प्रतीकात्मक तस्वीर
केंद्र और राज्यों के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अधिकारियों ने देश भर के होटलों पर अप्रत्यक्ष कर का कम भुगतान करने पर कार्रवाई की है। इस संबंध में होटलों को अप्रत्यक्ष कर के हजारों करोड़ रुपये के नोटिस जारी किए गए हैं।
कानून के तहत यदि होटल के कमरे का घोषित शुल्क 7,500 रुपये रोजाना से अधिक है तो रेस्टोरेंट सेवाओं पर 18 प्रतिशत जीएसटी लागू होता है। हालांकि होटल के कमरे का किराया 7500 रुपये प्रतिदिन से कम होने की स्थिति में रेस्टोरेंट सेवाओं पर 5 प्रतिशत शुल्क लगता है। जीएसटी के अधिकारियों ने जांच में पाया कि कई संस्थानों ने कमरे का रोजाना का किराया 7,500 रुपये की सीमा से अधिक होने के बावजूद रेस्टोरेंट की सेवाएं 18 प्रतिशत की जगह 5 प्रतिशत के रियायती शुल्क पर देना जारी रखा है।
सूत्रों के मुताबिक जीएसटी के खुफिया महानिदेशालय की पुणे इकाई ने एक ऐसे मामले में आतिथ्य क्षेत्र से जुड़ी कंपनी पर वित्त वर्ष 20 से वित्त वर्ष 25 तक रेस्टोरेंट सेवाओं के लिए 3.63 करोड़ रुपये कम अदा करने की सूचना जारी की है। अन्य होटल समूह अक्टूबर 2021 से जुलाई 2023 के दौरान रेस्टोरेंट की सेवाएं मुहैया कराने के लिए 44.9 लाख रुपये कम भुगतान करता पाया गया।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने इन मांगों के दस्तावेज को देखा है। ये दोनों मांग सीजीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत की गई हैं और इन पर ब्याज व दंड शामिल हैं। उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक कमरे के शुल्क के साथ रेस्टोरेंट के शुल्क को जोड़ना गैरवाजिब व अव्यावहारिक है।
रस्तोगी चैम्बर के संस्थापक अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘इस प्रावधान को विशेष तौर समानुपात के सिद्धांतों के अनुरूप संवैधानिकता की कसौटी पर कसना होगा। हमेशा जीएसटी परिषद का स्पष्ट इरादा रेस्टोरेंट सेवाओं पर कर को तार्किक व कम करना रहा है। रेस्टोरेंट की कर दर को होटर के कमरे के शुल्क से जोड़ना अनुपातहीन और बेतुके परिणाम देने वाला है।’
संचालकों ने होटल में आकर खाना खाने पर प्रतिकूल असर पड़ने पर चिंता जताई है।
सेंट लॉर्न होटल्स ऐंड रिसार्ट के प्रबंध निदेशक लक्ष्मण कारिया ने बताया, ‘कर का मौजूदा प्रारूप होटल में कमरा लिए बिना खाना खाने आने वालों के लिए दिक्कतें पैदा करता है। होटल के कमरे के शुल्क से रेस्टोरेंट की कर दर को जोड़ना अव्यावहारिक है। यह उन लोगों पर दंड है जो हमारे होटलों में रहे बिना खाना खाने आते हैं। रेस्टोरेंट की सेवाओं को स्वतंत्र माना जाना चाहिए ताकि इससे निष्पक्षता और व्यापार की आसानी रह सके। इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय की टिप्पणी जानने के लिए ईमेल भेजा गया था लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला।