उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड की अपील पर स्पष्ट किया है कि श्रम अदालतें बोनस के मामले का निबटारा नहीं कर सकती हैं।
इस मामले में श्रम अदालत और उच्च न्यायालय ने दिहाड़ी मजदूरों के हक में फैसला दिया था। उनका कहना था कि दिहाड़ी मजदूर भी बोनस के हकदार हैं। जबकि उच्चतम न्यायालय का कहना है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत बोनस का मामला श्रम अदालतों के अधीन नहीं आता है।
विलंब भुगतान: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने केरल रोड लाइंस बनाम आयकर आयुक्त मामले में केरल उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया। इसमें यह मामला उठा था कि जमीन के बदले भुगतान में जो देरी होती है उस पर लगने वाले ब्याज को पूंजीगत खर्च में गिना जाए या फिर राजस्व खर्च में। ट्रांसपोर्ट कंपनी ने पेयर्स लेस्ली लिमिटेड से जमीन खरीदकर उस पर खड़े ढांचे को गिरवा कर स्क्रैप माल को बेच दिया था।
इस सौदे में भुगतान में देरी की स्थिति में ब्याज देने का प्रावधान किया गया था। ट्रांसपोर्ट कंपनी ने इस रकम को आयकर की धारा 37 के तहत राजस्व खर्च में गिनाया जबकि आयकर विभाग इसको पूंजीगत खर्च के अंतर्गत बता रहा था। ट्राइब्यूनल ने कंपनी के पक्ष में फैसला दिया जबकि उच्च न्यायालय ने इसको पलट दिया । अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा कि कंपनी रियल एस्टेट के व्यापार में नहीं है बल्कि ट्रांसपोर्ट का कारोबार करती है।
इस तरह इसने धारा 37 का उल्लंघन नहीं किया है। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को निरस्त कर दिया और फैसला सुनाया कि ब्याज का भुगतान अनुबंध की शर्तों के तहत किया गया और यह व्यापार को बढाने से संबंधित था।
डयूटी: उच्चतम न्यायालय ने ट्राइब्यूनल के आदेश के खिलाफ केंद्रीय उत्पाद आयुक्त की अपील को खारिज कर दिया। ट्राइब्यूनल ने स्कैन सिंथेटिक लिमिटेड पर डयूटी की मांग निरस्त कर दी थी। इस फर्म पर यह आरोप लगाया गया कि इसने अपने इस्तेमाल में लाए गए गये यार्न का कम मूल्यांकन किया।
न्यायालय का कहना था कि बेचे गए ग्रे यार्न का सही मूल्यांकन फैक्ट्री गेट से थोक व्यापारियों को बेची गई कीमत के आधार पर होना चाहिए। फर्म ने स्वतंत्र ग्राहकों को बेचे गए सामान का इनवॉयस दिखाया। उससे पता चला कि मूल्यांकन कम नहीं किया गया।
सिल्डेनाफिल: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सिल्डेनाफिल साइट्रेट (वियाग्रा जैसी दवा)जैसी दवाओं का उत्पादन और बेचने का काम केवल वही कंपनियां कर सकती हैं जिनके पास उनको बनाने का लाइसेंस है। न्यायालय ने इस दावे का खारिज कर दिया कि यह एक आयुर्वेदिक दवा है और इसको आयुर्वेदिक कैप्सूल ओजोमन में आयुर्वेदिक तत्व के रूप में प्रयोग करने की इजाजत दी जाए और इसको कैप्सूल के तत्वों के रूप में उल्लेख नहीं करना भी कानून का उल्लंघन माना जाएगा।
दवा निरीक्षक ने फिजीकेम लैबोरेट्रीज प्राइवेट लिमिटेड पर इस दवा बेचने का मामला भी शुरू कर दिया है। इसको लेकर कंपनी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चली गई। न्यायालय ने आदेश दिया कि दवा निरीक्षक को आयुर्वेदिक दवाओं के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। दवा निरीक्षक ने इस मामले को उच्चतम न्यायालय में उठाया जिसने उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया।
सोयाबीन तेल: उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह कहा कि सोयाबीन ऑयल के वे पैकेट जिनके पैकेट पर बंदगोभी और प्याज छपे हुए थे और जिनका सोयाबीन ऑयल से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है, वे खाद्य संरक्षण और मिलावट अधिनियम के तहत मिसब्रांडिंग का मामला नहीं है। यह मामला तब सामने आया जब परख फू ड्स लिमिटेड (अब कारगिल फूड्स इंडिया लिमिटेड)ने सोयाबीन ऑयल के पैक पर सब्जियों का चित्र छापा।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुकद्दमा खारिज कर दिया लेकिन माना कि पैक पर जो तस्वीर छपी है वह उत्पाद से मेल नहीं खाती। उच्चतम न्यायालय ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि सोयाबीन ऑयल पर छपे सब्जियों के चित्र ऑयल को न तो सुपर रिफाइंड बता रहे हैं और न ही एंटी कॉलेस्ट्रॉल बता रहे हैं। मतलब इसकी गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं पेश कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि चित्र केवल इस ओर इशारा कर रहे हैं कि आप इस तेल का प्रयोग सब्जियां बनाने में भी कर सकते हैं।
मुआवजा: उच्चतम न्यायालय ने गौहाटी उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत डयूटी के दौरान गाड़ी के साथ गायब हुए ड्राइवर को मुआवजा देने का निर्णय दिया था। निचली अदालतों ने आदेश देते समय उसे धारा 108 के तहत मृत माना।
ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी, जिसे मुआवजा देने को कहा गया था, ने इसको उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी । सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ड्राइवर को मृत मानना गलत है और ड्राइवर के खिलाफ वाहन लेकर भागने का दर्ज मामला अभी तक लंबित है।