उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज करते हुए कहा है कि कर दाखिल करने में लिपिकीय त्रुटियों को समय सीमा के बाद भी दुरुस्त किया जा सकता है, बशर्ते इसमें राजस्व हानि न हो। न्यायालय के इस महत्त्वपूर्ण निर्णय से कंपनियों के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का अनुपालन आसान बन सकता है।
शीर्ष न्यायालय ने पिछले सप्ताह एबरडेयर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। न्यायालय ने कहा कि मानवीय त्रुटियां सामान्य हैं और इसके आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, ‘लिपिकीय या गणितीय त्रुटियां ठीक करने का अधिकार व्यापार करने के अधिकार में समाहित है और बगैर तार्किक औचित्य के इससे वंचित नहीं किया जा सकता।’
न्यायालय ने आगे जोर दिया कि मानवीय त्रुटि के कारण आईटीसी बकाये से इनकार करने से अनुचित दोहरे कराधान का बोझ पड़ेगा, जिसमें कारोबारी को दो बार कर का भुगतान करना होगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि सॉफ्टवेयर संबंधी सीमाएं अपने आप में आईटीसी से मना करने के लिए बेहतर औचित्य नहीं हो सकतीं, क्योंकि सॉफ्टवेयर का उद्देश्य अनुपालन को आसान बनाना है और उनमें सुधार किया जा सकता है।’
एबरडेयर टेक्नोलॉजीज ने समय पर अपना जीएसटी रिटर्न दाखिल किया था, लेकिन बाद में दिसंबर 2023 में लिपिकीय त्रुटियां पाई गईं। केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के मुताबिक त्रुटियों को अगले वित्त वर्ष में 31 दिसंबर तक ही दुरुस्त किया जा सकता है। अंतिम तिथि बीत चुकी थी, इसलिए कर अधिकारियों ने सख्त कानूनी समय सीमा का हवाला देते हुए कंपनी का संशोधन अनुरोध खारिज कर दिया था।
नांगिया एंडरसन एलएलपी में कार्यकारी निदेशक, अप्रत्यक्ष कर शिवकुमार रामजी ने कहा कि जीएसटी फाइलिंग में लिपिकीय या तकनीकी त्रुटि का मसला कारोबारियों व कर अधिकारियों के बीच लंबे समय से विवाद का मसला रहा है। उन्होंने कहा कि कर अधिकारी अक्सर वैधानिक सीमाओं का हवाला देकर कड़ा रुख अपनाते हैं, जिसमें जीएसटी फाइलिंग में त्रुटियां ठीक करने की समय सीमा तय की गई है। इसकी वजह से उचित दावों को भी अनुमति नहीं दी गई और इसके कारण याचिकाएं और कारोबारी अनिश्चितताएं आईं। कर विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय अन्यायपूर्ण क्रेडिट अस्वीकृति को चुनौती देने की व्यवसायों की क्षमता को मजबूत करता है।
ईवाई में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा कि जीएसटी संबंधी वास्तविक त्रुटियों के सुधार को बरकरार रखते हुए, विशेष रूप से जहां कोई राजस्व हानि नहीं होती है, न्यायालय ने इस सिद्धांत को मजबूत किया है कि अनुपालन व्यावहारिक होना चाहिए, दंडात्मक नहीं। डेलॉयट में अप्रत्यक्ष कर पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा, ‘कर अनुपालन के लिए प्रौद्योगिकी आधारशिला है। ऐसे सकारात्मक निर्णयों से करदाताओं का नवीनतम प्रौद्योगिकी साधनों को अपनाने को लेकर विश्वास बढ़ता है, जिससे उनका अनुपालन बोझ कम हो सकता है।’