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कहर बन रही आकाशीय बिजली, अन्य चरम मौसमी घटनाओं की तुलना में ले रही अधिक जान

इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच बारिश और बिजली गिरने से 1,621 लोगों की मौत हो गई

Last Updated- August 28, 2025 | 11:16 PM IST
Preparations for landfall of cyclone 'Remal'

देश में आकाशीय बिजली अन्य चरम मौसमी घटनाओं की तुलना में अधिक लोगों की जान ले रही है। पिछले दिनों राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मिले आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच बारिश और बिजली गिरने से 1,621 लोगों की मौत हो गई। इस आंकड़े में 10 से 12 अप्रैल के बीच बिहार और उत्तर प्रदेश में बिजली गिरने से हुई 100 मौतें भी शामिल हैं।

वर्ल्ड मीटिऑरलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन की स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में बिजली गिरने से लगभग 1,300 लोगों की जान गई। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 1967 से 2020 तक देश में बिजली गिरने से 1,01,000 से अधिक लोगों ने जान गंवाई। यही नहीं, 2002 और 2024 के बीच देश में सभी मौसमी घटनाओं में हुई मौतों में 46 प्रतिशत बिजली गिरने के कारण हुईं। आकाशीय बिजली गिरने की अधिकांश घटनाएं और उससे मौतें पूर्वी भारत में होती हैं। इनमें सबसे अधिक उस समय होती हैं जब कृषि संबंधी गतिविधियां खासकर जुलाई-अगस्त में धान की रोपाई चरम पर होती हैं।

मौसम विभाग और क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग-सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (सीआरओपीसी) के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020 में 51.7 लाख घटनाएं बिजली गिरने की दर्ज की गई थीं। उसके बाद वित्त वर्ष 25 में 400 प्रतिशत की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा 2 करोड़ तक पहुंच गया।

आकाशीय बिजली जोन का विस्तार और जलवायु परिवर्तन से संबंध

विशेषज्ञ कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बिजली गिरने वाले क्षेत्रों में वृद्धि हो रही है। मध्य, उत्तरी, उत्तर-पूर्वी और तटीय क्षेत्रों और यहां तक कि हिमालय की तलहटी तक अब बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ गई हैं। मौसम विभाग-सीआरओपीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में अब ओडिशा से ज्यादा बिजली गिरने लगी है, जबकि राजस्थान के बीकानेर और चुरू जिले ओडिशा के मयूरभंज और गुजरात के कच्छ के बाद शीर्ष हॉटस्पॉट बन गए हैं।

आकाशीय बिजली मुख्यत: चार कारकों- तीव्र ताप, उच्च आर्द्रता, वायुमंडलीय अस्थिरता और निम्न दबाव की वजह से गिरती है। मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने हाल ही में कहा कि जलवायु परिवर्तन ने इसमें आग में घी का काम किया है। उन्होंने कहा, ‘तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ आर्द्रता में 7 प्रतिशत की वृद्धि होती है, जिससे वातावरण तूफानों के लिए और भी अधिक अनुकूल हो जाता है।’

शहरी क्षेत्रों के लिए नया खतरा

पहले केवल ग्रामीण क्षेत्रों से ही बिजली गिरने की खबरें आती थीं, लेकिन अब धुंध, लू और यातायात दबाव के कारण शहरी क्षेत्रों में पर्यावरणीय बदलावों के कारण इन घटनाओं में वृद्धि हो रही है।श्रीवास्तव ने चेताया, ‘आसमानी बिजली शहरी भारत तक पहुंच गई है।’ वर्ष 2024 और 2025 में दिल्ली में बिजली गिरने की कई बड़ी घटनाएं हुई हैं। इनमें पिछले साल 28 जून को आकाशीय बिजली से इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल 1 पर छज्जा ढहने की घटना भी शामिल है। महापात्र ने कहा कि शहरों में बढ़ते इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ढांचे के कारण भी बिजली गिरने का खतरा बढ़ रहा है।

पूर्वानुमान प्रणाली में सुधार लेकिन अभी सुधार की गुंजाइश

महापात्र के अनुसार मौसम विभाग अब 86 प्रतिशत सटीकता के साथ बिजली गिरने का पूर्वानुमान जारी करता है। रडार अपडेट को शामिल करने वाले उच्च-रिजॉल्यूशन मॉडल अब हर 10 मिनट में 350 मीटर के भीतर की मौसमी घटनाओं की भविष्यवाणी कर सकते हैं। लेकिन केवल पूर्वानुमानों से मौतों का खतरा कम नहीं हो जाता।

First Published - August 28, 2025 | 10:58 PM IST

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