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देश के 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित 14,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) में अध्यापकों के हर तीन स्वीकृत पदों में से 2 पद खाली हैं। नैशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग (एनसीवीटी) पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2,05,635 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 73,384 अध्यापक काम कर रहे हैं और करीब 65 प्रतिशत पद खाली हैं।
प्रमुख 20 राज्यों में आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 86 प्रतिशत अध्यापकों के पद रिक्त हैं। उसके बाद राजस्थान में 84 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 82 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 81 प्रतिशत पद खाली हैं। तमिलनाडु में 28.6 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 31.7 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 35.8 प्रतिशत पद खाली हैं और इन राज्यों के आईटीआई में रिक्त पदों की संख्या सबसे कम है।
कौशल विकास पर पिछले सप्ताह संसद की स्थायी समिति की की ओर से जारी रिपोर्ट में इस स्थिति को लेकर चिंता जताई गई है कि देश के आईटीआई में इतनी बड़ी संख्या में अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं। साथ ही मंत्रालय से अनुरोध किया गया है कि जल्द से जल्द इसका समाधान किया जाना चाहिए। योजना आयोग के सदस्य रहे यूनिवर्सिटी आफ बाथ के विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा गुणवत्ता, प्रमाणन या नियमन पर कम ध्यान देने की वजह से ऐसी स्थिति पैदा हुई है।
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उन्होंने कहा, ‘2006-07 तक बमुश्किल 1,500 प्राइवेट आईटीआई थे। बड़े पैमाने पर कुशल कामगारों की जरूरत बढ़ी तब आईटीआई के लिए भवन, उपकरण, शिक्षण और संकाय को लेकर एनसीवीटी के मानकों में ढील दी गई। इसकी वजह से देश भर में प्राइवेट आईटीआई की संख्या में वृद्धि हुई। वहीं दूसरी तरफ उद्योगों ने यहां से मुफ्त कर्मचारी लेने शुरू किए और ऐसे संस्थानों को कोई धन नहीं दिया। इसकी वजह से यह आपूर्ति से शुरुआत में यह संचालित व्यवस्था बन गई। अब यह न तो आपूर्ति से संचालित है, न मांग से संचालित।’
मेहरोत्रा ने कहा कि नियामकीय बदलाव के साथ बेहतरीन वित्तपोषण का मॉडल बनाए जाने की जरूरत है, जिससे आईटीआई का पुनरुद्धार हो सके।