आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2016-17 से बढ़ रहे सामाजिक सेवा खर्च (एसएसई) में लगातार इजाफा होने से न सिर्फ स्वास्थ्य देखभाल के लिए मरीजों को अपनी जेब से कम खर्च करना पड़ रहा है बल्कि इससे स्कूलों में दाखिले भी बढ़े हैं। साथ ही स्कूल छोड़ने की दर में भी कमी आई है।
कुल खर्च (टीई) के प्रतिशत के तौर पर एसएसई वित्त वर्ष 2021 के 23.3 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 (बजट अनुमान) में 26.2 फीसदी हो गया। यह 15 प्रतिशत की सालाना वृद्धि है। एसएसई के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य व्यय वित्त वर्ष 2021 में 3.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 (बजट अनुमान) में 6.1 लाख करोड़ रुपये हो गया जो 18 प्रतिशत की सालाना वृद्धि है। शिक्षा पर खर्च वित्त वर्ष 2021 में 5.8 लाख करोड़ रुपये से 12 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 9.2 लाख करोड़ रुपये हो गया।
आर्थिक समीक्षा में भरोसा जताया गया है कि भारत 2030 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ मानकों के अनुसार वर्ष 2030 तक 1,000 लोगों पर 1 डॉक्टर होगा। प्रति वर्ष 50,000 डॉक्टरों को लाइसेंस दिया जाएगा।
सरकार के स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि (स्वास्थ्य बीमा और बुनियादी ढांचा विकास से संबंधित) की वजह से परिवारों के वित्तीय दबाव में कमी आई है। आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) और केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) जैसी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की स्वास्थ्य संबंधित वित्तपोषण योजनाओं में 5.87 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इस तरह कुल स्वास्थ्य व्यय (टीएचई) में जेब से सेहत पर खर्च की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में 62.6 प्रतिशत से घटकर 39.4 प्रतिशत रह गई।.
समीक्षा में कहा गया है कि हर 1,263 भारतीयों पर 1 डॉक्टर की उपलब्धता के मौजूदा अनुपात के साथ देश वर्ष 2030 तक हर 1,000 लोगों पर 1 डॉक्टर के डब्ल्यूएचओ मानक को पाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसका अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि भारत हर साल 50,000 लाइसेंस प्राप्त डॉक्टरों को तैयार करता है। फिलहाल 13.8 लाख मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं। हालांकि, साथ ही, समीक्षा में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि डॉक्टरों की उपलब्धता शहरी क्षेत्रों में अधिक है, शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों का अनुपात 3.8:1 है। भले ही एमबीबीएस की पढ़ाई करने के इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या 2019 में लगभग 16 लाख से बढ़कर 2024 में करीब 24 लाख हो गई है। फिर भी भारत में चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने में अभी भी अलग अलग इलाकों में सीटों और पढ़ाई महंगी होने जैसी समस्याएं बरकरार हैं। मेडिकल की पढ़ाई के लिए फीस भी निजी क्षेत्र के कॉलेजों में 60 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये या इससे अधिक हैं। एमबीबीएस की 48 प्रतिशत सीटें निजी क्षेत्र के कॉलेजों में हैं।
समीक्षा में यह भी कहा गया है कि शिक्षा खर्च में वृद्धि की वजह से ऊंचे स्कूल सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को बढ़ावा मिला है, जो वर्ष 2030 तक 100 प्रतिशत जीईआर के राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के लक्ष्य के अनुरूप है। इसमें कहा गया है, ‘जीईआर प्राथमिक स्तर पर (93 प्रतिशत) लगभग सार्वभौमिक है। माध्यमिक स्तर (77.4 प्रतिशत) और उच्चतर माध्यमिक स्तर (56.2 प्रतिशत) पर अंतर दूर करने के प्रयास चल रहे हैं जिससे देश सभी के लिए समावेशी और समान शिक्षा के अपने दृष्टिकोण के करीब पहुंच जाएगा।’ इसमें हाल के वर्षों में स्कूल छोड़ने की दर में लगातार कमी आने का भी जिक्र किया गया है, जो प्राथमिक स्तर पर 1.9 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक स्तर पर 5.2 प्रतिशत तथा माध्यमिक स्तर पर 14.1 प्रतिशत है।