facebookmetapixel
Stock Market Today: गिफ्ट निफ्टी से आज बाजार को ग्रीन सिग्नल! सेंसेक्स-निफ्टी में तेजी के आसारनेपाल में Gen-Z आंदोलन हुआ खत्म, सरकार ने सोशल मीडिया पर से हटाया बैनLIC की इस एक पॉलिसी में पूरे परिवार की हेल्थ और फाइनेंशियल सुरक्षा, जानिए कैसेStocks To Watch Today: Infosys, Vedanta, IRB Infra समेत इन स्टॉक्स पर आज करें फोकससुप्रीम कोर्ट ने कहा: बिहार में मतदाता सूची SIR में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में करें शामिलउत्तर प्रदेश में पहली बार ट्रांसमिशन चार्ज प्रति मेगावॉट/माह तय, ओपन एक्सेस उपभोक्ता को 26 पैसे/यूनिट देंगेबिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंटरव्यू में बोले CM विष्णु देव साय: नई औद्योगिक नीति बदल रही छत्तीसगढ़ की तस्वीर22 सितंबर से नई GST दर लागू होने के बाद कम प्रीमियम में जीवन और स्वास्थ्य बीमा खरीदना होगा आसानNepal Protests: सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ नेपाल में भारी बवाल, 14 की मौत; गृह मंत्री ने छोड़ा पदBond Yield: बैंकों ने RBI से सरकारी बॉन्ड नीलामी मार्च तक बढ़ाने की मांग की

कीमत तय करने का वक्त

Last Updated- December 07, 2022 | 4:06 PM IST

ग्लोबल डिपोजिटरी रिसीट और विदेशी मुद्रा हस्तांतरण बॉन्ड्स के मामले में शेयर जारी करने हेतु मूल्य निर्धारण को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अपनी नीतियों में आमूल चूल परिवर्तन करने की योजना बनाई है।


अगस्त 2005 में भारत सरकार ने इस बाबत कुछ सुरक्षा मानक तय किए थे। विदेशी मुद्रा हस्तांतरण बॉन्ड्स और साधारण शेयर (हस्तांतरण देनदारी प्रक्रिया के तहत) योजना 1993 में संशोधन के बाद ग्लोबल डिपोजिटरी रिसीट (जीडीआर) और विदेशी मुद्रा हस्तांतरण बॉन्ड्स (एफसीसीबी) के लिए कड़े मूल्य निर्देर्श तय किए गए था।

इस मानदंड को लागू करने के बाद मात्र इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग और इसके बाद पब्लिक ऑफरिंग और राइट्स इश्यू को मूल्य निर्धारण के बाद कमजोर करने की कोशिश की गई। सरकार ने सेबी (डिस्क्लोजर ऐंड इन्वेस्टर प्रोटेक्शन) के दिशा-निर्देश 2000 के आधार पर न्यूनतम मूल्य फॉर्मूला को स्वीकार किया। इसलिए उस वक्त कोई भी इश्यू छह महीने पहले की निर्धारित तारीख वाले सप्ताह में औसत अधिकतम और औसत न्यूनतम मूल्य से कम नहीं होता था।

और तो और दो सप्ताह पहले की निर्धारित तारीख में साप्ताहिक अधिकतम और साप्ताहिक न्यूनतम बंद मूल्य हमेशा अधिक हुआ करता था। वैसे निर्धारित तारीख की परिभाषा हाल ही में दी गई है। इस परिभाषा के मुताबिक कोई शेयरधारी अपेक्षित रिजॉल्यूशन को अगर तीस दिन पहले समाहित करता है, तो वह निर्धारित तारीख के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप अगर कोई शेयरधारी एक बार रिजॉल्यूशन जारी कर देता है, तो उसका न्यूनतम मूल्य पत्थर की लकीर बन जाता था यानी उसमें कोई परिवर्तन संभव नहीं हो पाता था।

यह तब तक के लिए नियत हो जाता था, जब तक कोई नया रिजॉल्यूशन पास नहीं हो जाए। भारतीय कंपनी कानून इस बात की जरूरत महसूस करता है कि कम से कम 21 दिन के भीतर शेयरधारकों की एक बैठक हो। एक बार जब यह बैठक शुरू होगी, तब प्रस्तावित हस्तांतरण पब्लिक डोमेन में आ जाएगा और निश्चित तौर पर यह मूल्य को भी प्रभावित करेगा।

यद्यपि निर्धारित तारीख शेयरधारकों की बैठक के तीस दिन पहले निर्धारित किया जाएगा, तो इस बाबत कंपनियों पर यह बाध्यता हो जाएगी कि वे एक महीने में कम से कम एक बैठक तो अवश्य आयोजित कर लें। अगर इस तरह की बैठक करने में कंपनियां असफल हो जाती है, तो इसका प्रभाव पूरी तरह से मूल्य निर्धारण प्रणाली पर पड़ेगा और फिर न्यूनतम मूल्य गणना के जरिये इसका निर्धारण होना शुरू हो जाएगा।

वित्त मंत्रालय ने यह प्रस्ताव दिया है कि छह महीने की अवधि के पहले साप्ताहिक अधिकतम या साप्ताहिक न्यूनतम औसत बंद मूल्य देने के बजाय निर्धारित तारीख से दो महीने पहले के आधार पर मूल्यों की गणना की जाए। वैसे निर्धारित तारीख को ध्यान में रखते हुए इस बात पर जोर दिया गया था कि बोर्ड के निदेशकों के द्वारा जारी रिजॉल्यूशन के तीस दिन पहले की बजाय कोशिश यह की जानी चाहिए कि इसका निर्धारण शेयरधारकों की बैठक के तीस दिन पहले निर्धारित किया जाए।

इसी आधार पर इश्यू जारी करने वाली कंपनी को प्रस्तावित इश्यू के संदर्भ में एक प्राधिकार रिजॉल्यूशन जारी करना चाहिए। वैसे मंत्रालय द्वारा दिया गया यह प्रस्ताव एक स्वागतयोग्य मानदंड है। इससे कंपनियों को अब जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं होगी कि उनके बोर्ड निर्णय के आम होने और शेयरधारकों के रिजॉल्यूशन को तीन दिन के भीतर मंजूर करना है।

इसके अलावा बोर्ड के निदेशक इस बात के लिए स्वतंत्र होंगे कि शेयरधारकों की बैठक कब कराई जाए। वे इस बात के लिए चिंतामुक्त रहेंगे कि न्यूनतम फ्लोर प्राइस पर जो प्रभाव पड़ेगा वह उनके द्वारा लिए गए निर्णय से ही जनित होगा। इस बाबत वित्त मंत्रालय ने सुझावों के लिए नोट्स भी आमंत्रित कराए थे, जिसमें यह कहा गया कि निर्धारित तारीख के संबंध में डीआईपी के दिशा-निर्देश में सारी बातों का जिक्र पहले ही किया जा चुका है।

वास्तव में सेबी के लिए बहुत जरूरी हो गया है कि वे डीआईपी दिशा-निर्देश की स्थिति में परिवर्तन लाएं और वित्त मंत्रालय द्वारा दिए गए सुझावों को समाहित कर उन दिशा निर्देशों को संशोधित करें। जब वित्त मंत्रालय द्वारा मूल्य फॉर्मूले की समीक्षा की जा रही थी, तो मंत्रालय ने यह पाया कि  प्रतिभूति कानून में हरेक स्तर पर ड्राफ्ट्समैन द्वारा काफी अंतर दिख रहा है। इस मूल्य निर्धारण फॉर्मूले का असली इस्तेमाल भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी प्रमोटर्स द्वारा जारी किए गए प्राथमिक शेयरों के हस्तांतरण नियंत्रण के लिए किया था।

First Published - August 11, 2008 | 1:45 AM IST

संबंधित पोस्ट