉर्ट टर्म की अस्थिरता में भावनात्मक रूप से बाहर न निकलें। उनके अनुसार, निवेशकों को तीन से पांच साल के आउटलुक के साथ निवेश बनाए रखना चाहिए। उनके अनुसार, नए निवेशकों को रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न को अधिकतम करने के लिए अगली कुछ तिमाहियों में क्रमिक निवेश पर विचार करना चाहिए।