अकाउंटिंग स्टैंडर्ड (एएस) 11 की समाप्ति से कंपनियों को कुछ राहत मिली है। एएस 11 एक ऐसा मानक है जिसमें विदेशी मुद्रा में देनदारियों और मौद्रिक आस्तियों को बैलेंस शीट में भारतीय मुद्रा में दिखाया जाना अनिवार्य है।
उदाहरण के लिए, 100,000 डॉलर की देनदारी 31 मार्च, 2009 को उस तारीख की विनिमय दर (1 डॉलर = 50.64022 रुपये) का इस्तेमाल करते हुए बैलेंस शीट में दर्ज की जानी चाहिए। इस प्रकार देनदारी 50.64022 रुपये पर दर्ज की जाएगी।
31 मार्च 2008 को विनिमय दर 1 डॉलर= 40.02000 रुपये थी। इसलिए हम मानते हैं कि 31 मार्च 2008 को देनदारी उसी स्तर (100,000 डॉलर) पर थी, जो 40,02,000 रुपये पर दर्ज किया गया था। एएस 11 के लिए जरूरी है कि विनिमय अंतर (50,64,022 रुपये-40,02,000 रुपये) या 10,62,022 रुपये को मुनाफे में नुकसान के तौर पर दिखाया जाए।
एएस 11 के अनुप्रयोग के लिए उन कंपनियों को भारतीय मुद्रा में विदेशी मुद्रा की उधारीदेनदारी के परिवर्तन से हुए नुकसान का पता लगाए जाने की जरूरत है जिन्होंने कम विनिमय दर के दौरान उधार लिया था।
आनुमानिक नुकसान
ऊपर दिए गए हमारे उदाहरण में 10,62,022 रुपये का नुकसान काल्पनिक अनुमान है। अगर कंपनी 31 मार्च 2009 को ऋणदाता को रकम का भुगतान करती तो नुकसान वास्तविक होता।
विनिमय दर में उतार-चढ़ाव वाली परिस्थिति विनिमय दर को लेकर भविष्य की गतिविधि का आकलन करना बेहद कठिन है। इसलिए कंपनी द्वारा बकाया के भुगतान से होने वाले लाभ या नुकसान की सही मात्रा का अनुमान लगाया जाना मुश्किल है।
यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि भविष्य में यह काल्पनिक नुकसान बदल जाएगा। ऐसी स्थिति में एएस 11 श्रेष्ठ अकाउंटिंग सॉल्युशन मुहैया कराता है।
शुरुआती स्थिति
वाणिज्य मंत्रालय ने अन्य लेखा मानकों के साथ 7 दिसंबर, 2006 की एक अधिसूचना के जरिये कंपनियों के लिए एएस 11 बनाया था। इस तारीख से पहले कंपनियों को विदेशी मुद्रा देनदारियों से पैदा हुए विनिमय अंतर के लिए तय एसेट की मात्रा को समायोजित करने की अनुमति हासिल थी।
इस अवधि के लिए लाभ या नुकसान के रूप में अन्य विनिमय अंतर की पहचान के लिए कंपनियों का इस्तेमाल किया गया। शायद यह समझा जाना भी गलत नहीं होगा कि दिसंबर 2006 में अधिसूचना के जारी होने के समय नैशनल एडवाइजरी कमेटी ऑन अकाउंटिंग स्टैंडड्र्स (एनएसीएएस) और वाणिज्य मंत्रालय ने सोचा था कि एएस 11 में अकाउंटिंग सिद्धांत तब मौजूद अकाउंटिंग कार्य प्रणाली की तुलना में श्रेष्ठ हैं।
एएस 11 का निलंबन
मीडिया में आई खबरों में कहा गया है कि वाणिज्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नियम के मुताबिक कंपनियों को या तो एएस 11 का इस्तेमाल करने या फिर अधिसूचना में नियत वैकल्पिक व्यवस्था को अपनाने का विकल्प दिया गया है।
वैकल्पिक व्यवस्था में जरूरी है कि कंपनी परिसपंत्ति की खरीद के संबंध में विदेशी मुद्रा देनदारियों से पैदा हुए विनिमय अंतर और अन्य विनिमय अंतर के लिए तय संपत्ति की मात्रा समायोजित करे।
कंपनी विनिमय अंतर को रखने के लिए एक स्पेशल रिजर्व या ट्रांजिटरी अकाउंट बनाएगी और ऋण की बकाया परिपक्वता अवधि या 31 मार्च 2011 को समाप्त हो रही अवधि के लिए रकम को चुकाएगी। अगर कंपनी वैकल्पिक व्यवस्था को अपनाती है तो उसे इसे 7 दिसंबर 2006 से लागू करना होगा।
निष्कर्ष
अगर कंपनियां बढ़े हुए मुनाफे का इस्तेमाल लाभांश चुकाने के लिए नहीं करती हैं तो एएस 11 का निलंबन निवेशकों के लिए नुकसानदायक नहीं होगा। लेकिन आईएफआरएस अपनाए जाने को लेकर भारत की प्रतिबद्धता के संदर्भ में एएस 11 का निलंबन एक प्रतिगामी कदम है। यह विदेशी निवेशकों के लिए गलत संदेश देगा।
यह इस बात का संकेत होगा कि अगर कंपनियों को कारोबारी माहौल में इसे लागू करने में कोई मुश्किल पैदा होती है तो भारत अकाउंटिंग मानकों में बदलाव कर सकता है। हालांकि कोई भी यह कह सकता है कि गैर-अकाउंटिंग समस्याओं के लिए अकाउंटिंग समाधान ढूंढ़ने के लिए यह एक वैश्विक चलन है।
