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बहाली मामले में सुनवाई वीआरएस सुविधाएं लौटाने के बाद ही होगी

Last Updated- December 07, 2022 | 1:44 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश की कंपनी विक्रम सीमेंट के कर्मचारियों को यह निर्देश दिया कि अगर वे अपनी नौकरी की समाप्ति को चुनौती देना चाहते हैं, तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के तहत हासिल की गई रकम को वापस करें। 


वर्ष 2001 में 1500 कर्मचारियों में से 460 कर्मचारियों ने अंतिम निपटान के तौर पर वीआरएस के तहत मिलने वाली सारी सुविधाएं प्राप्त कर ली थीं। इसके कुछ ही दिन बाद कुछ कर्मचारियों ने श्रम न्यायालय की तरफ रूख करते हुए यह शिकायत दर्ज की थी कि उन लोगों ने दबाव और धमकी के कारण वीआरएस ले लिया था। वे यह चाहते थे कि उन्हें नौकरी पर बहाल किया जाए।

जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा, तो माननीय न्यायालय ने उन कर्मचारियों से कहा कि पहले तो वे वीआरएस के तहत मिलने वाली सुविधाओं को वापस करे , तो ही आगे की कार्यवाही शुरु की जाएगी। न्यायालय ने कंपनी से भी कहा कि अगर श्रम न्यायालय में कर्मचारी ये मुकदमा जीत जाते हैं, तो ब्याज सहित उनके वेतन की राशि देनी पड़ेगी। दोनों पार्टी ने इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज कराई। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और कर्मचारियों को अपने दावे प्रस्तुत करने के लिए कु छ समय की मोहलत भी प्रदान की।

खस्ताहाल मिल को बेचने संबंधी याचिका खारिज

सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई की लक्ष्मी विष्णु टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें  निष्क्रिय मिल को बेचे जाने को चुनौती दी गई थी। वर्ष 1994 में मिल को खस्ता हाल में घोषित किया गया था और 1995 में उसे तालाबंदी के बाद बंद कर दिया गया था।

खस्ता हाल उद्योग कानून के तहत ऑपरेटिंग एजेंसी आईडीबीआई ने बड़े ऋणदाताओं  के साथ एक बैठक की और उसके बाद ऋण वसूली न्यायाधिकरण ने एक रिसीवर को नियुक्त किया। उसके बाद ऋणदाताओं और यूनियन के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ और उसके तहत कंपनी की परिसंपत्ति ट्रांस आइस ग्लोबल कंपनी को बेच दी गई। कुछ कर्मचारियों ने इसे बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी लेकिन उनकी याचिका को निरस्त कर दिया गया। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी अपील को खारिज कर दिया।

चेक बाउंस की सूचना

सर्वोच्च न्यायालय नेचेक बाउंस के एक मामले में व्यवस्था दी है कि अगर पंजीकृत डाक द्वारा पावती पत्र को सही पते पर भेज दिया जा चुका है, तो यह माना जाएगा कि  इस बाबत सेवा प्रभावी ढंग से निष्पादित की गई है। न्यायालय ने इंडो ऑटोमोबाइल्स बनाम जय दुर्गा इंटरप्राइजेज के मामले में यह व्यवस्था दी। इस मामले में कहा गया कि चेक के डिसऑनर हो जाने की सूचना डाक के जरिये भेज दी गई थी। मजिस्ट्रेट के समक्ष फौजदारी कार्यवाही शुरु होने पर चेक जारी करने वाले ने कहा कि उसे इस संबंध में कोई नोटिस नहीं मिला।

वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस मामले को लेकर गया कि उसे सही तरीके से सूचना प्रेषित नही की गई और इसके लिए वह डाक विभाग को दोषी ठहरा रहा था। उच्च न्यायालय ने कार्यवाही निरस्त कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपील किए जाने पर कहा कि चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत स्पष्ट रुप से व्याख्या की जानी  चाहिए। नहीं तो धोखाधड़ी करने वाला यह दावा कर सकता है कि उसे नोटिस मिला ही नहीं और इससे वह फायदा उठा सकता है।

कोलकाता न्यायालय का आदेश निरस्त

सर्वोच्च न्यायालय ने एक जल विद्युत परियोजना को लेकर बिड़ला ग्रुप और बागला ग्रुप के बीच विवाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय के  आदेश को निरस्त कर दिया। नेवड़ा हाइड्रो लि. के शेयरों के मूल्यांकन के कारण विवाद खड़ा हुआ था।

प्रीमियम एक्सचेंज एंड फाइनेंस लि. बनाम एस ए बागला एंड कंपनी के इस मामले में पक्षकारों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि अर्नस्ट एंड यंग का निर्णय शेयरों के मूल्यांकन के संबंध में जो होगा, वह सबके लिए मान्य होगा। हालांकि इसके मूल्यांकन को लेकर एक बार फिर से विवाद छिड़ गया। कार्यकारी न्यायालय ने कहा कि इस मूल्यांकन में पारदर्शिता की कमी थी और मूल्यांकन की प्रक्रिया फिर से की जानी चाहिए।

First Published - July 28, 2008 | 12:14 AM IST

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