जहाजों के विलंब शुल्क का समावेशीकरण आयातित सामान में किया जाए या नहीं यह काफी विवादित मुद्दा रहा है।
10 अक्टूबर 2007 से नए सीमा शुल्क मूल्यीकरण कानून 2007 के तहत इस बात की घोषणा की गई है कि किसी भी आयातित सामान में जहाजों के विलंब शुल्क को भी शामिल किया जाए। यहीं से इस मुद्दे पर विवाद शुरू होता है। वैसे उक्त तिथि से पहले इस तरह के आयात पर राहत मिली हुई थी।
लेकिन हाल के शाइन पेट्रोलियम प्राइवेट लि. (2008 (224) ईएलटी 134 (ट्राइ. – बैंग.)) के मामले में जो सुनवाई हुई, उसके बाद इस संबंध में थोड़ा मोड़ आ गया। केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने 1991 से इस बात को जारी रखा था कि जहाज के विलंब शुल्क को कर दायरे में शामिल नहीं किया जाए (सकुर्लर संख्या 4672189- कस. 5, तारीख 14 अगस्त 1991)।
दस साल बाद सीबीईसी ने कहा कि उनके सर्कुलर में ऐसी किसी बात का जिक्र नहीं है कि जहाज विलंब शुल्क को सीमा शुल्क में शामिल न किया जाए। उसका इस तरह का कोई उद्देश्य कभी रहा ही नहीं। सर्कुलर संख्या 142001, तारीख 2 मार्च 2001 में कहा गया कि पहले के किसी भी पत्र में इस बात का जिक्र नहीं है कि किसी प्राधिकार को इस बात का निर्देश दिया गया हो कि वे जहाज विलंब शुल्क को सीमा शुल्क में शामिल न करें।
पांच साल बाद, सीबीईसी ने निर्देश दिया कि 2 मार्च 2001 को प्राथमिक महत्त्व देते हुए या तो विलंब जहाजों में सामान को लोड ही न किया जाए और अगर लोड किया भी जाता है तो यह सारी स्थिति बोर्ड के विचाराधीन होगी कि उसपर किस तरह की रियायत दी जाए या नहीं (सर्कुलर संख्या 262006, तारीख 26 सितंबर 2006)। हालांकि इसके बाद न्यायालयों के निर्णय थोड़े अलग विचारों के साथ आने लगे।
जहाज के विलंब शुल्क की अदायगी लैंडिंग से पहले की होती है और इसलिए इसे समीक्षाधीन राशि के तहत शामिल किया जाना चाहिए (पंचमहल स्टील लि. 1998 (101) ईएलटी 399-(टी)) और सेवन सीज पेट्रोलियम लि. 2005 (191) ईएलटी 1181 (ट्रायल- रेफरी डिसीजन)। जहाज का विलंब शुल्क असाधारण खर्च होता है, इसलिए इसे शामिल नहीं किया जाना चाहिए (एक्जिम इंडिया ऑयल कॉरपोरेशन लि. 2001 (131) ईएलटी 207 (ट्रायल))और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लि. 2000 (122) ईएलटी 615 टी-एलबी )।
विलंब शुल्क देरी के कारण लगता है न कि आयातित होने की वजह से और इसलिए इसे शुल्क के दायरे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए (हिन्दुस्तान लीवर लि. 2002 (142) ईएलटी 33 (केल.))। सरकारी वकील ने भी यह दलील दी कि इसे शुल्क के दायरे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए (येसेस इंटरनेशनल 2001 (133) ईएलटी 526 (एस.सी.))। 2 मार्च 2001 से पहले के आयात के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्देश (2004 (165) ईएलटी 257 (एस.सी.)) आया था कि सरकार किसी मुद्दे पर अपने ही सर्कुलर के विरोध में नहीं जा सकती है। हालांकि इस मामले में आयात को रोकने की बात कही गई थी।
शाइन पेट्रोलियम मामले में ट्रिब्यूनल ने इस बात का अवलोकन किया कि 12 जनवरी 2006 के सर्कुलर में सीबीईसी ने इस मुद्दे पर केवल विचार करने की बात कही थी। 26 सितंबर 2006 के सर्कुलर में सीबीईसी ने यह परिभाषा दी थी कि जहाज का विलंब शुल्क आयात के लिए लोड किया जाना चाहिए। ट्रिब्यूनल ने कहा कि इस सर्कुलर ने भी कोई ज्यादा प्रभाव नहीं डाला। शाइन पेट्रोलियम मामला इस संबंध में कई लंबित मामले को प्रभावित करेगा।