केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने 24 जुलाई 2008 को एक सर्कुलर (संख्या 122008) दिया है, जिसमें निर्यातोन्मुखी इकाइयों (ईओयू) के लिए काफी मुश्किलें खड़ी की गई है।
अब ईओयू को अपनी लागत या कच्चा माल के बारे में सारी जानकारियों का भी ब्योरा देना होगा। यह ब्योरा स्टैंडर्ड इनपुट आउटपुट नॉम्स (एसआईओएन) के आधार पर किया जाएगा। ऐसी सामग्री जो एसआईओएन के अंतर्गत नहीं आता है, उसे 2 प्रतिशत अवशिष्ट या अवांछित या लागत सामग्री के अवशेष के तौर पर माना जाएगा।
अगर अवशिष्ट पदार्थ की मात्रा 2 प्रतिशत से ज्यादा होती है, तो उसके मानदंड के लिए नॉम्स कमिटी या बोर्ड फॉर अप्रूवल से अनुमति लेना अनिवार्य हो जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि अब ऑडिट करने वाली टीम यह भी जांच करेगी कि खपत क्या हुई और स्टॉक कितना है, साथ ही उन चीजों को देखा जाएगा जब ईओयू शुल्क बचाने के लिए मांग में बढ़ोतरी कर लेते हैं। इसके अलावा घरेलू टैरिफ क्षेत्र में उत्पाद शुल्क की मासिक अदायगी की अनुमति दी जाएगी, उसके बाद ईआर2 रिटर्न को मॉडिफाई किया जाएगा।
इसके अलावा सीबीईसी कह रही है कि इसके अलावा घरेलू टैरिफ क्षेत्र में शुल्क रहित निर्यात को भी पूरे ब्योरे के साथ भरना होगा। इस तरह के रिटर्न भरने के लिए यह जरूरी होगा कि इसे जून 2008 या उससे आगे तक इसका क्लीयरेंस कर लें और इस संबंध में ध्यान रखा जाए कि फील्ड फॉर्मेशन की भी छंटाई सही तरीके से किया जाए। ईओयू अपने घरेलू टैरिफ क्षेत्र में पिछले साल के एफओबी का 50 प्रतिशत रियायती शुल्क दरों पर बेच सकता है।
पिछले साल विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) के तहत केवल इतना कहा गया था कि डीटीए बिक्री के तहत निर्यातोन्मुखी इकाइयां उन सारे उत्पादों को बेच सकता है, जो निर्यात के लायक है या उसकी सीमा में आता है। इस साल विदेश व्यापार नीति के तहत घरेलू टैरिफ क्षेत्र में बिक्री को थोड़ा सीमित करते हुए कहा कि वे अपनी पूरी इंटाइटलमेंट का मात्र 75 प्रतिशत ही इसके तहत बेच सकती है। सीबीईसी ने इस स्थिति को दुहराते हुए कहा कि पहले के आदेश में भी किसी विशिष्ट उत्पाद के मात्र 50 प्रतिशत ही घेरलू टैरिफ क्षेत्रों में बेचने की अनुमति थी।
वैसे पहले भी ऐसी स्थिति नहीं थी और नए सर्कुलर ने मात्र पहले वाले मामले को फिर से खोल दिया है। इस सर्कुलर में कहा गया है कि कुल विदेशी हस्तांतरण (एनएफई) के निर्धारण के लिए भी शर्तें निर्धारित की गई है ताकि केवल 50 प्रतिशत मूल्य की आयात किए गए सामानों से कुल विदेशी हस्तांतरण प्राप्त किया जा सके। इस कुल विदेशी हस्तांतरण का निर्धारण कैपिटल गुड्स और उसके भुगतान के आधार पर परिकलित किया जाएगा। इसमें किसी सामग्री के लिए तकनीक भुगतान को कैसे किया जाए , तो इसके लिए कम राशि की भी अनुमति दी गई।
इससे एक बात होगा कि जब निर्यातोन्मुखी इकाइयों से बाहर निकलने की बात होगी, तो नो डयूज सर्टिफिकेट लेने की बाध्यता बढ़ जाएगी। निर्यातोन्मुखी इकाइयों से बाहर निकलने से पहले सामानों की डि-बॉन्डिंग की जरूरत पड़ेगी। इन सर्कुलर से निर्यातोन्मुखी इकाइयों की प्री-मेच्योर डिबॉन्डिंग भी प्रभावित होगा और निर्यातोन्मुखी इकाइयों से बाहर निकलकर निर्यात प्रोत्साहन कैपिटल गुड्स स्कीम में प्रवेश करना भी प्रभावित होगा। इस सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि निर्यातोन्मुखी इकाइयों से जुड़ी अन्य मामलों में भी संशोधन किए जाएंगे। इन मामलों में इनपुट पर एंटी-डंपिंग शुल्क आदि लगने जैसी प्रक्रियाओं पर भी संशोधन किए गए हैं।
एंटी डंपिंग से जुड़ा मामला उन सामानों पर आरोपित होगा जिसकी बिक्री घरेलू टैरिफ क्षेत्र में की जाती है। वैसे इस घरेलू टैरिफ क्षेत्रों में ग्रेनाइट और टेक्सटाइल क्षेत्र से जुड़ी निर्यातोन्मुखी इकाइयों पर शर्तों में थोड़ी ढ़ील दी गई है। घरेलू टैरिफ क्षेत्र में डीम्ड निर्यात लाभ के लिए सामुद्रिक खरीद में काफी बढ़ोतरी हुई है और इससे कुल विदेशी हस्तांतरण में भी परिवर्तन आया है। इन सारी बातों में जो सबसे ज्यादा काल्पनिक बात है वह है कि वित्त मंत्रालय ने जो इन शर्तों और राहतों को (जो विदेश व्यापार नीति में उल्लिखित हैं) शामिल करने के लिए जो कदम उठाए हैं।
इस संबंध में अच्छी बात यह होगी कि विदेश व्यापार हस्तांतरण के लिए जिस प्रकार की भी राहत की बात की जा रही है, वह विदेश व्यापार नीति के तहत ही डील किए जाए। इस तरह से व्यापार और क्षेत्र निर्धारण दोनों कामों के लिए केवल एक डाक्यूमेंट की ही जरूरत पड़ेगी। इससे जमीनी स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार और शिकायतों को कुछ हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी।