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अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के भ्रामक दावों से निपटने की दरकार

'अक्सर सेहत के लिए नुकसानदेह पैकेटबंद खाद्य पदार्थों का विज्ञापन और विपणन स्वास्थ्य के लिए बेहतर उत्पाद के रूप में किया जाता है।

Last Updated- January 31, 2025 | 10:45 PM IST
LT Foods

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड (यूपीएफ) के बारे में पोषण संबंधी भ्रामक दावों और गुमराह करने वाली सूचनाओं से निपटने और उन्हें जांच के दायरे में लाने की जरूरत है। सरकार ने यह भी कहा कि नमक और चीनी की मात्रा के लिए मानक निर्धारित किए जाने चाहिए। साथ ही यूपीएफ ब्रांड नियमों का अनुपालन करें, यह सुनिश्चित करने के उपाय भी करने होंगे।

आर्थिक समीक्षा में यूपीएफ श्रेणी पर गौर किया गया है। उसमें कहा गया है कि ऐसे उत्पाद अधिक कैलोरी को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं और उसमें खाद्य रणनीतियां शामिल होती हैं। इन रणनीतियों के तहत उपभोक्ता व्यवहार को लक्ष्य करते हुए भ्रामक विज्ञापन और मशहूर हस्तियों से प्रचार जैसे हथकंडे अपनाए जाते हैं।

समीक्षा में कहा गया है, ‘अक्सर सेहत के लिए नुकसानदेह पैकेटबंद खाद्य पदार्थों का विज्ञापन और विपणन स्वास्थ्य के लिए बेहतर उत्पाद के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, नाश्ते के अनाज, टेट्रा पैक जूस और चॉकलेट मॉल्ट ड्रिंक जैसे उत्पादों को अक्सर स्वास्थ्यवर्धक एवं पौष्टिक उत्पाद के रूप में विज्ञापित किया जाता है। मगर सामग्रियों के आधार पर वे यूपीएफ श्रेणी में आते हैं।’ समीक्षा में यह भी कहा गया है कि सेहत पर यूपीएफ के बुरे प्रभावों और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

समीक्षा में कहा गया है, ‘स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ता तैयार किए जाने से विभिन्न यूपीएफ ब्रांड को स्वस्थ विकल्प लाने अथवा यूपीएफ के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सकता है। लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने और जागरूकता पैदा करने के लिए व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है।’

समीक्षा में यह भी कहा गया है कि स्थानीय एवं मौसमी फल और सब्जियों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। साबुत अनाज, मोटे अनाज, फल और सब्जियां जैसे स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, कीमत और खपत में सुधार के लिए सकारात्मक सब्सिडी प्रदान करने की जरूरत है।

डब्ल्यूएचओ की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में यूपीएफ की खपत 2006 में करीब 90 करोड़ डॉलर थी जो बढ़कर 2019 में 37.9 अरब डॉलर के पार पहुंच गई। उसमें कहा गया है, ‘यह 33 फीसदी से अधिक की वार्षिक चक्रवृद्धि दर है। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत में एचएफएसएस (अधिक वसा, चीनी एवं नमक) वाले खाद्य उत्पादों के लिए फ्रंट-ऑफ-द-पैक लेबलिंग (एफओपीएल) यानी पैकेट पर स्पष्ट तौर पर जानकारी देना अनिवार्य है या नहीं।’

समीक्षा में कहा गया है कि विज्ञापनों पर नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को चीनी, नमक एवं संतृप्त वसा की सीमा को तत्काल परिभाषित करना चाहिए और पैकेट पर स्पष्ट तौर पर जानकारी जरूरी करना चाहिए। इसके अलावा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लक्ष्य करने वाले अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के विज्ञापन पर कड़े प्रतिबंध लगाने चाहिए।

समीक्षा में कहा गया है, ‘स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक क्षेत्रों से यूपीएफ को दूर करना चाहिए और सस्ते और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जीएसटी की ऊंची दरें और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों में संशोधन के जरिये भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाई जा सकती है।’

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने पिछले साल जुलाई में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी जिसके तहत पैकेटबंद खाद्य और पेय पदार्थों के पैकेट पर चीनी, नमक और संतृप्त वसा की मात्रा के बारे में जानकारी बड़े अक्षरों में स्पष्ट तौर पर लिखना अनिवार्य किया गया था। नियामक ने ई-कॉमर्स पलेटफॉर्मों को यह भी सुझाव दिया था कि डेयरी-अनाज और माल्ट आधारित पेय पदार्थों को स्वास्थ्यवर्धक पेय अथवा एनर्जी ड्रिंक की श्रेणियों में न रखा जाए।

First Published - January 31, 2025 | 10:16 PM IST

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