हाल में रैनबैक्सी को लेकर जो हंगामा हो रहा है, उस संबंध में यह बात उठने लगी है कि अपनी क्रियाशीलता को लेकर कंपनियों को सेबी के तहत वस्तुगत शेयरों और अधिकारों के अधिग्रहण को लेकर विपरीत परिस्थतियों में कही विवादों का जन्म तो नहीं हो रहा है।
यह बात सूचीबध्द कंपनियों के लिए ज्यादा की जा रही है। इसमें यह भी कहा जा रहा है कि सेबी की नियमावली 1997 का कहीं इसमें उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। रैनबैक्सी के दस्तावेजों की जांच के संबंध में मीडिया में जो दो तरह की बातें छाई रही, उसमें पहली बात यह है कि क्या अभी जिस तरह का विकास हो रहा है उससे रैनबैक्सी का दाइची से गठजोड़ हो पाएगा ।
दूसरी बात यह कही जा रही है कि पब्लिक ऑफर जो किए गए हैं, वे अब भी बरकरार रहेंगे। यह बात बिल्कुल सही है कि समझौते की घोषणा पहले ही कर दी गई है। इसके अलावा यूएफडीए से जो रैनबैक्सी का विवाद हुआ है, उसके बारे में भी लोगों को काफी जानकारी मिल चुकी है। अब तो उसका स्टॉक मूल्य भी गिर गया है और यह भी तब जाकर सुधरा, जब प्रमोटरों ने इस बात का दिलासा दिया कि समझौता एक तरह की बाध्यता है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि निवेश संबंधी सूचनाएं भारत में कितनी जानकारी दे पाती हैं।
हालांकि इस तरह के अनुभव से एक बड़े मुद्दे को भी हवा मिली है और यह बात उठने लगी है कि भारत में एम ऐंड ए की किस तरह की गतिविधियां चल रही है। इनसाइडर ट्रेडिंग रेग्युलेशन में इस बात का भी प्रस्ताव है कि अगर अधिग्रहण की किसी शर्तों का उल्लंघन होता है, तो उसके लिए एक जायज पक्ष को टेकओवर रेग्युलेशन के मातहत रखना होगा। एज पर यानी के मुताबिक शब्द की व्याख्या करने की जरूरत है। यह चूंकि इतना अस्पष्ट है कि इसकी व्याख्या में काफी सजगता जरूरी है।
इसमें यह ध्यान रखने की बात है कि कानून के रखवाले और एम ऐंड ए निवेशक बैंकर्स इन शब्दों का इस्तेमाल और इसकी व्याख्या कैसे करते हैं। प्रैक्टिशनरों के बीच एक आम धारणा यह है कि ओपन ऑफर के जरिये जो लेनदेन किया जाएगा, वह टेकओवर रेग्युलेशन से मुक्त रहेगा। यह संचार के अवरोध के तहत होगा या सूचनाओं की काउंसेलिंग के जरिये इसे निष्पादित किया जाएगा। इसमें इस बात का भी ध्यान रखने की जरूरत है कि इतने बड़े लेनदेन के समय किस तरह की सजगता बरती जा रही है।
अगर अधिग्रहण करने वाली कंपनी स्वयं एक सूचीबध्द कंपनी है तो इस तरह के किसी भी अधिग्रहण में काफी सजगता बरतने की जरूरत है। इस तरह के किसी भी अधिग्रहण में इन कंपनियों के बर्ताव को भी परखने की जरूरत है। अगर निदेशक बोर्ड को शेयरधारकों को लेकर किसी तरह की कोई आपत्ति हो तो उसे भी ध्यान में रखने की जरूरत है। इस प्रकार के अधिग्रहण में इस बात को स्पष्ट करने की जरूरत है कि सारी बातें पूरी तरह से सबकी सूचनाओं में होनी चाहिए और किसी को भी अंधकार में नही रखा जाए।
अभी हाल में जिस मुद्दे ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है सिक्योरिटीज अपीली ट्रिब्यूनल (सैट) के द्वारा हाल में सुनाया गया फैसला। इसमें कहा गया है कि किसी खुली ऑफर के बाद अधिग्रहणकर्ता उससे पीछे नहीं हट सकते हैं। उस मामले में अधिग्रहणकर्ता लिस्टेड कंपनी के तहत गिरवी रहता है और कंपनी के शेयर को खरीदकर उसे गिरवी रखा जाता है। इसके परिणामस्वरुप ऐसी जरूरत पड़ सकती है कि लिस्टेड कंपनी के 15 प्रतिशत से अधिक के शेयर अधिग्रहित किए जाए और जब ऐसा किया जाएगा, तो ही वह ओपन ऑफर कहलाएगा।
इस तरह के किसी भी ओपन ऑफर के लिए कंपनी को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जब भी ओपन ऑफर घोषित किए जाएं, तो सारी सूचनाओं को स्पष्ट तरीके से सामने रखा जाए। अगर किसी सूचीबध्द कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है, तो उसमें इस बात का भी जिक्र होना चाहिए। गिरवी रखने और नियंत्रण अपने हाथ में रखने के मामले में सूचीबध्द कंपनियों के निदेशक मंडल ने इस बात को खोजा कि जब इन सूचीबध्द कंपनियों का अधिग्रहण होता है, तो पहले वाले प्रबंधन और प्रमोटरों को मोटी रकम की पेशकश की जाती है।
इसी तरह के एक मामले में एक ऑडिट किया गया था और जो भी नतीजे सामने आए थे, उसे सेबी के समक्ष रखा गया था। जब सेबी के सामने ये मामले रखे गए, तो यह मांग की गई की ओपन ऑफर को रद्द किया जाए। इनफोर्समेंट की स्थिति में गिरवी रखने वाला काफी नम्र होता है और इसे लागू करने से पहले वह इस स्थिति में नहीं होता कि किसी प्रकार की असजगता या अकर्मण्यता का परिचय दें। सेबी ने रद्द की मांग वाले इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया।
सेबी ने इस कदम के स्पष्टीकरण में कहा कि हो सकता है कि अधिग्रहण करने वाली कंपनी ने थोड़ी अकर्मण्यता दिखाई हो, लेकिन इस बात की जानकारी लोगों तक पहुंच चुकी थी कि सूचीबध्द कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है। ये अलग मुद्दा है कि पहले वाली कंपनी के प्रबंधन की न तो जांच की गई और न ही उसे दोषी ठहराया गया। हालांकि नए निदेशक मंडल ने जब इस प्रकरण की जांच की तो उन्हें कई खामियां नजर आई, लेकिन प्राधिकार ने इस बाबत कोई कदम उठाने की जेहमत नहीं की। अधिग्रहण करने वाली कंपनी ने यह तर्क दिया कि जरूरत इस बात की है कि किसी प्रकार की धोखाधड़ी पर पैनी नजर रखी जाए।