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पक्षों की सहमति पर हो मध्यस्थ का चयन

Last Updated- December 07, 2022 | 6:41 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह यह स्पष्ट किया कि किसी भी आम विवाद में मध्यस्थ नियुक्त करते समय मुद्दई के विचारों को भी सुना जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि किसी एक पक्ष के आग्रह पर न्यायालय मध्यस्थ की नियुक्ति नहीं कर सकता है।

इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी पक्ष मध्यस्थ नियुक्त करने की सारी शर्तों को मानने के लिए तैयार हैं। उस समझौते के तहत अर्हताओं और दूसरे प्रकार के प्रस्तावों का भी पूरा जिक्र किया जाना चाहिए।

न्यायालय को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी वह मामले की सुनवाई करें, तो इन सिद्धांतों का पालन अवश्य करें। उत्तरी रेल बनाम पटेल इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के  विवाद में न्यायालय ने दो विरोधाभासी निर्णय दिए थे, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह की व्यवस्था दी। इस व्यवस्था को देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थ और सुलहकारी कानून की धारा 11 (6) का हवाला दिया और अपनी सुनवाई जारी की। मध्यस्थ के चयन के लिए दोनों पक्षों के बीच एक आम राय जरूरी है।

अनुबंधित कर्मचारी नहीं होंगे स्थायी

सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया है, जिसमें एनटीपीसी को यह कहा गया था कि अनुबंधों पर लिए गए कर्मचारियों को कंपनी में रख लिया जाए। ये कर्मचारी कोरबा सुपर थर्मल पावर परियोजना में कार्यरत थे और वहां की आवासीय इलाकों में रहते थे।

इन काम करने वालों ने यह दावा किया था कि वे एनटीपीसी की निगरानी और नियंत्रण में 1987 से काम कर रहे थे और इस तरह उन्हें कॉरपोरेशन के बतौर कर्मचारी समझा जाना चाहिए।

 कंपनी ने इस बात से इनकार किया था और कहा कि वे कर्मचारी अनुबंध पर लिए गए थे और इस तरह उनका कॉरपोरेशन से कोई प्रत्यक्ष वास्ता नहीं है। वे सभी काम करने वाले अस्थायी तौर पर कंपनी में काम कर रहे थे।

उच्च न्यायालय की पीठ ने एनटीपीसी के इस तर्क को नकार दिया।

इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने एनटीपीसी के दावे को सही ठहराया और कर्मचारियों को ली जाने वाली किसी भी संभावना पर अंकुश लगा दिया। इससे कंपनी की दलीलों को स्वीकृति मिली है।


जुर्माने की राशि धारा 271 (1)(सी)

वर्चुअल सॉफ्ट सिस्टम लिमिटेड बनाम आयकर आयुक्त मामले में दिए गए अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बदलाव किया है। इस बदलाव के तहत यह व्यवस्था दी गई कि जुर्माने के तहत ली जाने वाली राशि को धारा 271 (1)(सी) के तहत वसूला जाना चाहिए चाहे रिटर्न आय घाटे में ही क्यों न हो रहा हो।

अपने हाल के  निर्णय में, जिसमें गोल्ड क्वाइन हेल्थ फूड लिमिटेड भी शामिल है, कहा है कि वित्तीय कानून 2002 में किए गए संशोधन से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है और इसे इस तरह के मामले में लागू करने की अनुमति मिल जाती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस प्रस्ताव को लाने का उद्देश्य यह था कि रिटर्न भरते समय किसी प्रकार की जानकारियों को छुपाने के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। इसलिए यह कोई मायने नहीं रखता है कि रिटर्न भरने वाले को लाभ हो रहा है या घाटा।



चेक बाउंस का मामला

मालवा कॉटन और स्पिनिंग मिल लिमिटेड के चेक बाउंस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है। यह चेक एक कंपनी के निदेशक द्वारा जारी किया गया था, हालांकि निदेशक का कहना है कि उसने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था।

मालवा मिल ने कहा कि उसने यह चेक त्यागपत्र देने से पहले जारी किया था। उच्च न्यायालय ने निदेशक के खिलाफ मामला दर्ज किया।

First Published - August 24, 2008 | 11:49 PM IST

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