जेएसडब्ल्यू स्टील सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष समीक्षा याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रही है। पिछले महीने भूषण पावर ऐंड स्टील लिमिटेड के लिए उसकी समाधान योजना को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया गया था। स्टील निर्माता की ओर से नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के 2019 के आदेश का हवाला दिए जाने की उम्मीद है, जिसमें समाधान पेशेवर द्वारा फॉर्म एच लेना स्वीकार किया गया था। इससे दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत जेएसडब्ल्यू की पात्रता प्रमाणित होती है। सूत्रों ने बताया कि बैंक और समाधान पेशेवर भी अलग-अलग समीक्षा याचिकाएं दाखिल करेंगे।
शीर्ष अदालत ने जेएसडब्लू की समाधान योजना को अवैध करार देते हुए कहा था कि समाधान पेशेवर फॉर्म एच दाखिल करने में विफल रहे और जेएसडब्लू स्टील से अग्रिम इक्विटी निवेश की भी कमी रही। इस फैसले ने एक बड़े दिवालिया समाधान को अनिश्चितता के भंवर में डाल दिया है, जिसे कभी देश के दिवालिया कानून के तहत सफल माना गया था।
एक कानूनी सूत्र के अनुसार, जेएसडब्ल्यू की कानूनी टीम के यह तर्क दिए जाने की संभावना है कि अनिवार्य परिवर्तनीय तरजीही शेयरों पर आधारित फंडिंग व्यवस्था वास्तव में इक्विटी निवेश ही थी। समीक्षा याचिकाएं, कंपनी, उसके लेनदारों, समाधान पेशेवर और सरकार की ओर से दाखिल किए जाने की संभावना है। इनका मकसद निर्णय में त्रुटियां बताना होगा। इस बारे में जेएसडब्ल्यू स्टील ने टिप्पणी करने से मना कर दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता नलिन कोहली ने मोटे तौर पर बताया, कंपनी न केवल पटरी पर आ गई बल्कि उसने अपनी क्षमता का विस्तार किया है और अपने कर्मचारियों की संख्या दोगुनी कर ली है। इससे आईबीसी केउद्देश्य पूरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि बीएसपीएल उन खराब 12 कंपनियों में शामिल थी, जिन्हें 2017 में भारतीय रिजर्व बैंक ने फास्ट-ट्रैक दिवालिया समाधान के लिए चिह्नित किया था और नवीनतम फैसले ने चार साल की स्थिरता के बाद मामले को फिर से खोल दिया है।
भूषण पावर के पूर्व प्रवर्तक संजय सिंघल ने पहले ही एनसीएलटी के नई दिल्ली पीठ में आवेदन दायर कर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश लागू कराने और कंपनी के परिसमापन की मांग की है। इस कदम से जेएसडब्ल्यू के 19,700 करोड़ रुपये के अधिग्रहण और उसके बाद के निवेशों पर असर पड़ने का जोखिम है जिससे बीपीएसएल की स्टील बनाने की क्षमता 25 लाख टन सालाना से बढ़कर 45 लाख टन सालाना हो गई।
सर्वोच्च न्यायालय ने बीपीएसएल के पूर्व प्रवर्तकों से जुड़ी एक इकाई के साथ एक अघोषित संयुक्त उद्यम के कारण जेएसडब्ल्यू स्टील को आईबीसी की धारा 29ए के तहत अयोग्य पाया था। उसने फैसला सुनाया कि समाधान पेशेवर अपने वैधानिक कर्तव्यों में विफल रहा, जिनमें संहिता के तहत पात्रता की जांच करना भी शामिल था।