सर्वोच्च न्यायालय ने ईंधन अधिभार की गणना को लेकर पैदा हुए विवाद में पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली बिहार राज्य विद्युत बोर्ड की अपील खारिज कर दी है।
बोर्ड ने विभिन्न बिजली निर्माता कंपनियों से बिजली खरीदी थी। बोर्ड ने यह तर्क दिया कि बिजली खरीद की लागत में बढ़ोतरी को प्रभावहीन किए जाने की कोशिश में उसने अपने उपभोक्ताओं से ईंधन अधिभार वसूला। इसने दलील दी कि अधिभार टैरिफ का हिस्सा है।
लेकिन निजी कंपनियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने बोर्ड से कहा कि वह 1997 के बाद से अधिभार दर की फिर से गणना करे। बोर्ड ने इसके खिलाफ अपील दायर कर दी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी चुनौती खारिज कर दी। न्यायालय ने बोर्ड से कोयला कंपनियों द्वारा उसे दिए गए 100 करोड़ रुपये 3 महीने के भीतर समायोजित करने को भी कहा।
निकाले गए कर्मचारियों को अधिसूचना के बगैर नहीं खपाया जाएगा
कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड की सहायक कंपनियों टेलीट्रोनिक्स लिमिटेड और कुमाऊं टेलीविजन लिमिटेड से निकाले गए कर्मचारियों को सरकारी कंपनियों में नहीं खपाया जाएगा, क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने अभी तक उत्तर प्रदेश रीऑर्गनाइजेशन ऐक्ट 2000 के शिडयूल में इन कंपनियों को शामिल नहीं किया है।
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इन कर्मचारियों को खपाए जाने के लिए अधिसूचना जरूरी है जो उत्तराखंड सरकार की ओर से जारी नहीं की गई है।
इसके अलावा, इन कर्मचारियों को लोक सेवा आयोग की ओर से भर्ती किया जाएगा, न कि प्रत्यक्ष तौर पर इन्हें नौकरी दी जाएगी। इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया है।
मुआवजे की गणना का मामला
सड़क दुर्घटना के भुक्तभोगी के लिए मुआवजे की गणना करते वक्त दुर्घटना के समय भुक्तभोगी को दिए जाने वाले वेतन को ध्यान में रखा जाना चाहिए, न कि सरकार द्वारा बाद में किए गए संशोधनों के आधार पर मुआवजे का निर्धारण किया जाना चाहिए।
‘सरला वर्मा बनाम दिल्ली परिवहन निगम’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया है। हालांकि यह जानलेवा दुर्घटना दो दशक पहले हुई थी और उसके बाद सरकार द्वारा वेतन में दो बार संशोधन किया गया, लेकिन मुआवजा पैकेज में इजाफा किए जाने के लिए यह कोई तर्क नहीं हो सकता।
बोलीदाताओं की संख्या बढ़ाई गई
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग के हैदराबाद-विजयवाड़ा सेक्शन के निर्माण और रखरखाव के लिए बोलीदाताओं की संख्या 6 से बढ़ा कर 8 कर दी है। हालांकि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की नीति के तहत यह संख्या सिर्फ 6 की सकती थी।
जब प्राधिकरण ने यह संख्या 6 तय कर दी तो इससे वंचित रही दो कंपनियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में इसका विरोध किया। उच्च न्यायालय ने इन दोनों कंपनियों के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन छांटी गई बाकी कंपनियों ने सर्वोच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी और तर्क पेश किया कि इसमें सिर्फ 6 कंपनियां ही शामिल की जा सकती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें दो और बोलीदाता कंपनियों को शामिल करने से उनकी पात्रता का आकलन प्रभावित नहीं होगा। अगर किसी कंपनी में योग्यता या विश्वसनीयता की कमी पाई जाती है तो प्राधिकरण उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि परियोजना के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए प्राधिकरण चयन को लेकर नया कदम उठा सकता है। यह फैसला आइसोलक्स-सोमा-ओमैक्स समूह बनाम मधुकन प्रोजेक्ट्स मामले में आया।
