सर्वोच्च न्यायालय का आज का फैसला प्रतिभूतियों से जुड़े उल्लंघन और इसी तरह की चिंताओं पर नियामक की भूमिका को मजबूत बनाता है। यह कहना है लॉ व प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्मों के अधिकारियों का। प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इनगवर्न के संस्थापक व प्रबंध निदेशक श्रीराम सुब्रमण्यन ने कहा कि फैसले का मतलब यह है कि किसी भी तरह की प्रतिभूति जांच व प्रतिभूति कानून के उल्लंघन की जांच सेबी करेगा। सामान्य तौर पर कॉरपोरेट गवर्नेंस के लिए इसके यही निहितार्थ हैं।
कानूनी फर्मों के प्रतिनिधियों ने भी ऐसी ही राय व्यक्त की। किंग स्टब ऐंड काशिव एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नी के प्रबंध साझेदार जिदेश कुमार ने कहा कि इससे यह कानूनी तथ्य भी स्थापित होता है कि अच्छे कंपनी प्रशासन से चलने वाली, नियमों से संचालित और अनुपालन की सक्षम व्यवस्था वाली कंपनियों को न तो कार्यपालिका और न ही न्यायपालिका से डरने की जरूरत होगी और भारत जैसे तेज बढ़त वाले बाजार में वे आसानी से कारोबार कर सकती हैं।
स्टेकहोल्डर्स एम्पावरमेंट सर्विसेज के संस्थापक व प्रबंध निदेशक जेएन गुप्ता ने कहा कि यह फैसला अदाणी समूह या भारतीय कंपनियों के कॉरपोरेट गवर्नेंस पर टिप्पणी नहीं है। आदेश हालांकि जोर देता है कि अपने नियमन की व्याख्या में सेबी की बात ही अंतिम होगी। उन्होंने कहा, यह हिंडनबर्ग रिपोर्ट नहीं बल्कि उसके बाद मचा शोर था जिससे निवेशकों के हितों को झटका लगा था। आज का आदेश ऐसे मामलों में अदालतों को शामिल करने की ओछी कोशिशों पर विराम लगाता है।
प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) के लिए सर्वोच्च न्यायालय की लंबित जांच ऑडिट के लिहाज से चिंता का विषय थी।
उदाहरण के लिए 3 जुलाई की रिपोर्ट में आईआईएएस ने शेयरधारकों को अदाणी की सहायक सीमेंट कंपनी एसीसी के वित्त वर्ष 23 के वित्तीय विवरण को मंजूरी वाले प्रस्ताव के खिलाफ मतदान की सिफारिश की थी, जिसका कारण गवर्नेंस और वित्तीय असर था। सर्वोच्च न्यायालय व नियामकीय जांच लंबित होने से ऑडिटर वित्तीय विवरण पर संभावित असर को लेकर टिप्पणी करने में असमर्थ रहे।
आईआईएएस के संबंधित अधिकारी आज के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे।
पिछले साल हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के ठीक बाद रेटिंग एजेंसियों मसलन क्रिसिल ने फरवरी के नोट में कहा था, रिसर्च रिपोर्ट, कॉरपोरेट गवर्नेंस या समूह की संसाधन जुटाने की क्षमता में कमी के आलोक में कोई प्रतिकूल नियामकीय या सरकारी कदम पर नजर रखी जानी चाहिए क्योंकि कंपनी का शेयर लगातार टूट रहा है। रेटिंग एजेंसी ने उसके बाद कोई टिप्पणी नहीं की है।
अन्य भी इस बात से सहमत हैं कि इस मामले में सेबी पर नजर रहेगी। रेटिंग एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा, हम सेबी की रिपोर्ट सार्वजनिक होने का इंतजार करेंगे।